आखिर क्या है भारत -चीन संबंधों का यथार्थवाद ??

आखिर क्या है भारत -चीन संबंधों का यथार्थवाद ??

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आखिर क्या है भारत -चीन संबंधों का यथार्थवाद ??

भीम सिंह बघेल, स्वतंत्र टिप्पणीकार

जब से चीन में साम्यवाद का प्रभाव पड़ा भारत से संबंधों को चीन संदेह की नजर से देखता है जबकि दुनिया के दो अद्भुत प्राचीन सभ्यताओं भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक संबंध शताब्दी से ज्यादा पुराने हैं दोनों देश प्राचीन रेशम मार्ग के माध्यम से जुड़े थे अपनी स्वतंत्रता के बाद भारत पहला गैर समाजवादी देश था जिसने चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए दोनों देशों ने तिब्बत पर 8 वर्षीय समझौते के साथ पंचशील (शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के पांच सिद्धांत) जिसने 1954 में दोनों देशों के संबंधों की आधारशिला रखें हालांकि दोनों देशों के बीच जल्दी संबंधों में खटास आ गई जब सीमा विवाद उत्पन्न हो गया। 1959 में जनवादी गणराज्य चीन के प्रधान  झाओ एन लाई ने नेहरू को लिखा और उनके सीमाई दावे को अस्वीकार कर दिया और कहा कि सीमा जो की मैक मोहन रेखा के आधार पर निर्धारित हैं उसको किसी भी सरकार के द्वारा स्वीकार्य नहीं किया सकता। मैक मोहन रेखा 1914 में शिमला सम्मेलन के दौरान भारत और तिब्बत के मध्य पूर्व सीमा खंड के रूप में निर्धारित की गई।

लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक 3488 किलोमीटर की लंबी सीमा रेखा जैसे वास्तविक नियंत्रण रेखा कहा जाता है जिसको लेकर अक्सर भारत और चीन के बीच संघर्ष की स्थिति बन जाती हैं सुखद यह है कि 40 वर्षों में चीनी सीमा पर गोलियां नहीं चली है। हाल की गलवान घाटी के घटना के बाद भारत -चीन संबंध क्या चीन द्वारा  परोसे गए कोरोना संकट से जूझ रहे  विश्व को भ्रमित करने के प्रयास का हिस्सा भी हो सकता है आइए इस पर समीक्षा करते हैं आखिर चीन की गतिविधियां विश्व की शांति और सुरक्षा में कैसे बाधा उत्पन्न कर रही है।

रणनीतिक और सीमा मुद्दे के परिपेक्ष में 1962 के दोनों देशों के सीमा युद्ध के बाद से भारत और चीन के पास रणनीतिक प्रतिद्वंदिता रखते हैं। वर्तमान राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के अंतर्गत चीन पाकिस्तान परमाणु और मिसाइल सहयोग, हिंद महासागर में चीन का बढ़ता प्रभाव और चीन के द्वारा भारत को चारों ओर से घेरने की रणनीति के तहत दीर्घकालीन रणनीतिक पर काम करता है।भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन के शामिल होने का समर्थन किया था और आज भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने प्रवेश की लिए चीन के समर्थन की अपेक्षा करता है इसी तरह एनएसजी (परमाणु अप्रसार संधि) में सदस्यता के लिए चीन से अपेक्षा की जाती है। चीन अमेरिका और भारत के सहयोग से निपटने के लिए भारत के साथ निवेश और व्यापार संबंधों को बढ़ाने के अपेक्षा करता है। इसके अंतर्गत चीन भारत के साथ कोई उत्तेजना पूर्ण गतिविधि करने से बचने की कोशिश में है ताकि दोनों देशों के मध्य दीर्घकालीन संबंधों में मजबूती आ सके। दोनों देशों के मध्य अन्य रणनीतिक मुद्दों में नई दिल्ली के द्वारा पूर्ण रूप से परमाणु क्षमता विकसित करना, पूर्वी एशिया में विदेश नीति को और मजबूती देना शामिल है मध्य एशिया में तेल भंडार क्षेत्रों को लेकर दोनों देश प्रतिस्पर्धी बनकर उभरे हैं।

दोनों देशों के मध्य विश्वास में कमी के कई कारक है चीन की आक्रामक नीतियां और सीमा विवाद पर सैन्य हस्तक्षेप इसमें प्रमुख हैं। चीन की विदेश नीति में उतार चढ़ाव और भारत के परमाणु परीक्षण का तीव्र विरोध ने दोनों देशों के मध्य अविश्वास को मजबूत किया। भारत के पड़ोसी देशों में भारत चीन के हितों का टकराव हिंद महासागर में 'स्ट्रिंग आफ पल्स' की नीति का विकास भारत के लिए असहनीय हैं। दक्षिण चीन सागर में भारत की उपस्थिति और वियतनाम के सहयोग से तेल का उत्खनन करना चीन के लिए असहनीय है । इसके अलावा पाकिस्तान के परमाणु विकास और मिसाइल निर्माण में चीन का प्रत्यक्ष सहयोगी भारत के संबंधों में बाधक है ।भारत को ध्यान में रखकर चीन ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं इसी का परिणाम है कि दोनों देश भारत के प्रति विरोधी रवैया अपनाते हैं।

भारत और चीन के मध्य लंबे समय से चले आ रहे हैं सीमा मुद्दे हैं और इसके कारण दोनों देश के मध्य युद्ध भी हो चुका है। जो कि भारत जैसे नए लोकतंत्र के लिए 1962 में हुआ था। भारत को चीन की आक्रामक नीति पर संदेह रहता है जैसा की माओ ने चीन की हथेली इसको तिब्बत और पांच उंगलियां जिसे क्रमशः नेपाल ,सिक्किम, भूटान ,नेपाल और लद्दाख के रूप में व्याख्या की है।भारत और चीन के मध्य सीमा समस्या का मूल अंग्रेजी काल के दौरान से हैं बीजिंग का मानना है कि शिमला समझौते के बाद अंग्रेजों ने पूर्वी भारत के क्षेत्र में 90000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र गैरकानूनी तरीके से हथिया लिया था।

इसकी वजह से चीन मैक मोहन रेखा को स्वीकार नहीं करता है और इसीलिए वहां अरुणाचल प्रदेश का लगभग संपूर्ण क्षेत्र अपना मानता है, जिसको वह दक्षिणी तिब्बत कहता है दूसरी तरफ भारत मैक मोहन रेखा को ही चीन के साथ वास्तविक सीमा मानता है। चीन ने जम्मू-कश्मीर का 40000 वर्ग किलोमीटर  का क्षेत्र कानूनी रूप साथिया रखा है जिसको वह सी ओ के (चीन अधिकृत कश्मीर) कहता है।चीन के साथ वास्तविक सीमा रेखा के आसपास का क्षेत्र धीरे धीरे चढ़ता जा रहा है और भारत को अपनी पर्याप्त भूमि गवानी पड़ी है भारतीय सीमा के अंदर चीनी सैनिक रह रह कर घुसपैठ करते रहते हैं, इसके अलावा जब कोई राजनयिक अरुणाचल प्रदेश की यात्रा करते हैं तो चीन प्रतिक्रिया करता है और एशियाई विकास बैंक से अरुणाचल प्रदेश के लिए ऋण देने को मना करवाता है। चीन की सेना द्वारा विवादित क्षेत्र में राहत सामग्री भेजना मामले को और गंभीर कर देता है। भारत और चीन सीमा वार्ताएं उसके विशेष प्रतिनिधियों के मध्य कई दौर की हो चुकी हैं लेकिन अभी कोई समाधान नहीं निकल पाया है मध्य क्षेत्र,पश्चिम और पूर्वी क्षेत्र में अभी भी विवाद बना हुआ है।

2013 में चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा से 20 किलोमीटर अंदर दौलत बेग ओल्डी तक घुस गई थी और अपने टेंट स्थापित कर लिए थे भारतीय सेना ने भी उसके सामने आकर अपने पंडाल लगा दिए थे आखिर में दोनों देशों के मध्य बीच का रास्ता अपनाया गया और चीन को अपनी सेनाएं वापस लौटा नहीं पड़ी फरवरी 2014 में भारत और चीन ने अतिरिक्त विश्वास बहाली के उपाय किए जिसमें सीमा रक्षा सहयोग समझौता का कार्यान्वयन करने के साथ मूल सीमा मुद्दों पर एक फ्रेमवर्क बनाने पर सहमति व्यक्त की गई तत्पश्चात 2017 में डोकलाम पर विवाद हुआ।

भारत और चीन संबंध के बीच तिब्बत का मुद्दा भी एक प्रमुख समस्या हैभारत की मदद से तिब्बती प्रतिनिधियों ने पीआरसी (जनवादी गणराज्य चीन) की संप्रभुता की मान्यता के लिए 1951 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसमें तिब्बत की विद्यमान सामाजिक एवं राजनीतिक प्रणालियों को बनाए रखने पर सहमति बनी।भारत ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र को चीन के अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार किया और भारतीय जमीन से दलाई लामा की किसी भी तरह की चीन विरोधी गतिविधियों के खिलाफ विचार व्यक्त किए हालांकि दलाई लामा के मामले में चीन अधिकारी भारत के रुख को शंका की दृष्टि से देखते हैं। तिब्बती सरकार का भारतीय क्षेत्र में संचालन ही चीन को सशंकित करता आ रहा है।

चीन पिछले 50 वर्षों से पाकिस्तान का रणनीतिक और सन सहयोगी रहा है दोनों देश भारत को नियंत्रित करने के लिए साझा हित रखते हैं चीन हिंद महासागर में पाकिस्तान को एक सुरक्षित मित्र मानता है पाकिस्तान सार्क में चीन की उम्मीदवारी का समर्थन करता है जबकि भारत इस पक्ष में नहीं है चीन द्वारा पाकिस्तान को दी जा रही सैन्य मदद पाकिस्तान को सशक्त कर रही है जम्मू कश्मीर और अन्य भारतीय भागों मेंछद्म युद्ध को संचालित करते रहने को प्रोत्साहित कर रही हैं चीन पाकिस्तान को अतिरिक्त परमाणु रिएक्टर उपलब्ध करा रहा है इसके अलावा 1963 में पाकिस्तान ने शाक्स गांव घाटी चीन को दे दी थी । चीन ने काराकोरम हाईवे को निर्माण इस पट्टी के बहुत नजदीक किया चीन ने पाकिस्तान को परमाणु बम बनाने में मदद की चीन और पाकिस्तान संयुक्त रूप से हथियारों का निर्माण कर रहे हैं ग्वादर बंदरगाह के निर्माण में भी चीन मदद कर रहा है चीन पाक अधिकृत कश्मीर अर्थात पीओके में भी जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण में मदद कर रहा है इसके अलावा पीओके में बड़ी संख्या में सड़कों के निर्माण में भी अपनी भागीदारी कर रहा है।

हालांकि दोनों देशों के बीच संबंधों में कुछ दरारे भी देखने को मिली हैं कारगिल युद्ध के दौरान चीन ने पाकिस्तान का समर्थन नहीं किया था इसके कारण भारत चीन संबंधों में सुधार हुआ इस तरह के प्रमाण भी मिले हैं कि लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी संगठन उइघर पृथक वादियों का समर्थन कर रहे हैं । इससे चिंतित होकर चीन भारत से अपनी नजदीकियां बढ़ाने लगा है अफगानिस्तान में चीन और भारत की समान चिंता है रखते हैं कश्मीर और झिगजियांग में आतंकवादी गतिविधियों से दोनों देशों की समान चिंताएं हैं। पाकिस्तान और तालिबान लिंक दोनों देशों के लिए क्षेत्र में और असुरक्षा को बढ़ावा देता है। नई सहस्राब्दी में भारत पाकिस्तान और चीन के मध्य त्रिकोणीय संबंध क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा हालांकि पाकिस्तान इस तरह की व्यवस्था से संतुष्ट नहीं है।

चीन और अमेरिका में मतभेद के कारण भारत को त्रिस्तरीय संबंधों में लाभकारी मध्यस्थ स्थिति की भूमिका निभाने का मौका मिलता है।चीन भारत और अमेरिका के रिश्ते को  संदेहास्पद दृष्टि से देखता है। भारत और चीन अंतरराष्ट्रीय मंच जैसे कि डब्ल्यू टीओ, जलवायु सम्मेलन ऊपर एकजुटता का प्रदर्शन किया है जिसमें उसको यूएसए का विरोध भी करना पड़ा है दक्षिण चीन सागर मामले पर भारत और अमेरिका चीन के विरोध में खड़े दिखाई दिए जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक और प्रमुख सहयोगी जापान को शामिल कर लिया जापान के भी चीन के साथ लंबे समय से सीमा विवाद है जापान के साथ अमेरिका की संधि है जिसके कारण उसका साथ देना अमेरिका के लिए बाध्यकारी हैं।

चीन द्वारा श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के निर्माण में निवेश किया है दोनों परियोजनाओं से भारत की चिंता बढ़ गई हैं चीन का हंबनटोटा निवेश और शंघाई सहयोग संगठन (एस सी ओ) मैं श्रीलंका को डायलॉग पार्टनर का दर्जा दिया जाना भारत को चारों ओर से घेरने की एक रणनीति स्पष्ट दिखाई देती है ग्वादर बंदरगाह जोकि काराकोरम हाईवे से पश्चिमी चीन और अरब सागर को जोड़ता है भारत सरकार के लिए चिंता का सबब है जो कि पाकिस्तान और चीन के गठजोड़ का स्पष्ट प्रमाण है और भारतीय सुरक्षा एवं आर्थिक हितों के विपरीत हैं।

भारत ने चीन द्वारा किए जा रहे रक्षा क्षेत्र में भारी खर्च पर अपनी चिंता व्यक्त की है चीन कक्षा कक्ष का सालाना 70 अरब डालर खर्च करता है जबकि भारत का रक्षा क्षेत्र कुल खर्च मात्र 30 अरब डालर प्रति बष हैं चीनी सेना की म्यामार  के कोको द्वीप पर उपस्थिति ने अंडमान निकोबार क्षेत्र में सुरक्षा की चिंताओं को बढ़ा दिया है। में दोनों देशों ने रक्षा सहयोग पर भी समझौता किया गया है।

जहां पर वर्तमान में विश्व अमेरिका द्वारा कथित चीन में उत्पन्न किए गए बुहान कोरोनावायरस की महामारी से गुजर रहा है वहीं चीन की सीमाओं पर हलचल विश्व बिरादरी में चीन को लेकर संदेह पैदा करती हैं चीन द्वारा शुरू किए गए हैं वन बेल्ट वन रोड इनीशिएटिव से कई देशों की संप्रभुता को पहले से खतरा है दक्षिणी चीन सागर में चीन की हरकत तथा चीन -पाकिस्तान गलियारा तथा अमेरिका चीन ट्रेड वार हो , स्ट्रिंग आफ पल्स की नीति हो या चीनी चेक नीति के माध्यम से कमजोर देशों को नियंत्रण में लेने की कोशिश जैसे कदमों से विश्व शांति और सुरक्षा और देशों के संप्रभुता के लिए खतरा पैदा हो रहा है ।


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