पूरे रीति रिवाज के साथ शवों का अंतिम संस्कार करना क्या परिवार वालों का फर्ज नहीं
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- साहित्य/लेख
- Updated: 26 May, 2021 10:00
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पी पी एन न्यूज
(कमलेन्द्र सिंह)
फतेहपुर।
पूरे रीति रिवाज के साथ शवों का अंतिम संस्कार करना क्या परिवार वालों का फर्ज नहीं
गंगा नदी में मिलने वाले मानव शव किसी अपनों के ही होंगे।किसी का बेटा होगा या किसी का पिता।मिलने वाले यह शव किसी की मां व बेटी भी हो सकती है। लेकिन गंगा नदी में इन शवों के मिलने के बाद जिस तरह से हो हल्ला मचा आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला,इसे लेकर जिला प्रशासन को ही नहीं बल्कि सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया गया। ऐसा लगा शवों के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी सरकार और जिला प्रशासन की ही है।
ऐसे में क्या जिस महामारी ने जिनके अपनों को छीन लिया क्या ऐसे परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारी नहीं है कि वह मरने वाले सदस्यो का अंतिम संस्कार पूरे रीति रिवाज के साथ खुद करें। आखिरकार मरने वाला उनका अपना ही तो है फिर किसी पर दोष मढ़ना कितना उचित है। क्या ऐसे में अपने अंतर्मन को खुद टटोलने की जरूरत नहीं है।
भागीरथी ने अपने पूर्वजो का अंतिम संस्कार करने को लेकर मां गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाने का प्रयास किया था। तभी से यह मानता है कि जो भी गंगा नदी में स्नान करता है उसके सारे पाप धुल जाते हैं,इतना ही नहीं शव का अंतिम संस्कार गंगा नदी में करने के बाद उसे स्वर्ग मिलता है। तभी से हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शवों का अंतिम संस्कार गंगा नदी में होने की परंपरा शुरू हुई। किसी ने शव को जलाना उचित समझा तो किसी ने शव को ही गंगा नदी में प्रवाह कर दिया। यह परंपरा बराबर शुरू रही लेकिन गंगा नदी में बढ़ते प्रदूषण के बाद शवों के प्रवाह पर रोक लगा दी गईऔर अब अस्थियो को ही गंगा नदी में प्रवाह करने की इजाजत है। इन सभी परंपराओं को मृतक के परिवार वाले पूरी करते है।
महामारी के इस माहौल में जब मरने वालों की संख्या बढ़ी तो बहुतों ने अपनों को ही खो दिया। मौत किसी की भी हो दुखद होती है लेकिन यह भी तय है कि अंतिम संस्कार को पूरा करना मरने वाले परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारी ही नहीं बल्कि उनका फर्ज भी होता है। अपने अपने धर्मों के अनुसार अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था करनी चहिये। लेकिन जब उनके अपनों ने ही इस अंतिम यात्रा में उन्हें अधूरा छोड़ दिया तो फिर सारा दोष किसी दूसरे पर मढ़ना कितना उचित और कितना सही होगा।गंगा नदी के किनारों पर मिलने वाले शवों पर राजनीति करना और भी अधिक शर्मसार करती है।
लोकतंत्र में राजनीत होती रही है और होती रहेगी पक्ष विपक्ष रहेंगे। आरोप-प्रत्यारोप चलता रहेगा। शवों पर राजनीति करना या फिर ऐसे माहौल में राजनीत का अवसर तलास करना भी उचित नहीं।
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