इस करवा चौथ तिथि वार,नक्षत्र, और ग्रहो का महासंयोग

इस करवा चौथ तिथि वार,नक्षत्र, और ग्रहो का महासंयोग

PPN NEWS

प्रतापगढ 

23.10.2021


रिपोर्ट--मो.हसनैन हाशमी


इस करवा चौथ तिथि, वार, नक्षत्र और ग्रहों का महासंयोग


पति की लंबी आयु के लिए भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में सुहागिनें करवा चौथ का व्रत रखती हैं। यह व्रत हर वर्ष कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है, जिसे अधिकतर सुहागिने काफी उत्साह से मनाती हैं। इस वर्ष करवा चौथ का यह पर्व 24 अक्टूबर को मनाया जानेवाला है। इस दिन व्रती महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और रात को चंद्रमा दर्शन के बाद व्रत पारण करती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से पति को लंबी आयु प्राप्त होती है और वैवाहिक जीवन खुशहाल होता है। आइए ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री से जानते हैं इस पर्व के शुभ मुहूर्त सहित पूजन विधि।

शुभ मुहूर्त: 

24 अक्टूबर 2021, रविवार को सुबह 03 बजकर 03 मिनट से चतुर्थी तिथि शुरू होगी, जो 25 अक्टूबर 2021 को सुबह 05 बजकर 42 मिनट तक रहेगी। इस दौरान करवा चौथ का शुभ मुहूर्त 24 अक्टूबर को शाम 05 बजकर 43 मिनट से 06 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। 24 अक्टूबर को रात 08 बजकर 47 मिनट पर चंद्र दर्शन हो सकते हैं। इसके बाद व्रती महिलाएं व्रत खोलेंगी।

करवा चौथ पर बन रहा विशेष संयोग:

इस वर्ष करवा चौथ का चांद रोहिणी नक्षत्र में निकलेगा और मान्यता है कि इस नक्षत्र में व्रत रखना शुभ फलदायी होता है। इसी के साथ ज्योतिष के अनुसार चतुर्थी तिथि को चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में विराजमान रहेगा। साथ ही रविवार को करवा चौथ होने के कारण भगवान सूर्य नारायण का आशीर्वाद भी प्राप्त होगा।

 ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री बताते हैं कि इस वर्ष करवा चौथ पर तिथि, वार, नक्षत्र और ग्रहों का महासंयोग बनने से व्रत और पूजा का पूरा फल मिलेगा। जिससे सौभाग्य के साथ समृद्धि भी बढ़ेगी। इस करवा चौथ पर व्रत से पति-पत्नी में प्रेम बढ़ेगा और घर में सुख-समृद्धि बढ़ेगी। शुभ संयोगों में पूजा होने से महिलाओं को रोग और शोक से छुटकारा मिल सकता है। इतने सारे शुभ संयोग होने से ये पर्व मनोकामनाएं पूरी करने वाला रहेगा।

करवाचौथ व्रत की पूजा विधि

सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाएं। सरगी के रूप में मिला हुआ भोजन करें पानी पीएं और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें। करवाचौथ में महिलाएं पूरे दिन जल-अन्न कुछ ग्रहण नहीं करतीं फिर शाम के समय चांद को देखने के बाद दर्शन कर व्रत खोलती हैं। पूजा के लिए शाम के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना कर इसमें करवे में रखें। एक थाली में धूप, दीप, चन्दन, रोली, सिन्दूर रखें और घी का दीपक जलाएं।

पूजा चांद निकलने के एक घंटे पहले शुरु कर देनी चाहिए। इस दिन महिलाएं एक साथ मिलकर पूजा करती हैं। पूजन के समय करवा चौथ कथा जरूर सुनें या सुनाएं। चांद को छलनी से देखने के बाद अर्घ्य देकर चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए। चांद को देखने के बाद पति के हाथ से जल पीकर व्रत खोलना चाहिए। इस दिन बहुएं अपनी सास को थाली में मिठाई, फल, मेवे, रूपये आदि देकर उनसे सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद लेती हैं।

महिलाएं बिना मंगलसूत्र पहने पूजा न करें। पूजा के वक्त बाल खुले नहीं रखना चाहिए। करवे को थल या छत पर नहीं रखना चाहिए। किसी के बहकावे में न आएं। बच्चों को नहीं डाटना चाहिए। दीपक भी बुझना नहीं चाहिए। सभी बहने अगल-बगल पूजा न करें। व्रती महिलाओं को देखकर उपहास न करें। अन्यथा चंद्रमा रूष्ट हो जाते हैं। काली हल्दी चढ़ाना शुभ है। सुहाग सामग्री दान करनी चाहिए। सम्भव हो तो पहला व्रत मायके से आई पूजन सामग्री से ही करना चाहिए।

इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है। चंद्रमा के साथ- साथ भगवान शिव, पार्वती जी, श्रीगणेश और कार्तिकेय की पूजा की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं क्यों मनाया जाता है करवाचौथ और कैसे हुई थी इसकी शुरुआत। एक किवदंति के अनुसार जब सत्यवान की आत्मा को लेने के लिए यमराज आए तो पतिव्रता सावित्री ने उनसे अपने पति सत्यवान के प्राणों की भीख मांगी और अपने सुहाग को न ले जाने के लिए निवेदन किया।

यमराज के न मानने पर सावित्री ने अन्न-जल का त्याग दिया। वो अपने पति के शरीर के पास विलाप करने लगीं। पतिव्रता स्त्री के इस विलाप से यमराज विचलित हो गए, उन्होंने सावित्री से कहा कि अपने पति सत्यवान के जीवन के अतिरिक्त कोई और वर मांग लो।सावित्री ने यमराज से कहा कि आप मुझे कई संतानों की मां बनने का वर दें, जिसे यमराज ने हां कह दिया। पतिव्रता स्त्री होने के नाते सत्यवान के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचना भी सावित्री के लिए संभव नहीं था। अंत में अपने वचन में बंधने के कारण एक पतिव्रता स्त्री के सुहाग को यमराज लेकर नहीं जा सके और सत्यवान के जीवन को सावित्री को सौंप दिया। कहा जाता है कि तब से स्त्रियां अन्न-जल का त्यागकर अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए करवाचौथ का व्रत रखती हैं।

द्रौपदी द्वारा भी करवाचौथ का व्रत रखने की कहानी प्रचलित है। कहते हैं कि जब अर्जुन नीलगिरी की पहाड़ियों में घोर तपस्या लिए गए हुए थे तो बाकी चारों पांडवों को पीछे से अनेक गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। द्रौपदी ने श्रीकृष्ण से मिलकर अपना दुख बताया। और अपने पतियों के मान-सम्मान की रक्षा के लिए कोई उपाय पूछा। श्रीकृष्ण भगवान ने द्रोपदी को करवाचौथ व्रत रखने की सलाह दी थी, जिसे करने से अर्जुन भी सकुशल लौट आए और बाकी पांडवों के सम्मान की भी रक्षा हो सकी थी।महाभारत काल में द्रोपती ने श्रीकृष्ण के परामर्श पर करवाचौथ का व्रत किया था। वहीं गान्धारी ने ध्रतराष्ट्र के लिए कुंती ने पाण्डव के लिए और इंद्राणी ने इंद्र के लिए करवाचौथ का व्रत रखा था।

शिव पुराण के अनुसार विवाह के पूर्व पार्वती जी ने शिव की प्राप्ति के लिए व सुंदरता के लिए करवाचौथ व्रत रखा था। लक्ष्मी जी ने नारायण के लिए ये व्रत रखा था जब भगवान विष्णु राजा बलि के यहां बंधन में थे तो लक्ष्मी जी ने व्रत किया था।

जिन कन्याओं का विवाह न हो रहा हो उन्हें किसी महिला की बची हुई  मेहंदी लगानी चाहिए। शीघ्र ही विवाह होगा। इस दिन कढ़ी, चावल, मूंग के बड़े व विविध प्रकार के व्यंजन बनाने चाहिए। मूंग के बड़े तो विशेषकर बनवाएं। जहां छत पर पूजन करें उस जगह को जल से या गाय के गोबर से लीप लें। करवे पर मौली जरूर बांधे, मिट्टी, ताबां, चांदी, सोने का करवा पूज्यनीय है इसलिए इनका भी इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि मिट्टी का करवा ज्यादा शुभ होता है।

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