जानिए जन्माष्टमी को दो दिन मानने का कारण और गृहस्थों को कब मनाना चाहिए इस बार जन्माष्टमी

जानिए जन्माष्टमी को दो दिन मानने का कारण और गृहस्थों को कब मनाना चाहिए इस बार जन्माष्टमी


जानिए जन्माष्टमी को दो दिन मानने का कारण और गृहस्थों को कब मनाना चाहिए इस बार जन्माष्टमी


प्रायः हर वर्ष हम सभी सुनते हैं कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी दो दिन मनाई जा रही है। मैं आपको बताता हूं कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी शास्त्र अनुसार कब मनाई जानी चाहिए? आखिर इस महत्वपूर्ण पर्व के दो दिन होने का क्या कारण होता है? 2020 में कब होगी श्री कृष्ण जन्माष्टमी?

पुराणों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि में हुआ था जब रोहिणी नक्षत्र और वृषभ लग्न था। जन्माष्टमी को मनाने वाले दो समुदाय अलग अलग तिथियों में श्रीकृष्ण का प्राकट्योत्सव मनाते हैं।

सनातन धर्म में अनुयाइयों को उनकी भक्ति, विश्वाश और पूजन विधि के अनुसार 5 संप्रदायों में विभाजित किया गया है जिसमें  1. वैष्णव, 2. शैव, 3. शाक्त, 4 स्मार्त और 5. वैदिक संप्रदाय आता है।

वैष्णव जो विष्णु को ही परमेश्वर मानते हैं। शैव जो शिव को ही परमेश्वर मानते हैं। शाक्त जो देवी को ही परमशक्ति मानते हैं और स्मार्त जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं  और सभी देवताओं की पूजा करते हैं, जिसमें अधिकतर लोग आते हैं। गृहस्थ आश्रम को स्वीकार करने वाला व्यक्ति स्मार्त है क्योंकि वो सभी की पूजा करता है।अंत में वे लोग जो ब्रह्म को निराकार रूप जानकर उसे ही सर्वोपरि मानते हैं अर्थात वेदों को ही मानते हैं और  पुराणों को नहीं मानते है। हालांकि सभी सम्प्रदायों का धर्मग्रंथ वेद ही है क्योंकि वेदों से ही आगे पुराणों का प्रतिपादन हुआ परन्तु भगवान श्री कृष्ण के जन्म को लेकर वैष्णव और स्मार्त के दृष्टिकोण में अंतर है।

जैसे कि सभी जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म विषम परिस्थितियों में हुआ था और कंस द्वारा माता देवकी के सभी संतानों को नष्ट किया जा रहा था। स्मार्त लोग भगवान् के पैदा होने से पहले व्रत रखते हैं ताकि भगवान का जन्म माता देवकी के गर्भ से सकुशल हो। इसी सकुशलता के लिए ही व्रत धारण किया जाता है और मध्य रात्रि में जन्म होने के उपरांत ही भोजन किया जाता है इसलिए स्मार्त लोगों को कृष्ण जन्माष्टमी उस दिन मनानी चाहिए जिस दिन रात्रि में अष्टमी तिथि हो।

वैष्णव संप्रदाय के अनुयाई भगवान् के जन्म के उपरांत भगवान का प्राकट्योत्सव मनाते हैं क्योंकि भगवान के जन्म के बाद भगवान रात में ही गोकुल पहुंच गए तो सुबह जब सबको पता चला कि भगवान 

का जन्म हो चुका है और भगवान सकुशल हैं तो सभी वैष्णवों और गोकुल वासियों ने भगवान का प्राकट्योत्सव मनाया इसीलिए वैष्णव भगवान का प्राकट्योत्सव आज भी उसी परंपरा के अनुसार मनाते हैं जब अष्टमी उदय तिथि हो अर्थात सूर्य उदय के समय जब अष्टमी तिथि हो। 

धर्मसिंधु भी इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि स्मार्त व वैष्णव लोगों में इस पर्व के निर्णायक तत्त्व पृथक हैं।

"स्मार्तानां गृहिणी पूर्वा पोष्या, निष्काम वनस्थेविधवाभिः वैष्णवैश्च परै वा पोष्या। वैष्णव वास्तु अर्धरात्रिव्यापिनीमपि  रोहिणीयुतामपि सप्तमी विद्धां अष्टमी परित्यज्य नवमी युतैव ग्राह्या॥" (धर्मसिन्धु)

इसी को आधार मानते हुए स्मार्त संप्रदाय  यानी गृहस्थों के लिए 2020 में 11 अगस्त को श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत और पर्व होगा क्योंकि  11 की मध्यरात्रि को अष्टमी तिथि है जो कि 12 को सुबह 10 बजकर 38 मिनट तक है। वैष्णव संप्रदाय के लिए 12 अगस्त को भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्योत्सव मनाया जाना शास्त्र के अनुसार है।

श्री कृष्ण जन्म की कथा:

भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। 

द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। विवाह के पश्चात कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था।

रास्ते में आकाशवाणी हुई- 'हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।' यह सुनकर कंस वसुदेव और देवकी को मारने के लिए उद्यत हुआ। तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- 'मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। हमको मार के क्या लाभ मिलेगा

कंस ने देवकी की बात मान ली एवं वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया। वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। जब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय गोकुल में नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था।

जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ 'माया' थी। जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- 'अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं।

तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी।'

उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए।

अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है। उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- 'अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।' 


इसके बाद दूसरे दिन नंद के घर पर जन्मोत्सव मनाया जाता है।


सुरेन्द्र शुक्ल

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