मलवा का मशहूर मोहन पेड़ा नहीं खाया तो कुछ नहीं खाया

मलवा का मशहूर मोहन पेड़ा नहीं खाया तो कुछ नहीं खाया

PPN NEWS

पंडित सुरेंद्र शुक्ला 


कानपुर से चलकर इलाहाबाद रोड के जीटी रोड पर मोहन पेड़ा के नाम से दुकान स्तिथ है,


मैं एक बार इलाहाबाद व्यक्तिगत कार्य से जा रहा था।


 हवाओं में बसंत के कण तैर रहे थे कि अचानक पके हुए दूध और इलाइची की सोंधी और भीनी महक  खिड़कियों से होती हुई हम तक पहुंची। दिमाग में मधु मक्खियां गुंजार करने लगीं। 


मैने ड्राइवर को गाड़ी रोकने को बोला देखा तो बोर्ड लगा था, मोहन मिष्ठान भंडार मलवां। मलवां के मशहूर पेड़ा वाली दुकान। वहीं पर नाश्ता किया गया। मैंने पेड़े खाते हुए चाय पी। चाय भी इतनी मस्त थी कि दो कुल्हड़ पी गया। इतने स्वादिष्ट पेड़े कभी नही खाए जितना मलवां के पेड़े में मिठास मिला। फिर जब भी उधर से गुजरता तो एक कुल्हड़ चाय पीता और एक किलो पेड़ा जरूर खरीदता।


यह तीसरी पीढ़ी की दुकान थी। दुकान के संस्थापक मोहन गुप्ता पहले  यहां चाय पकौड़ी बेचते थे।चाय बनाने से बचे दूध को शाम को वहीं के एक हलवाई को दे दिया करते थे। जब उनकी दादी को यह बात पता चली तो उन्होंने  कहा बनिया के लड़के हो खुद पेड़ा बना के बेचो। मोहन गुप्ता ने पेड़ा बनाया और उसमें उस समय के प्रचलन में बड़ी इलायची पड़ती थी, लेकिन उन्होंने छोटी इलायची डाली जो लोगों को खूब पसंद आई। दूध को औटाने और  खोए में बदलने की टाइमिंग , उसे सिझाने चीनी की क्वालिटी और  मात्रा, इलाइची और कुछ अन्य मसाले पेड़े का स्वाद, मिठास सौ गुना बढ़ा देते हैं।


पेड़े की शुद्धता पर विशेष ध्यान देने से पेड़ा स्वाद में अद्वितीय हो गया। पेड़ा बनाने के लिए दूध जो भी आता है उसे विधिवत तरीके से देखा जाता है।चीनी की भी क्वालिटी अच्छे दर्जे की होती है पेड़ा को परंपरागत तरीके के लोहे की कड़ाही में बनाया जाता है  जिससे पेड़े में सोंधापन आ जाता है, अधिक मांग होने पर दूध औटाने के लिए ऑटोमेटिक मशीन लगाई गई है लेकिन ग्राहकों द्धारा लोहे की कड़ाही तैयार पेड़ा अधिक पसंद किया जाता है और वे पेड़े के लिए लाइन लगा कर खड़े रहते हैं।


आप कभी फतेहपुर जा रहे हों तो मलवां जरूर रुकिए, मोहन पेड़ा खाइए और दो कुल्हड़ चाय पीजिए  पर ध्यान रहे केवल मोहन पेड़ा। न्यू मोहन पेड़ा, सोहन पेड़ा, असली मोहन पेड़ा जैसी दुकानों में मत जाइएगा अन्यथा  बिसलेरी खरीदने जाएंगे बिलसारी लेकर लौटेंगे।

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