श्री राम नवमी महोत्सव पर काव्य मई सेवा।
- Posted By: Alopi Shankar
- साहित्य/लेख
- Updated: 20 April, 2021 19:05
- 1701

प्रकाश प्रभाव न्यूज़ प्रयागराज
संग्रहकर्ता - सुरेश चंद मिश्रा "पत्रकार"
।।श्री राम नवमी महोत्सव पर काव्य मई सेवा।।
गतांक से आगे।।
छप्पय =
सुनि जननी के बैन लगे रोवन रघुराई।
प्रमुदित सब रानी कौशल्या गृह चलि आईं।
उमग्यो अति आनंद बरनि कोउ कैसे पावे।
भाग्य वंत जग कौन ब्रह्म जो अंक उठावे।।
दोहा=
शिव विधि जेहि ध्यावत सदा वेद न पावत पार ।।
कौशल्या के कुक्ष सोइ ब्रह्म लियो अवतार।।
छप्पय =
भै पुर शोर अथोर सुने सब सेवक दासी।
उमगि चले अवधेश द्वार देखन सुख रासी।।
लखि शिशु भाग्य मनाइ जाहिं पुनि पुनि बलिहारी।
विपुल निछावरि देहिं सबहिं प्रमुदित महतारी।।
दोहा=
दासी जो आई प्रथम दीन नौलखा हार।
सब बोलहिं जुग जुग जियो कोशल राजकुमार।।
छप्पय=
सिंहासन आसीन भूप ढिग अनुचर आयो।
करि जोहार नृप कहुं लालन को जनम सुनायो।।
सुनत बढ्यो अनुराग शिथिल तन सब होई गएऊ।
शब्द सुधा बनि श्रवण रंध्र परि सुख उपजयऊ।।
छप्पय =
आजु जनम सार्थक भयउ भूपति भये निहाल।
अखिल भुवन नायक बन्यो आजु हमारो लाल।
छप्पय =
प्रमुदित अवध भुआल सुमंत्रहिं निकट बोलाए।
हरषि सखा भरि भुजा प्रेम जल सों अन्हवाए।
फलित भई है मित्र आजु गुरुवार की बानी।
पुत्र वती होई गईं अवध पुर की पटरानी।।
दोहा=
तब लौं नृप ढिग आइगे धावत सेवक चार।
कैकय तनया कुक्ष सों प्रगटे सुभग कुमार।।
प्रमुदित नृप गहि मित्र सुमंत्रहिं नाचन लागे।
फलित भये सब पुन्य सुफल सुरतरु में लागे।
चलहु सखा अब करहु महोत्सव की तैयारी।
शुभकामना सफल सब बिधि सों मित्र तुम्हारी।
दोहा=
तब लौं दासी आइके सादर कीन जोहार।
भये सुमित्रा के सदन दुइ दुइ राज कुमार।।
छप्पय =
त्रिभुवन की संपदा सकल मानहुं नृप पाए।
मंत्री संग महिपाल दौरि रनिवासहिं आए।।
आंगन में भइ भीर अवध पुर की सब नारी।
नाचहिं गावहि हरषि बजावहिं सब मिलि थारी।।
दोहा =
लगेउ दरेरा त्रियन को विवश भये अवधेश।
आंगन से द्वारे गये लखि मुसुकात महेश।।
छप्पय =
सुचि सेवकन बुझाई पठाए गुरु के द्वारे।
विप्रवृंद संग लिए मुनीश्वर हुलसि पधारे।।
पायन परि महिपाल कीन निज भाग्य बड़ाई।
जात कर्म संस्कार करहु बिधिवत मुनिराई।
दोहा=
नांदी मुख करि विप्रवर जात कर्म करवाइ।
विधि नंदन के दृग सफल भै हरि दर्शन पाइ।
छप्पय =
दान देत अवधेश निरखि दिसि पाल लजावें।
हीरक गज मणि कंचन मुक्ता माल लुटावें।
दै कोटिन गज बाजि अनेकन धेनु सजाए।
रेशम पट पहिराइ सीग कंचन मढ़वाए।।
दोहा=
रजत खुरन मढ़वाइ के द्विजन दीन नर नाह।।
कोटि शेष सारद मिलें तऊ न पावें थाह।।
।।जै जानकी जीवन।।
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