जाति पर आधारित राजनीति राष्ट्र के लिए घातक

जाति पर आधारित राजनीति राष्ट्र के लिए घातक

,प्रतापगढ 



01.02.2022



रिपोर्ट--मो.हसनैन हाशमी



जाति पर आधारित राजनीति राष्ट्र के लिए घातक



 यूं तो सृष्टि की संरचना से अब तक प्रकृति के आनंद का उपभोग करने वाला हर प्राणी, समय-समय पर आप पर बीती परिस्थितियों का अनुभव करता रहता है। लेकिन जो देखने, सुनने और भोगने से एहसास हुआ है, उसके अनुसार बड़ी दृढ़तापूर्वक कहा जा सकता है कि ईश्वरीय शक्ति के आधार पर प्रकृति में परिवर्तन जमाने से होता चला आ रहा है, हो रहा है और होता रहेगा।प्रकृति के परिवर्तन के तमाम उदाहरणों में एक विशेष उदाहरण है कि"रोज सुबह को दिन चढ़ता है शाम को ढलता है, जमाना रंग बदलता है"जब प्रकृति में परिवर्तन होता रहता है तो प्राणियों में रहन-सहन, खान-पान, बोलचाल, उठने बैठने, व्यवहार करने आदि ने भी परिवर्तन होना स्वाभाविक है। बल्कि यूं कहिए कि "परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है"।

       एक लंबी अवधि तक गुलाम रहने के बाद राष्ट्र ने कुर्बानियां देकर आतताई अंग्रेजों के शासनकाल से मुक्ति पाई और 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ, अपने देश का संविधान बना और उसी के अनुसार 26 जनवरी 1950 से व्यवस्था संचालित हुई।

       भारत में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी और सभी जाति व धर्म के लोगों को साथ लेकर एक लंबे अंतराल तक कांग्रेस का शासन रहा। जहां तक मेरी समझ है, उस कार्यकाल में___

       " हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई।

 आपस में है भाई भाई"

का फॉर्मूला बड़ी दृढ़ता से लागू होता रहा। सभी जाति व धर्म के नागरिकों को सरकारों में भी भागीदारी सुनिश्चित करने का अवसर मिलता रहा। काम करने वाले का विरोध होना स्वाभाविक है। राजनीतिक क्षेत्र में भी विरोध के स्वर उभरे और धीरे धीरे कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध भारतीय जनसंघ पार्टी मुखरित होकर सामने आई।

     संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार भारत में प्रत्येक 5 वर्ष के पश्चात आम चुनाव होकर नई सरकार के गठन की व्यवस्था है। तमाम राजनीतिक पार्टियों का जन्म हुआ और आम चुनाव में उनके प्रत्याशी मैदान में उतरे और परिणाम के फलस्वरूप  हार जीत होती रही। भारतीय जनसंघ पार्टी के नाम में परिवर्तन करते हुए भारतीय जनता पार्टी वजूद में आई और अपने एजेंडे पर काम करते हुए अपना वर्चस्व कायम किया,तब तक तो गनीमत रही।

       लेकिन जब से जाति के आधार पर क्षेत्रीय दलों के रूप में राजनीतिक मोड़ आया और अपनी जाति के लोगों को अपने दल के पक्ष में आकर्षित करने वाली राजनीति ने पांव पसारा, तब से पूरा समाज खंड खंड हो गया, आपसी सौहार्द और भाईचारा कायम रहने में बाधाएं उत्पन्न होने लगीं, लोग एक दूसरे से ईर्ष्या करने लगे, तकरीबन हर चुनाव जातियों में विभाजित होने लगा। अनुमान लगाया जाने लगा कि फलां जाति के लोग, उस पार्टी को वोट देंगे और फलां जाति के लोग उस पार्टी को वोट देंगे।

      कमोबेश, माननीय मुलायम सिंह ने "समाजवादी पार्टी" का गठन करके अपने को यादव (अहीर) जाति का नेता बतौर स्थापित करने का प्रयास किया तो कुमारी मायावती ने "बहुजन समाज पार्टी" बनाकर अपने को हरिजनों का नेता बताकर राजनीति  शुरू किया। यही नहीं, डॉक्टर सोनेलाल पटेल ने अपने को कुर्मी जाति का नेता स्थापित करने के उद्देश्य से "अपना दल" का गठन कर डाला।

       इन राजनीतिक दलों ने अपने उद्देश्य में सफलता भी पाई और आगे भी सफलता पाने के उद्देश्य में प्रयासरत हैं। यद्यपि जाति के आधार पर बने इन राजनीतिक संगठनों का प्रभाव क्षेत्रीय स्तर पर है और उनका वर्चस्व पूरे राष्ट्र में काफी अंतराल के बाद भी नहीं हो पाया और न निकट भविष्य में हो पाने की संभावना ही  दिखाई पड़ रही है।

      लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी एवं भारतीय जनता पार्टी ने किसी विशेष जाति की पार्टी का उद्घोष करके अभी तक राजनीति नहीं किया, जो राष्ट्र के लिए शुभ संकेत है।

      यद्यपि हिंदूवादी और मुसलमानों की हितैषी होने का राजनीतिक दलों पर बीच-बीच में आरोप लगता रहता है, किंतु वास्तविकता यह है कि पूरे समाज को खंड खंड में विभाजित कर देने वाली जातिवाद की राजनीति राष्ट्र के लिए घातक है, जिसका परिणाम सुखद नहीं कहा जा सकता। राष्टृ में शिक्षा के क्षेत्र में उत्तरोत्तर हो रही बृद्धि के परिणामस्वरूप हर जाति व वर्ग के पढ़े लिखे लोगों में राष्ट्रहित चिंतन एवं समझदारी का प्रवेश भी अलौकिक स्थान बना पाने में सफल हो रहा है। यही रफ्तार आगे बढ़ती रही तो निकट भविष्य में अभूतपूर्व राजनीतिक परिवर्तन भी देखने को मिलेगा।

     मैं राजनीतिक गतिविधियों का विश्लेषण करने पर इस निष्कर्ष पर पहुंच रहा हूं कि जाति पर आधारित राजनीति करने का दौर समापन की ओर अग्रसर है और मुझे विश्वास है कि एक अथवा दो चुनाव के बाद बिराम ले लेगा। राज्य के अमन चैन पर आधारित सर्बसमाज के कल्याण एवं सर्वांगीण विकास की ओर मुखरित राजनैतिक दल ही अस्तित्व में रहेंगे।

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