किसान की दयनीय दशा व मजबूरी
                                                            किसान की दयनीय दशा व मजबूरी
*पी पी एन न्यूज*
*(कमलेन्द्र सिंह)*
फतेहपुर।
*जमीन जल चुकी है आसमान बाकी है,*
*सूखे कुएं तुम्हारा इम्तिहान बाकी है।*
*वे जो खेतों की मेढ़ों पर उदास बैठे हैं*
*उनकी आंखों में अब तक ईमान बाकी है।*
*बादलो बरस जाना समय पर इस बार*
*किसी का मकान गिरवी है किसी का लगान बाकी है।*
भारत में सबसे अधिक गांव है।गांवों में रहने वाले अधिकतर व्यक्ति किसान हैं जो कृषि का कार्य करते हैं। इसलिए भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है! लगभग 70 प्रतिशत भारतीय किसान हैं यह वही किसान है जो खेतों में दिन-रात मेहनत करके मनुष्य जाति के लिए अन्नदाता के रूप में प्रसिद्ध है पर आज के किसान की दशा बद से बदतर अर्थात दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। आखिर किसान गरीब क्यों है। किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर क्यों है। ये ऐसे सवाल हैं जिनका दशकों से जवाब ढूंढा जा रहा है। बड़ी-बड़ी रिपोर्टें आ चुकी हैं। इनमें से कई लागू भी हुईं, तो कई दबा दी गईं लेकिन दु:ख की बात यह है कि किसानों की दशा सुधारने के लिए जो उपाय किए गए उनका अब तक कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया।
यदि देखा जाए तो स्वतंत्र भारत से पूर्व तथा स्वतंत्र भारत के पश्चात एक लंबी अवधि व्यतीत होने के बाद भी भारतीय किसानों की दशा में 19-20 का ही अंतर दिखाई देता है। जिन अच्छे किसानों की बात की जाती है, उनकी गिनती उंगलियों पर ही की जा सकती है। बढ़ती आबादी, औद्योगिकीकरण एवं नगरीकरण के कारण कृषि योग्य क्षेत्रफल में निरंतर गिरावट आई है।
अगर देखा जाए तो देश में किसानों की संख्या कम, खेत मजदूरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जिसका कारण हम यह भी कह सकते हैं कि आज का किसान लगातार गरीब होता जा रहा है। पुरानी कहावत है कि भारतीय किसान कर्ज में जन्म लेता है, कर्ज में ही पूरा जीवन रहता है और कर्ज में ही मर जाता है। आज का किसान इतना लाचार है कि वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा भी नहीं दिला पा रहा। हालात यहां तक आ गए हैं कि यदि फसल अच्छी न हो तो किसान आत्महत्या कर लेता है तथा यदि फसल अच्छी भी हो जाए तो मंडी में उपज का वह दाम नहीं मिलता जिस दाम की वह अपेक्षा रख कर मेहनत करता है। केवल फसलों का सही प्रकार से मुआवजा न मिलना किसान की आत्महत्या का कारण नहीं है। भूजल के स्तर में भारी गिरावट भी किसान की बेहाली का सबसे बड़ा कारण मानी जा सकती है।
मानसून की विफलता, सूखा, कीमतों में वृद्धि, ऋण का अधिक बोझ आदि परिस्थितियां समस्याओं के एक चक्र की शुरूआत करती हैं। बैंकों, महाजनों, बिचौलियों आदि के चक्कर में फंसकर भारत के विभिन्न हिस्सों के किसानों ने आत्महत्या की है। एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार 1990 के बाद भारत में प्रतिवर्ष 10000 से अधिक किसान आत्महत्या करते आ रहे हैं। देश में किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं तथा इस कारण लोग खेती छोड़कर अलग-अलग पेशा अपना रहे हैं। हालात इस हद तक बिगड़ चुके हैं कि किसानों को आए दिन आंदोलन करने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। जब रोष-प्रदर्शन करने पर भी कुछ नहीं मिलता तो किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
ऐसा भी नहीं है कि राज्य व केंद्र सरकार किसानों की ऐसी दशा देख कर परेशान नहीं है। सरकार की ओर से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं कि किसानों की आत्महत्याओं में किसी तरह कमी लाई जा सके। इस बारे में सोचते हुए सरकार अनेक योजनाएं भी बना रही है, जिनमें से मुख्य रूप से किसानों की दयनीय दशा को देखते हुए अनेक राज्य कृषि ऋण को माफ करने की दिशा में कदम उठा रहे हैं परंतु ऐसा करना समस्या का दीर्घकालीन समाधान नहीं कहा जा सकता। किसान और कृषि प्रधान देश का जो नारा संसद तक ही सीमित रहा, उसे आज पूरे भारत में लागू करना होगा। किसानों की समस्या का एक ही समाधान है और वह है कि कृषि लागत पर नियंत्रण और कृषि उपज की सही कीमतें सुनिश्चित करना। खेती के लिए उन्हें इतनी सुविधाएं मिलें कि वे इसे बोझ न समझें।
सरकार ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। इस संदर्भ में फसल बीमा योजना अभूतपूर्व है। सभी मौसमों में प्रत्येक फसल के लिए बीमा योजना का लाभ उठाया जा सकता है। सभी फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ा दिया गया है। बिजली से वंचित गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए एक व्यापक योजना बनाई जा रही हैं। किन्तु विडम्बना ये है कि सरकार के अपने मातहत मुलाजिम अधिकारी इन किसान हितकारी योजनाओं का सही ढंग से क्रियान्यवयन करने के प्रति तनिक भी गम्भीरता नहीं दिखाते हैं। जिसकी वजह से
वर्तमान मोदी सरकार के लिए कृषि क्षेत्र की समस्याओं को दूर करना एक बड़ी चुनौती है। जबकी मोदी सरकार बनते ही प्रधानमंत्री कृषि सम्मान योजना के दायरे को बढ़ाया गया है। इसमें देश के हर किसान को शामिल करने की मंजूरी दी गई है। कहीं न कहीं सरकार भी समझती है कि क्षेत्र की समस्याओं को दूर किए बिना देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार नहीं दी जा सकती।
किसानों को कृषि के साथ-साथ अन्य छोटे-छोटे व्यवसाय भी अपनाने चाहिएं ताकि उनकी आमदन के स्रोत बढ़ जाएं और उन्हें कठिनाइयों से छुटकारा मिल सके। लेकिन ऐसी दशा नहीं आनी चाहिए कि किसान को स्वयं कहना पड़े : *क्या खूब तरक्की कर रहा है अब देश देखिए खेतों में भू माफिया और सड़कों पर किसान खड़े हैं*
                                                                    
                                                        
                                                                
                                                                
                                                                
                                                                
            
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