CJI गवई ने की जस्टिस सूर्यकांत को अगले मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश

CJI गवई ने की जस्टिस सूर्यकांत को अगले मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश

CJI गवई ने की जस्टिस सूर्यकांत को अगले मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश

हरियाणा के एक छोटे से गांव से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर, देश के 53वें CJI बनेंगे जस्टिस सूर्यकांत

सोमवार को भारत के न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण खबर सामने आई। मौजूदा मुख्य न्यायाधीश (CJI) भूषण रामकृष्ण गवई ने केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत को देश के अगले मुख्य न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त करने की औपचारिक सिफारिश की है। इस सिफारिश के साथ ही देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई है।

​CJI गवई का कार्यकाल 23 नवंबर को पूरा हो रहा है। अगर केंद्र सरकार इस सिफारिश को मंजूरी देती है, जो कि स्थापित परंपरा के अनुरूप ही है, तो जस्टिस सूर्यकांत 24 नवंबर को देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण करेंगे।

​करीब 15 महीने का होगा कार्यकाल: जस्टिस सूर्यकांत इस पद पर लगभग एक साल, दो महीने (लगभग 15 महीने) तक अपनी सेवाएं देंगे। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष होती है, और वह 9 फरवरी, 2027 को इस पद से सेवानिवृत्त होंगे।

​2019 में बने थे सुप्रीम कोर्ट के जज: जस्टिस सूर्यकांत को 24 मई, 2019 में सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नियुक्त किया गया था।

​हरियाणा के पहले CJI: जस्टिस सूर्यकांत हरियाणा के हिसार जिले के एक छोटे से गांव पेटवार से आते हैं। वह देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर आसीन होने वाले हरियाणा के पहले व्यक्ति होंगे। उनका जन्म 10 फरवरी, 1962 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था।

​वकालत से न्यायपालिका तक का सफर: उन्होंने 1984 में एमडीयू रोहतक से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की और हिसार जिला अदालत में वकील के तौर पर करियर की शुरुआत की। बाद में उन्होंने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में प्रैक्टिस की और विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया।

​कई अहम फैसलों में रहे शामिल: सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस सूर्यकांत कई प्रमुख मामलों की सुनवाई करने वाली पीठों का हिस्सा रहे हैं, जिनमें राजद्रोह कानून (Sedition Law) के प्रावधान को स्थगित करने जैसा ऐतिहासिक फैसला भी शामिल है। यह कानून अब हटा दिया गया है, और इसकी जगह भारतीय न्याय संहिता में नया प्रावधान आया है, जो देश के खिलाफ कृत्यों से संबंधित है।

​यह नियुक्ति भारतीय न्यायपालिका में संस्थागत निरंतरता और वरिष्ठता की स्थापित परंपरा को दर्शाती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि देश के न्यायिक नेतृत्व में सहज परिवर्तन हो।

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