शरद पूर्णिमा विशेषांक
- Posted By: Alopi Shankar
- साहित्य/लेख
- Updated: 30 October, 2020 19:36
- 1839

प्रकाश प्रभाव न्यूज़
प्रयागराज
संग्रहकर्ता - सुरेश चंद्र मिश्रा "पत्रकार"
।।शरद पूर्णिमा विशेषांक।।
शरद पूर्णिमा और रास लीला का मणिकांचन योग।।
भगवानपि ता रात्रीः शरदोत्फुल्ल मल्लिकाः। वीक्ष्यरन्तु मनश्चक्रे योग मायामुपाश्रितः।।
आज से लगभग 5,200 वर्ष पूर्व भगवती भानुजा के पावन पुलिन पर महाभागा बृजांगनाओं के साथ अखिल भुवनाधिपति भगवान श्मामसुंदर ने महारास की सुर नर मुनि मनोहारी लीला संपन्न करते हुए अपने में पूर्णानुरक्त गोपांगनाओं को कृतार्थ किया था।श्रीमद्भागवत में वर्णित रासपंचाध्याई प्रसंग को विद्वान भागवत रूपी शरीर का पंचप्राण मानते हैं रसो वै सः जहां रस ही रस उद्वेलित हो रहा हो वह है रास। इस रास लीला हेतु पूर्णतः उपयुक्त तिथि शरद पूर्णिमा ही है इस निशा में निशाकर चंद्रमा षोडष कलाओं से सुपसंप्पन्न होकर अपनी शीतल ज्योत्सना से अखिल भूमंडल का अभिसिंचन करते है। चंद्रमा को अमृतांशु या सुधाकर भी कहा जाता है सो इस पावन तिथि को चंद्रकिरणों मे संलिप्त अमृत कण निर्वाध रूप से वसुधा तल का संस्पर्श करते हैं। वैसे तो वर्ष में 12 पूर्णिमा होती हैं किंतु वृष्टि काल मे आकाश मेघाच्छादित होता है शीत काल में ओस के द्वारा और ग्रीष्म काल में धूल कणों के अंतरिक्ष मे फैले रहने के कारण पूर्ण रूपेण कलाधर की कलाएं पृथ्वी तक नहीं उतर पातीं किंतु शरद पूर्णिमा को मेघ धूलिकण और ओस कणों का अभाव होने के कारण पूर्ण रूपेण निर्वाध गति से चंद्र किरणें धरती तल का चुंबन करती हैं। बृष्टि काल की आर्दता से सुकोमल हुए चंद्रमा मे स्थित सुधाकण इस पूर्णिमा को सहज ही छलक उठते है। शास्त्रीय दृष्टि से भगवान कृष्ण पूर्णावतार हैं और उन पूर्ण ब्रह्म की पूर्ण लीला ही महारास है इस लिए प्रकृति देवी जिनके अंचल मे यह पूर्ण लीला होगी उन्हें भी पूर्ण होना ही पड़ेगा चंद्रमा को रस राज कहा जाता है अस्तु रसराज कृष्ण के पूर्ण लीला के लिए रसराज चंद्रमा को भी पूर्ण होना ही चाहिए। भगवान कृष्ण चंद्र वंशावतंश हैं इस शरद ऋतु में प्रकृति भी पूर्णता को प्राप्त हो रही है।
इत्थं शरत्सवक्षजलं पद्माकरसुगंधिना।।सरित सरोवरों में स्वक्ष निर्मल जल भर गया है पद्माकर कमल की सुगंध परिपूर्ण है। वातावरण रस से ओतप्रोत है धरित्री त्रृण का हरित परिधान धारण करके मानों अपने प्राण प्रियतम पुरुषोत्तम का स्वागत करने को समुत्सुक है। आज पूर्णिमा है रसराज चंद्र देव आज अखिल विश्व को रससिक्त कर रहे हैं। इस तिथि को पके हुए फल मे अन्य फलों से अधिक स्वाद और स्वास्थ्य वर्धक रस होता है। पूर्णिमा को जगत के समस्त जलाशयों में भी रसवृद्धि होती है यहां तक कि जड समुद्र में भी ज्वार के माध्यम से रस वृद्धि हो जाती है। महार्णव समुद्र को रस का आगर माना जाता है ।।श्रोतसामस्मि सागरः।।सो जलाशयों के स्वामी में रसवृद्धि होते ही जगत के जितने जलाशय हैं सब में रस वृद्धि होने लगती है सारे कूप सरोवर सरिता कुछ न कुछ वृद्धि को प्राप्त होते है। जगत के समस्त जलाशयों में अभिवृद्धि होते ही शरीर रूपी जलाशय में भी रस वृद्धि हो जाती है। मानव शरीर में 80 प्रतिशत से अधिक जल तत्व है इसी लिए पूर्णिमा के चंद्र को देखते ही विक्षिप्त की विक्षिप्तता अधिक बढ जाती है रोगी का रोग बढ जाता है और रसिकों की रसिकता भी पराकाष्ठा को पहुंच जाती है अस्तु रसिक शेखर कृष्ण ने महाभागा गोप बालाओं से जो कि पूर्व जन्म में ऋषि वेष में लाखों वर्ष तपस्या करके कृष्ण को अपना प्रियतम बनाने का वरदान लेकर धराधाम पर गोपी रूप में अवतरित हुए हैं रास रचाने के लिए शरद पूर्णिमा का चयन किया यह रास पंचाध्याई के पांच अध्याय वस्तुतः भागवत रूपी शरीर के पंचप्राण ही हैं इन पांचों अध्यायों का पाठ करने वाला व्यक्ति हृदय रोगों हार्ट अटैक काम क्रोधादिक से विमुक्त रहता है ऐसा भगवान वेदव्यास का वचन है।भक्तिं परां भगवति प्रतिलभ्य कामं,, हृद्रोगमाश्वपहिनोत्यचिरेण धीरः। अस्तु हृदय रोग निवारणार्थ भक्ति वैभव प्राप्त्यर्थ शरद पूर्णिमा महामहोत्सव पर निशीथ काल में भगवद्संन्निधि में रह कर नाम संकीर्तन किंवा भागवत रास पंचाध्याई का पाठ करते हुए कलाधर की सुशीतल ज्योत्सना में रखे हुए दुग्ध शर्करा और देवान्न से संयुक्त खीर का भगवान गोपी वल्लभ श्री कृष्ण का भोग लगाकर आदर सहित उस दिव्य प्रसाद को ग्रहण करने से स्वांस संबंधी विकार दमा टी बी और ह्रदय रोगों का शमन होता है तथा मानसिक विकार क्षीण होते हैं व मानव भगवत्कृपा का पात्र बनता है। समस्त सनातन धर्मावलंबी सज्जनों देवियों को शरद पूर्णिमा महोत्सव पर अनंत अनंत शुभकामनाएं।
।। जै जानकी जीवन।।
Comments