हीरा-मोती गायब, खेत की उर्वरा नदारद

हीरा-मोती गायब, खेत की उर्वरा नदारद

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हीरा-मोती गायब, खेत की उर्वरा नदारद

पी पी एन न्यूज

(कमलेन्द्र सिंह)

फतेहपुर।

फिल्म 'पूरब-पश्चिम' के गीत 'मेरे देश की धरती सोना उगले,उगले हीरे मोती'जैसे गर्व करने की बात अब नहीं रही।कारण उक्त गीत में फिल्म के नायक मनोज कुमार जिन बैलों से खेत जोतते हुए सोना उगाने की बात कर रहे हैं वह पशुधन संपदा अब विलुप्त होती जा रही है।बैल अब खोजे नहीं मिल रहे।इससे छोटे काश्तकारों की हालत खस्ता है। पशुपालन में कमी आने से गोबर की खाद भी  सहज रूप से नहीं मिल पा रही।इससे जमीन में उर्वरा की कमी हो रही है।

जिले  में बड़े किसानों की अपेक्षा छोटे व मझोले काश्तकारों की संख्या सर्वाधिक है। लगभग डेढ़ दशक पूर्व तक किसान एक जोड़ी बैल रखकर  अपने श्रम व गोबर की खाद आदि से खेतों को तैयार का धान-गेहूं व अन्य फसलों का अच्छा उत्पादन करते थे।इतना ही नहीं बैलों के सहारे बैलगाड़ी चलती थी। गन्ना व सरसों की पेराई,फसलों की सिचाई होती थी।थ्रेसर से गेहूं की मड़ाई का दौर शुरू हुई तो भूसा का संकट पैदा होने लगा।इसके चलते पशुपालन में भी कमी आ गई।

आज स्थिति यह है कि जो बैल कभी 1500 रुपये जोड़ी मिलते थे आज उनकी कीमत 45से 50 हजार से पार हो गई है। बड़े किसान तो ट्रैक्टर से अपनी खेती करा ले रहे हैं लेकिन, छोटे व मझोले किसान डीजल में वृद्धि से खेत की जोताई की कीमत बढ़ने सहित जैविक खादों के अभाव में खेती से विमुख हो रहे हैं।वे पलायन करने के साथ ही अन्य धंधे अपनाने को विवश हैं


उर्वरा शक्ति बनी रहे,इसलिए आज भी करते बैलों से जुताई


केंचुआ किसानों का मित्र हैं न कि शत्रु। इसे नष्ट होने से बचाने के लिए तथा खेत की उर्वरा शक्ति बनी रहे, यही सोचकर छिछनी गाँव के किसान  ननकऊ साहू खुद अपने सारे खेतों की जुताई बैलों से करते हैं।जलाला गाव के राजू यादव भी बैलो से जुताई करते है जिनका मानना है कि ट्रैक्टर के हल अथवा अन्य यंत्रों से खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाले केंचुआ नष्ट हो जाते हैं और खेत की जुताई भी गहराई तक नहीं हो पाती है।वे कहते हैं कि ऐसा करने के कई लाभ हैं।जैसे पशुओं की सेवा हो जाती है।उनका मल मूत्र कंपोस्ट खाद के रूप में प्रयोग होता है।

इसलिये हम आज मशीनरी युग मे भी अपने खेतों की जुताई बैलों द्वारा ही करते हैं।

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