जलवायु परिवर्तन 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती

जलवायु परिवर्तन 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती

जलवायु परिवर्तन 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती

लेखक,  भीम सिंह बघेल

उत्तरी अमेरिका तथा कनाडा से आ रहे हैं हीटवेव की खबरों से दर्जनों लोगों की मृत्यु तथा बिजली की तारों का पिघल जाना वहां के नागरिकों को सार्वजनिक शेल्टर घरों में शरण लेना और अपने कारों में एयर कंडीशन चलाकर  समय को व्यतीत करना, सामान्यता ऐसे ठंडे प्रदेश में एयर कंडीशन का प्रयोग घरो में नहीं किया जाता है ऐसी परिस्थितियां पैदा होने का कारण का कारण तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस के पास पहुंचना है जो ऐतिहासिक तापमान वृद्धि को दर्शाता है मानव जीवन के इतिहास में उत्तरी अमेरिका के क्षेत्र में इस तरह के तापमान वृद्धि नहीं देखी गई यहां का तापमान  20 से - 30 तक रहता है वहां  तापमान वृद्धि अवश्य मानव जीवन को बचाने के लिए चिंतनीय हो सकता है  क्या यह ग्लोबल वार्मिंग के संकेत हैं वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग (भूमंडलीय तपन )से निपटने की तैयारियां तथा आने वाली बाधाओं के बारे में चर्चा करते हैं ।  

पृथ्वी वायुमंडल में मौजूद ग्रीनहाउस गैस  तापमान को नियंत्रित करने में कारगर है सूर्य की किरणों के लिए इस प्रकार के गैस पारदर्शी होते हैं जिन्हें वे सतह पर आसानी से पहुंचने देते हैं सूर्य से आने वाली किरणों की अपेक्षा पृथ्वी के सतह से निकलने वाले अवरक्त किरणों का तरंग दैधय अधिक होता है वायुमंडल में उपस्थित ग्रीनहाउस गैस अवरक्त किरणों को अवशोषित करते हैं और कुछ पृथ्वी की ओर अग्रसर कर देते हैं जिसे कार्बन फ्लेक्स कहते हैं इस प्रकार पृथ्वी का तापमान नियंत्रित होता है और पृथ्वी रहने योग्य हो पाती हैं।

औद्योगिक उत्सर्जन के कारण इन गैसों की मात्रा बढ़ती जा रही हैं तथा अधिक से अधिक अवरक्त किरणों को अवशोषित करते हैं जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है जिससे भूमंडलीय तपन होता है जिन क्षेत्रों में ऐसी घटनाएं  देखी जा रही हैं उनका कारण हिटडोम को बताया जा रहा है जो कि एक तात्कालिक कारण को दर्शाता है ऐसे क्षेत्र जो साल भर बर्फ से ढके रहते हैं बर्फ निर्माण की प्रक्रिया के दौरान उनमे बड़े पैमाने पर कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण होता है । जब यही बर्फ पिघलता है तो कार्बन डाइऑक्साइड बाहर आ जाते हैं और वायुमंडल में गैस के स्तर को बढ़ा देते हैं 

2010 में इसरो के भूतपूर्व अध्यक्ष यू आर राव का अध्ययन प्रकाशित हुआ जिसमें यह कहा गया था कि विगत 150 वर्षों में सूर्य पर होने वाली गतिविधियां घट रही हैं जिससे सूर्य के प्रकाश की तीव्रता घट गई है जिसके फलस्वरूप पृथ्वी के ऊपर बादल का आवरण घट गया है जिससे अधिक मात्रा में सूर्य की किरणें पृथ्वी की सतह पर पहुंच रही हैं जिसके वजह से पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है । इन्हीं चिंताओं के बीच विश्व के देशों ने अपनी तैयारियों के मद्देनजर 1997 में जापान के क्योटो शहर में एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किया जिसे क्योटो प्रोटोकॉल के नाम से जाना जाता है जिसके अंतर्गत विकसित देशों को कार्बन उत्सर्जन 5.2% कम करना था लेकिन इस प्रोटोकॉल के  प्रमुख कमियां  यह रही कि अमेरिका जो उस समय सबसे बड़ा उत्सर्जक देश था प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किया विकासशील देश जैसे चीन तथा भारत ने इस पर हस्ताक्षर किया । इस तरह विश्व के देश कार्बन उत्सर्जन को लेकर विकसित देश और विकासशील देशों में बटते हुए नजर आए ।

2015 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में विश्व के सभी देशों ने पेरिस घोषणा पत्र जारी किया इसमें कहा गया कि पृथ्वी का तापमान 2 डिग्री सेंटीग्रेड की कमी करने का लक्ष्य इस सदी में रखा गया जिस पर 195 देशों ने हस्ताक्षर किए इसके अंतर्गत सभी राष्ट्र को यह बताना होगा कि जलवायु परिवर्तन हेतु उनके द्वारा क्या उपाय किए जाएंगे तथा वे किस प्रकार से कार्यान्वित करेंगे राष्ट्र यह भी प्रयास करेंगे कि यह वृद्धि 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड हो जिसमें पृथ्वी के तापमान की तुलना 400 वर्ष पूर्व औद्योगिकरण के शुरुआत के तापमान से लेकर किया जाता है पहले जो उत्सर्जन हुआ एवं भविष्य में इस सदी के अंत तक जो उत्सर्जन होगा उसको कार्बन बजट का नाम दिया जाता है वर्ष 2015 के अंत तक 3/4 कार्बन बजट का उपयोग कर लिया है मात्र 1/4कार्बन बजट में मौजूद है जिसमें प्रत्येक राष्ट्र शामिल हैं ।

1/4 कार्बन बजट को प्रत्येक राष्ट्र को कार्बन शेयर प्रदत किया जाएगा जिसके द्वारा भविष्य में होने वाले उत्सर्जन को निर्धारित किया जाएगा जिसे कार्बन न्याय के संदर्भ में लिया जाता है। जिसके अंतर्गत भारत नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों तथा गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर बल देगा वर्ष 2020 में भारत द्वारा वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिए भारत स्टेज -6 मानदंड लागू किए गए हैं। भारत 40 प्रतिशत गैर जीवाश्म ईंधन पर निर्भर होगा उत्सर्जन को अवशोषित करने के लिए कार्बन सिंक की स्थापना करेगा।

जलवायु परिवर्तन पर विकसित तथा विकासशील दोनों का दायित्व होगा अधिक दायित्व विकसित तथा कम दायित्व विकासशील देशों पर जिसका कारण है कि औद्योगिकरण विकसित देशों द्वारा किया गया। इसमें पारदर्शिता पर बल दिया गया है प्रत्येक राष्ट्र को विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे उत्सर्जन को दर्ज करना होगा इसके लिए नेशनल इन्वेंटरी आफ एमिशन को स्थापित करना होगा । पेरिस घोषणापत्र का पुनरावलोकन वर्ष 2023 से शुरू कर दिया जाएगा प्रत्येक 5 वर्षों में मूल्यांकन किया जाएगा विकसित देश विकासशील देशों को तकनीकी हस्तांतरण करेंगे ताकि उत्सर्जन में कमी लाई जा सके।

पेरिस घोषणा पत्र के कुछ कमियां रही जिसके वजह से यह कम प्रभावी होता दिख रहा है घोषणा पत्र में उन द्वीपों की चर्चा नहीं की गई है जो आगामी वर्षों में जलमग्न हो जाएंगे । इस घोषणापत्र में कार्बन बजट का जिक्र नहीं है इस घोषणापत्र का विंडो पीरियड 5 वर्ष का है जहां देश और अधिक उत्सर्जन करेंगे और भूमंडलीय तपन को बढ़ा देंगे। भारत के साथ समस्या है कि भारत को इस घोषणा पत्र को लागू करना है तो उसे यथाशीघ्र विकसित होना होगा।

पेरिस घोषणा पत्र आसानी से साध्य होता नजर नहीं आ रहा है अमेरिका जो कि विश्व का बड़ा उत्सर्जन देश है इससे बाहर होने की घोषणा कर चुका है जिससे उसका व्यापार औद्योगिक उत्पाद प्रभावित होने का भय हैं भूमंडलीय तापन का नकारात्मक प्रभाव यह है कि इसके कारण महासागरों का जलस्तर बढ़ता है ना केवल ध्रुवो पर उपलब्ध बर्फ के पिघलने से बल्कि जल का तापीय प्रसार  भी होता है जलस्तर बढ़ने से तटीय क्षेत्र जलमग्न हो जाएंगे जहां विश्व की तीस पर्सेंट आबादी रहती है प्रति व्यक्ति पीने वाले साफ पानी की उपलब्धता में कमी आएगी । भूमंडलीय तापमान में वृद्धि के कारण छोभ मंडल के तापमान में वृद्धि होगी जिससे छोभ मंडल समताप मंडल के तापमान में अंतर आएगा और बादलों का अनियमित निर्माण होगा परिणाम स्वरूप अनियमित वर्षा होगी ।

बाढ़ और सूखे जैसे आपदाओं की बारंबारता बढ़ जाएगी । भूमंडलीय तापमान बढ़ने से फसलें या तो सही से उगेंगे नहीं या समय से पहले पकने से खाद्यान्न उत्पादन प्रभावित होने का भय हैं नदियों में पानी की अनियमितता के वजह से कृषि सिंचाई बड़े स्तर पर प्रभावित होगी साथ ही मानव जीवन के स्वास्थ्य पर भी इसका विपरीत असर पड़ेगा बीमारियों की बारंबारता बढ़ेगी तथा स्वास्थ्य खर्च में वृद्धि होगा और बड़ी जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे आ जाएगी अलावा तापमान नियंत्रण करने वाला हाइपोथैलेमस तापमान को नियंत्रित करने में विफल होगा तथा मनुष्य के साथ-साथ पशु पक्षी और जीव -जंतु इससे बुरी तरीके से प्रभावित होंगे और काल के गाल में समा जाएंगे इस तरह सौरमंडल का एकमात्र जीवित ग्रह पृथ्वी जीव जंतुओं से विहीन होता चला जाएगा इसका प्रमुख कारण मानवीय गतिविधियां है ।

भूमंडलीय तापन एक वैश्विक समस्या है इसका समाधान सारे देशों को मिलकर ही लेना होगा हाल के मिलने वाले संकेत की गंभीरता को देखते हुए भूमंडलीय तपन और जलवायु परिवर्तन पर बाध्यकारी निर्णय लेने की आवश्यकता है ताकि मानव जीवन को सुरक्षित करने के साथ सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।                     

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