प्राचार्य का फर्जीवाड़ा आया सामने, मचा हड़कंप

प्राचार्य का फर्जीवाड़ा आया सामने, मचा हड़कंप

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PPN NEWS

रायबरेली

सर्वेश यादव की रिपोर्ट

प्राचार्य का फर्जीवाड़ा आया सामने, मचा हड़कंप


कुछ भी कहने को तैयार नहीं है महाविद्यालय के प्रबंध समिति के सचिव


बछरावां रायबरेलीl निरंतर अपने अधिकारियों एवं कर्मचारियों के कारनामों से चर्चा में बना रहने वाला बछरावां के गांधी कहे जाने वाले मुंशी चंद्रिका प्रसाद की तपोस्थली दयानंद बछरावां डिग्री कॉलेज एक बार फिर अपने सनसनी खेज मामले को लेकर लोगों में चर्चा का केंद्र बन चुका हैl

जानकारी के अनुसार आपको बताते चले की वर्तमान समय में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर सुभाष चंद्र श्रीवास्तव की नियुक्ति को लेकर एक अजीबोगरीब तथ्य सामने निकल कर आ रहा है, जब संवाददाता ने इन तथ्यों की गहनता से जांच की तो प्राप्त साक्ष्य के आधार पर दैनिक समाचार पत्र दैनिक जागरण कानपुर संस्करण में 20 अगस्त 1985 को दयानंद बछरावां डिग्री कालेज रायबरेली के तत्कालीन सचिव नागेंद्र स्वरूप की संतुति में प्राचार्य पद एवं हिंदी, अंग्रेजी संस्कृत, समाजशास्त्र, शिक्षाशास्त्र राजनीति शास्त्र विषय के प्रवक्ता पद के लिए विज्ञापन निकाला गया और विज्ञापन की समयावधि 21 दिन तक के लिए मान्य की गईl उक्त पदों पर विभिन्न लोगों ने अपनी अपनी शैक्षिक योग्यता के आधार पर आवेदन किया थाl


जिसमें हिंदी प्रवक्ता के पद के लिए वर्तमान प्राचार्य डॉक्टर सुभाष चंद्र श्रीवास्तव ने भी आवेदन कियाl लेकिन ताजुब की बात यह रही कि जब 20 अगस्त 1985 में निकले इस विज्ञापन में हिंदी प्रवक्ता के पद के लिए इन्होंने आवेदन किया तो उस समय इनके पास परास्नातक की डिग्री नहीं थी क्योंकि प्राप्त साक्ष्य के आधार पर इन्होंने आचार्य नरेंद्र देव डिग्री कॉलेज बभनान जनपद गोंडा संबद्ध डॉक्टर राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या उत्तर प्रदेश से वर्ष 1988 में परास्नातक की डिग्री प्राप्त कीl जिसमें उनके पूर्णांक 1100 में 590 प्राप्तांक थे, जिसका प्रतिशत लगभग 53% थाl इस संबंध में जब संवाददाता ने दूरभाष के माध्यम से महाविद्यालय के प्रबंध समिति के सचिव गौरवेंद्र स्वरूप से बातचीत करने की कोशिश की तो उन्होंने इस संबंध में बात करने से साफ इनकार कर दिया और अपनी जवाब देही से पल्ला झाड़ लियाl अब सोचनीय विषय यह है कि आखिरकार हिंदी विषय के प्रवक्ता पद के लिए इनका अनुमोदन उच्च शिक्षा आयोग के द्वारा कैसे कर दिया गया जबकि उनकी परास्नातक की डिग्री वर्ष 1988 में पूर्ण हुई और विज्ञापन वर्ष 1985 में 21 दिन के लिए मान्य थाl


अब ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी हो जाता कि आखिरकार वर्तमान प्राचार्य डॉक्टर सुभाष चंद्र श्रीवास्तव की नियुक्ति को लेकर या तो महाविद्यालय की प्रबंध समिति को गुमराह करने का काम किया जा रहा है या फिर प्राचार्य द्वारा जिम्मेदारों तक येन, केन, प्रकारेण कुछ लाभ पहुंचा कर दाल में कुछ काला होने की और संकेत कर रहा हैl

संवाददाता को सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्तमान प्राचार्य डॉक्टर सुभाष चंद्र श्रीवास्तव द्वारा किए गए इस फर्जीवाडे को लेकर उच्च शिक्षा सचिव उत्तर प्रदेश, राज्यपाल महोदय उत्तर प्रदेश, कुलपति लखनऊ विश्वविद्यालय, रजिस्टर लखनऊ विश्वविद्यालय  एवं प्रबंध सचिव दयानंद ट्रस्ट कानपुर को भी शिकायती पत्र भेजे जा चुके हैंl

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