"प्रधान" हैं नहीं और बन गए "प्रधान संघ" के "पदाधिकारी"

"प्रधान" हैं नहीं और बन गए "प्रधान संघ" के  "पदाधिकारी"

पी पी एन न्यूज

"प्रधान" हैं नहीं और बन गए "प्रधान संघ" के  "पदाधिकारी" 

(कमलेन्द्र सिंह)

फतेहपुर।       

     इसे मनमानी कहा जाए,स्वयं प्रभुता कहा जाए या फिर संगठन में कब्जा करने की जल्दबाजी।राष्ट्रीय पंचायती राज प्रधान संघ के जिला कमेटी के हुए गठन के बाद चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं।जिला अध्यक्ष से लेकर उपाध्यक्ष,संरक्षक,कोषाध्यक्ष पद पर जिन लोगों की नियुक्ति की गई है वह प्रधान हैं ही नहीं। इतना ही नहीं कोषाध्यक्ष,उपाध्यक्ष व संरक्षक के पदों पर उन लोगों को पदाधिकारी बना दिया गया जिनकी ग्राम पंचायतों में अनुसूचित जाति के लिए सीटें आरक्षित थीं।मनमानी यहीं समाप्त नहीं हुई।

आधी आबादी के अधिकारों की लड़ाई भले ही लड़ी जा रही हो लेकिन यहां तो उनके अधिकारों पर दूसरों ने ही कब्जा पहले से ही जमा लिया है।एक और मजेदार बात सामने आई है जिसमें प्रमुख पदों पर एक ही विकास खंड के लोगों ने कब्जा जमा लिया है।आखिर यह कैसा संगठन है जहां नियम-कायदे कुछ है ही नहीं।

         फतेहपुर जिले की 13 विकास खंडों की 834 ग्राम पंचायतों में हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में गांवों की सरकार तो बन गई लेकिन सरकार आगे बढ़े उसके पहले ही मुखिया के अधिकारों पर कब्जा जमाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। प्रधानों का शपथ ग्रहण पूरा हुआ कि चंद प्रधानों को बुलाकर प्रदेश अध्यक्ष की मौजूदगी में जिला कमेटी की घोषणा कर दी गई।आखिर मुट्ठी भर ग्राम प्रधान 834 प्रधानों की आवाज कैसे बन सकते हैं। सही मायने में तो चुनाव पहले ब्लॉक इकाइयों का होना चाहिए और उसके बाद वहां से आने वाले डेलीगेट जिला कमेटी का चुनाव करते लेकिन संगठन में कब्जा जमाने के लिए सारी व्यवस्था आनन-फानन कर ली गई।

      आखिर है ना कितना हास्यास्पद कि प्रधान संघ की जिला कमेटी में ऐसे लोग पदाधिकारी बन गए हैं जो ग्राम प्रधान का चुनाव जीते ही नहीं। भिटौरा विकास खंड के करमचन्दपुर सांडा महिला के लिए आरक्षित होने के चलते ग्राम प्रधान महिला चुनी गईं लेकिन प्रधान संघ के अध्यक्ष रहे नदीमउद्दीन पप्पू की बिना प्रधान का चुनाव जीते ही जिला अध्यक्ष के पद पर ताजपोशी फिर से कर दी गई।वह बात दीगर है कि जिला अध्यक्ष के घर से ही प्रधान चुना गया है लेकिन क्या यह सही है?अभी और चौकाने वाले तथ्य सामने आने वाले हैं।

कमेटी में जिला उपाध्यक्ष अहेवा ग्राम पंचायत से धीरेंद्र प्रताप सिंह को चुन लिया गया लेकिन यहां ग्राम प्रधान अनुसूचित जाति का चुना गया है।कोषाध्यक्ष पद पर मवई गनेशपुर के भोलाशंकर चुने गए हैं और यह सीट भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रही है।संघ के संरक्षक जमरावां के धर्मेंद्र प्रताप सिंह को चुना गया है।अनुसूचित जाति की महिला के लिए यह सीट आरक्षित रही है।इतना ही नहीं संघ के बड़े पदाधिकारी एक ही विकास विकास खंड से चुने गए हैं।संगठन में महासचिव के पद पर सूर्य प्रकाश सिंह व एक अन्य उपाध्यक्ष अवधेश यादव को चुना गया है जबकि सचिव मनोज कुमार द्विवेदी बनाए गए हैं।

         जिले में 281 ग्राम पंचायतों में महिला प्रधानों द्वारा नेतृत्व किए जाने के बावजूद बागडोर तो उनके हाथों में दे दी गई लेकिन कब्जा ज्यादातर ग्राम पंचायतों में दूसरे लोगों ने ही जमा लिया।इतना ही नहीं घोषित जिला कमेटी में एक भी महिला को स्थान नहीं दिया गया है। संगठन के चुनाव में जातिगत सामंजस्य बैठाने का भी प्रयास नहीं किया गया और महिलाओं के साथ-साथ अनुसूचित जाति के जीते ग्राम प्रधानों को भी संगठन में जगह देना मुनासिब नहीं समझा गया। आखिर प्रधान संघ के हुए चुनाव के बाद ग्राम प्रधानों ने विरोधी स्वर मुखर करने शुरू कर दिए हैं।

एक राय से नए संगठन के बनाने का मंथन शुरू हो गया है।उनका कहना है कि जो निर्वाचित प्रधान नहीं है वह पदाधिकारी कैसे बन सकते हैं। यह तो सीधा-सीधा निर्वाचित प्रधानों के अधिकारों खासकर अनुसूचित जाति एवं महिलाओं के अधिकारों पर बड़ा अतिक्रमण करना है। जब गांवों के विकास की गाड़ी आगे बढ़ने से पहले ही मनमाने तरीके से संगठन में कब्जा जमा लिया गया है तो फिर आधी आबादी व अनुसूचित जाति के जीते अधिकतर प्रधानों के अधिकारों एवं फैसलों पर निर्णय तो दूसरे लोग ही करते नजर आएंगे।

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