कोरोना काल और चुनौतीया

कोरोना काल और चुनौतीया

कोरोना काल और चुनौतीया

स्वतंत्र विचारक

भीम सिंह बघेल

आज पूरा विश्व करोना संकट की महामारी से गुजर रहा है। इस संकट से निपटने में प्रमुख तौर पर सक्रिय फ्रंटलाइन वारियर्स इसमें प्रमुख तौर पर स्वास्थ्य कर्मी, सुरक्षाकर्मी, सफाई कर्मी इस अदृश्य योद्धा से लड़ने में अपना सब कुछ लगा रहे हैं थोड़ा सा विस्तार से सोचा जाए तो मजदूर, किसान, छात्र , वृद्धजन भी अपना कर्तव्य निर्वहन कर रहे हैं लॉकडाउन के दौरान मजदूरों की स्थिति कथा उनके साथ घटित घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण थी जो कि खुद की बनाई हुई रेलवे ट्रैक पर सोते समय जान गवा देना, पैरों में छाले पड़ जाना, सड़क दुर्घटना में मारा जाना, गर्भवती महिला मजदूरों की स्थिति अपनी व्यथा भी  रही होगी हो सकता हो समय के साथ दिया भुला दिया जाए लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था मांग पर आधारित अर्थव्यवस्था है मजदूरों की वापसी उद्योगों पुनः शुरू करने के लिए प्रमुख औजार रहने वाला है जिससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी अर्थव्यवस्था की वापसी कृषि क्षेत्र से होने वाली हैं क्योंकि इस मजदूर शक्ति का उपयोग ग्रामीण कृषि उत्पादन में हो रहा है ।

इस वैश्विक महामारी में स्वास्थ्य सेवा का महत्व ना केवल समझा जा रहा है बल्कि इसका विनिवेशीकरण पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता होगी  स्वास्थ्य राज्य का विषय है इस संकट के दौरान देखा गया कि राज्य एक दूसरे से समस्या से निपटने में आपसी सहयोग और संवाद स्थापित करने में विफल रहे हैं क्योंकि राज्यों को ऐसी समस्याओं को लेकर राज्य संबंधी सीमाओं के पास जाकर सोचने पर मजबूर किया बीमारियों को राज्यों सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है शुरू में तो लोगों द्वारा यह कहते सुना गया की भारत का तापमान गर्म है और यहां के लोगों की प्रतिरोधक क्षमता अधिक हैं इससे इस वैश्विक संकट को अंडरस्टीमेट किया गया इसका परिणाम यह हुआ कि फ्रंटलाइन वारियर्स तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करने को मजबूर हैं परिवारिक समस्याओं के अलावा संस्थागत समस्याओं  को प्रमुख तौर पर देखा जा सकता है कि अस्पताल प्रबंधन में लगे हुए चिकित्सक मरीजों के इलाज के बजाय प्रबंधन में अपनी उर्जा जाया कर  देते हैं यह एक संरचनात्मक समस्या है अस्पताल प्रशासन में अलग चिकित्सा प्रबंधन की आवश्यकता को महसूस किया जा रहा है चिकित्सकों और पैरामेडिकल का संक्रमित होने के उपरांत एक तरफ मरीजों का इलाज मे समस्या उत्पन्न होती है वहीं दूसरी तरफ मानसिक तनाव, व्यक्ति का व्यवहार, ऑफिस का कल्चर, सामाजिक व्यवहार यह सब कुछ इस संकट के बाद बदलने वाला है। भारत अपने जीडीपी का लगभग 2% ही खर्च करता है वही विकसित देश अपनी जीडीपी का 6% के आसपास का करते हैं  भोरे समिति अनुशंसा पर आधारित त्रिस्तरीय स्वास्थ्य संरचना को और मजबूत करने की आवश्यकता महसूस की गई ताकि बड़े संस्थानों में मरीजों का संकेंद्रण रोका जा सके और शुरुआती स्तर पर ही इलाज की सुविधा उपलब्ध हो सके जनसंख्या के अनुपात में चिकित्सकों और पैरामेडिकल्स मे वृद्धि की आवश्यकता को महसूस किया जा सकता है राइट टू एजुकेशन के बाद अब राइट टू हेल्थ जैसे विषय महत्वपूर्ण होने वाले हैं कोरोना संक्रमण बनाम प्रकृति की लड़ाई हैं प्राकृतिक संसाधनों का विनाश रोकने का भरसक प्रयास करना चाहिए जिसके लिए धारणीय (sustainable)विकास पर बल देने की आवश्यकता है। शुगर और दिल की बीमारियां, पार्किंसन जैसी  लंबी इलाज की बीमारियों में इलाज और सुझाव के आभाव में लोगों की मौतें भी हुई होगी 

वैक्सीन एक अंतिम उपाय के रूप में दिख रहा है लेकिन उसके आने में अभी समय लग रहा है ऐसा नहीं कि वैक्सीन आते ही देश के अंतिम पायदान पर बैठे हर व्यक्ति को उपलब्ध हो जाएगा  ऐसे में यदि  संकट लंबा खींचता है तो हर मोर्चे पर संघर्ष की आवश्यकता होगी भुखमरी, कुपोषण, रोजगार, शिक्षा , अर्थव्यवस्था  जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर नई ऊर्जा के साथ कार्य करने की आवश्यकता होगी।



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