गंगा दशहरा महोत्सव पर गंगा स्तवन
- Posted By: Alopi Shankar
- साहित्य/लेख
- Updated: 20 June, 2021 20:44
- 2038

प्रकाश प्रभाव न्यूज़ प्रयागराज
संग्रहकर्ता - सुरेश चंद्र मिश्रा "पत्रकार"
।।गंगा दशहरा महोत्सव पर गंगा स्तवन।।
जय जयति हरि पद निःसृता जग वंदिता सुख कारिणी ।
जय वेद गर्भ महत्कमंडलु वासिनी अघ हारिणी।।
रवि वंश नृप वरदाइनी अनपाइनी भागीरथी।
शिव जटा जूट विराजिता अपराजिता जय सत्पथी।।
जय जयति सुरसरिते त्रिपथगा जयति नगपति बालिके ।।
देवा पगा जय वैष्णवी पापादि मल
प्रक्षालिके ।
हरिलोक दिव्य प्रदायिनी गिरिराज वक्ष विहारिणी।
तव तीर लखि भव भीर खंडित मोद मंगल कारिणी।।
शुभ नीर कोटिक नक्र चक्र सु चक्रवाक सदा रता।
झख हंस साधक परम हंस सुकूल सेवित शुभ लता।।
मुनि जन निरंतर परम धन हरि चरन तव तट पावहि।
निरखत तरंग अनंग नाशक उमहिं मुदित लखावहीं।
शुभ तीर्थ गंगा द्वार पुनि हरिद्वार जहं ऋषि मुनि लसें।
पुनि तीर्थराज प्रयाग जहं भरि मास सुर किन्नर बसें।
गंधर्व चारण सिद्ध रहि भरि माघ जन्म सफल करें।
नर नारि लखि तव वारि प्रमुदित पुण्य पुंज ह्रदय भरे।
तव तीर अमृत कुंभ धरि हरि द्वार तीर्थ प्रयाग में।
छलक्यो सुधा तबते मनावत कुंभ भरि अनुराग में।
आनंद वन काशी मुदित अभिषेक करि विश्वेश के।
कीटक गई पावन करीं मालद मनोहर देश को।
पुनि आइ पाटलि पुत्र मागध प्रांत धन्य बनाइ के।
पुनि अंग बंग कलिंग जनपद धर्म ध्वज फहराइके।।
प्रस्थित भईं योगी कपिल जहं वास निसि वासर करें।
जिनके सुलोचन के प्रवल पावक सगर के सुत जरे।।
तव नीर अमृत परसि सब नृप सुत चतुर्भुज धारि के।
वैकुंठ यात्रा पर गए सब शोक मोह बिसारि के।।
तव नीर जे मज्जन करें सब पाप राशि जरावहीं।
धर्मार्थ मोक्षादिक पदार्थ प्रयास बिन नर पावहीं।
कह दास निर्मल जे बसें तव तीर बड भागी बनें।
कलिमल मनोमल धोई रघुवर चरण अनुरागी बनें।।
जोजन रहें शत दूर मज्जन काल जे गंगा कहें।
सब भुक्ति पावें जगत में पुनि मुक्ति तन त्यागे लहें।।
गंगा दशहरा शुभ मुहूरत देखि यह रचना भई ।
जे गाइहैं ते पाइहैं रघुपति भगति नित नित नई ।।
दोहा।। यह श्री गंगा स्तवन जो गइहैं धरि ध्यान।।
सुरेश,, वैभव यश भगति तिनहिं देहिं भगवान।।
।।जै जानकी जीवन।।
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