वक्फ विधेयक पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद की निष्क्रियता पर उठे सवाल, पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनीस मंसूरी ने जताई नाराजगी
- Posted By: Admin
- खबरें हटके
- Updated: 17 March, 2025 19:52
- 147

PPN NEWS
लखनऊ।
वक्फ विधेयक पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद की निष्क्रियता पर उठे सवाल, पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनीस मंसूरी ने जताई नाराजगी
लखनऊ। वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 को लेकर देशभर के मुस्लिम समुदाय में गहरी चिंता है, लेकिन जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसी बड़ी संस्था की निष्क्रियता पर सवाल उठ रहे हैं। पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री अनीस मंसूरी ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि "जमीयत जैसी पुरानी और मजबूत संस्था को केवल बयानबाजी तक सीमित नहीं रहना चाहिए था, बल्कि इसे जमीन पर उतरकर संघर्ष करना चाहिए था।"
मंसूरी ने कहा कि "जब सरकार पूरी ताकत के साथ वक्फ संशोधन विधेयक को पारित करने में लगी थी, तब मुस्लिम नेतृत्व केवल खानापूर्ति कर रहा था।" उन्होंने सवाल उठाया कि जब जमीयत रामलीला मैदान में बड़ी रैलियां कर सकती है, तो वक्फ संपत्तियों को बचाने के लिए कोई ठोस विरोध प्रदर्शन क्यों नहीं किया गया?
मौलाना महमूद मदनी और मौलाना अरशद मदनी को एक होना चाहिए
अनीस मंसूरी ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की दोहरी नेतृत्व प्रणाली पर भी सवाल उठाया और कहा कि यह संगठन खुद दो गुटों में बंटा हुआ है। एक तरफ मौलाना महमूद मदनी और दूसरी तरफ मौलाना अरशद मदनी राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हुए हैं। "जो नेता मुसलमानों को भेदभाव भुलाकर एकजुट करने की अपील करते हैं, उन्हें खुद पहले एक होना चाहिए।" अगर जमीयत उलेमा-ए-हिंद वाकई मुस्लिम समाज के हित में काम करना चाहती है, तो उसे अपनी आंतरिक कलह को खत्म कर एकजुटता दिखानी होगी।
वक्फ मुद्दा कानूनी नहीं, राजनीतिक लड़ाई है
मंसूरी ने जमीयत द्वारा वक्फ विधेयक को कानूनी लड़ाई तक सीमित रखने के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि "यह केवल अदालतों में हल होने वाला मामला नहीं है, बल्कि एक राजनीतिक मुद्दा है।" अगर जमीयत ने समय रहते संसद और सड़कों पर मजबूत विरोध दर्ज कराया होता, तो सरकार पर दबाव बनाया जा सकता था।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ धार्मिक संगठन केवल दिखावे के लिए काम कर रहे हैं और वास्तव में उन्होंने इस विधेयक को रोकने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया। उन्होंने कहा कि "अगर मुस्लिम नेतृत्व इसी तरह निष्क्रिय बना रहा, तो आने वाले समय में और भी बड़े नुकसान उठाने पड़ सकते हैं।"
अनीस मंसूरी ने अंत में कहा कि "यह सिर्फ वक्फ संपत्तियों का मामला नहीं है, बल्कि भारतीय पसमांदा मुसलमानों के आर्थिक और सामाजिक अधिकारों का सवाल है।" उन्होंने जमीयत उलेमा-ए-हिंद, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य मुस्लिम संगठनों से अपील की कि वे अब भी संगठित होकर इस विधेयक के खिलाफ मजबूती से खड़े हों और पसमांदा मुसलमानों के हक की लड़ाई लड़ें।
Comments