मन को उपदेश
- Posted By: Alopi Shankar
- साहित्य/लेख
- Updated: 26 April, 2021 20:22
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प्रकाश स्वभाव न्यूज़ प्रयागराज
संग्रहकर्ता - सुरेश चंद्र मिश्रा "पत्रकार"
।।मन को उपदेश।।
इस जगत जंजाल में अब सिर खपाना छोड दे।
स्वांस का हीरा निरर्थक यूं लुटाना छोड दे।
सोच क्या लेकर के आया और क्या ले जाएगा।
कौडियों के दाम क्या अनमोल रत्न लुटाएगा।
हरि भजन को त्याग जग में कौन कब किसका हुआ।
वासना के कर्मशाशा मे नहाना छोड दे।
इस जगत जंजाल में अब सिर खपाना छोड़ दे। 1=
राम के अतिरिक्त सब संसार है सपना सुहाना ।
जागने पर हांथ खाली देखता आया जमाना।
राम रावन बली बावन क्या यहां से ले गये।
तप्त रेगिस्तान में मोती उगाना छोड दे।
इस जगत जंजाल में अब सिर खपाना छोड़ दे। 2।।
दंड है यम का कठिन ना मिल सके यह कर जतन।
हांथ से परमार्थ हों रसना करे हरि का भजन।
स्वार्थ के संसार में रह नाव जैसे नीर में।
क्या करूं कैसे करूं तूं यह बहाना छोड दे।।
इस जगत जंजाल में अब सिर खपाना छोड़ दे।। 3।।
जननी जनक अरु गुरुजनों के पद कमल में शीश धर।
तीर्थ सेवन साधु संगति और सच्ची रख नजर।
मन बना निर्मल, न परपीडा का किंचित कर विचार।
धर्म द्रोही के घरों में आना जाना छोड़ दे।
इस जगत जंजाल में अब सिर खपाना छोड़ दे।।
स्वांस का हीरा निरर्थक यूं लुटाना छोड दे।। 4।।
।। लाक डाउन का सदुपयोग ।।
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