"बुरा न मानो होली है"।
- Posted By: Alopi Shankar
- साहित्य/लेख
- Updated: 30 March, 2021 17:47
- 1996

प्रकाश प्रभाव न्यूज़ प्रयागराज
संग्रहकर्ता एवं लेखक सुरेश चंद्र मिश्रा "पत्रकार"
"बुरा न मानो होली है"।
नहीं कहीं उल्लास था कहीं न दिखी उमंग।
होली के इस साल सब हुए रंग बदरंग।।
हुए रंग बदरंग डराता है कोरोना।
महाराष्ट्र पर लगा किसी दुश्मन का टोना।।
उद्धव की सरकार खा रही है हिचकोला।
परम जीत ने पोल कुअवसर लख कर खोला।।
कोरोना से लड़ रही महाराष्ट्र सरकार।
होली पर रोगी मिले हैं चालीस हजार।।
हैं चालीस हजार मची चहुं ओर उगाही।
मंत्री नेता पुलिस फीस लेते मन चाही।।
कह निर्मल कविराय भरो भरपूर खजाना।
मौका दुसरी बार न अब जीवन मे आना।।
उत पूरब बंगाल में मचा युद्ध घनघोर।
सुन कर जै श्री राम हैं दीदी करती शोर।।
दीदी करती शोर कटमनी रिस्वत टोला।
गुंडा गर्दी मार पीट फूटें हंथगोला।।
भद्रलोक हैं देख रहे ममता का खेला।
लगी खरोंच पैर में तो कर दिया झमेला।।
अमित शाह ने हर तरफ से फैलाया जाल।
ममता दीदी कै लिये बहुत बड़ा जंजाल।।
बहुत बड़ा जंजाल सभी रूठे नर नारी।
नाकों दम कर डाले हैं शुभेंदु अधिकारी।।
मिथुन चक्रवर्ती ने नमक जले पर डाला।
लगता है निकलेगा अबकी बार दिवाला।।
नेताओं को छोड़ कर सारी जनता त्रस्त।
ये लाखों की भीड़ में भी रहते हैं मस्त।।
ये रहते हैं मस्त रात दिन करते रैली।
कोरोना छू सका न इनकी चादर मैली।।
निर्मल हज्जारों की भीड़ जुटाते मोदी।
ये न पांजिटिव हुए न रोगी हुए विरोधी।।
खुद लाखों के बीच मे हैं कर रहे प्रचार।
लेकिन जनता के लिए लादे नियम हजार।
लादे नियम हजार न घर से बाहर जावो।
कथा कीर्तन शादी ब्याह न करो करावो।।
कह सुरेश कविराय बंद यात्रा करदोना।
रोटी को तरसायेगा पापी कोरोना।।
बुरा न मानो होली है।।
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