संविधान की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक सौहार्द को मजबूत करता है सुप्रीम कोर्ट का आदेश : अनीस मंसूरी

संविधान की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक सौहार्द को मजबूत करता है सुप्रीम कोर्ट का आदेश : अनीस मंसूरी

संविधान की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक सौहार्द को मजबूत करता है सुप्रीम कोर्ट का आदेश : अनीस मंसूरी 


लखनऊ। पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मंत्री माननीय अनीस मंसूरी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने आदेश दिया है कि उपासना स्थलों के मामलों की सुनवाई अदालतें न करें, हम माननीय सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा दिए गए इस ऐतिहासिक और दूरदर्शी आदेश का हार्दिक स्वागत करते हैं। यह आदेश न केवल भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे की रक्षा करता है, बल्कि सामाजिक सौहार्द, आपसी भाईचारे और राष्ट्रीय एकता को भी सुदृढ़ करता है।


श्री मंसूरी ने कहा कि पसमांदा मुस्लिम समाज हमेशा से यह मानता रहा है कि धार्मिक स्थलों को विवादों और राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए। धार्मिक स्थलों को विवादों में उलझाने से केवल सामाजिक तनाव और विघटन बढ़ता है, जिससे देश की प्रगति और शांति प्रभावित होती है। इस आदेश से स्पष्ट संकेत मिलता है कि न्यायपालिका देश में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के प्रति प्रतिबद्ध है।


अनीस मंसूरी ने कहा कि यह निर्णय भारत की विविधता में एकता के सिद्धांत को मजबूत करता है। हमारे देश में हर धर्म, जाति, और समुदाय के लोगों के बीच प्रेम और विश्वास का जो ताना-बाना है, उसे बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। माननीय मुख्य न्यायाधीश और खंडपीठ ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि धार्मिक मामलों को न्यायपालिका के दायरे से बाहर रखकर समाज को खुद अपनी समस्याओं का समाधान आपसी संवाद और समर्पण से करना चाहिए।


श्री मंसूरी ने कहा कि हम यह भी मानते हैं कि यह फैसला उन ताकतों के लिए एक सबक है, जो धार्मिक स्थलों का उपयोग राजनीतिक या सांप्रदायिक लाभ के लिए करना चाहती हैं। न्यायपालिका के इस निर्णय से भारत में कानून के शासन और संविधान के आदर्शों पर लोगों का विश्वास और अधिक मजबूत होगा।


अनीस मंसूरी ने कहा कि पसमांदा मुस्लिम समाज इस फैसले के लिए माननीय मुख्य न्यायाधीश और खंडपीठ के अन्य सदस्यों का हृदय से आभार प्रकट करता है। हम आशा करते हैं कि यह आदेश देश में सामाजिक शांति और समरसता के नए युग की शुरुआत करेगा।

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