ग्राम प्रधान,सेक्रेटरी,ब्लॉक प्रमुख,और पशु चिकित्सक सरकार के मंसूबो पर फेर रहे हैं पानी
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- Updated: 22 September, 2021 23:16
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ग्राम प्रधान,सेक्रेटरी,ब्लॉक प्रमुख,और पशु चिकित्सक सरकार के मंसूबो पर फेर रहे हैं पानी
गोवंश को बचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार लगातार तरह-तरह के उपाय कर रही है।
इतना ही नहीं गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के लिए भी जल्द ही फैसला लिया जा सकता है।
गोवंश की सुरक्षा के लिए सरकारी खजाने की खोल दिया।
लेकिन इसके बावजूद कुछ लोग गौशाला के नाम को केवल अपनी जेब गर्म करने का काम कर रहे हैं और गोवंश को मरने के लिए छोड़ देना ताजा मामला राजधानी लखनऊ के तहसील मोहनलालगंज का सामने आया है। जहां गौशाला के रखरखाव एवं प्रबंधन की जिम्मेदारी ग्राम प्रधान,सेक्रेटरी,ब्लाक प्रमुख और पशु चिकित्सक की होती है।
वहीं ग्राम पंचायत वरवलिया के ग्राम प्रधान त्रिवेणी प्रसाद की माने तो पाँच महीने से जानवरों के लिए सरकार की ओर से एक भी निधि पास नही हुई है।
ग्राम प्रधान ने कहा कि हमने अपने घर से 4 लाख लगाया है गोवंश के चारे की व्यवस्था के लिए ब्लॉक प्रमुख को हमने काई बार गौशाला की स्थिति देखने के लिए कहा लेकिन ब्लॉक प्रमुख को गौशालाओं को देखने का समय ही नहीं है। ऐसे में हमसे जितना हो पाता है। जानवरो के लिए करते है।
उन्होंने बताया कि प्रति जानवर की एक दिन की खुराक 30 रुपए होती है और इसी पैसे में जानवरों को भूसा और चरी भी देनी होती है।
गौशाला की देखभाल (चौकीदारी) के लिए चौकीदार को पंचायत निधि से वेतन दिया जाता है।जबकि 30 रूपए की रकम जानवरों के भोजन लिए पर्याप्त नहीं है
वहीं आज बढ़ती हुई महंगाई के दौर में एक आदमी का 50रू में पूरा पेट नहीं भरता है फिर जानवर का पेट 30रू में कैसे भर सकता है ।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर गौरक्षक के नाम पर ऐसा खेल कौन खेल रहा है।
सरकारी नौकर शाह या फिर खुद सरकार!जबकि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने गौशालाओं के लिए विभिन्न योजनाएं निकाली है और बकायदा गौशाला निधि के नाम पर बजट भी पास किया है।
एक तरफ तो हिंदुत्व का हवाला देते हुए गौरक्षा की बात की जाती हैं।
वहीं ग्राम प्रधान,सेक्रेटरी, पशुचिकित्सक, ब्लाक प्रमुख सरकार की नीतियों पर पानी फेरते हुए नजर आते हैं ।
ग्राम प्रधान का कहना है कि सरकार की ओर से गौशालाओं पर अलग से कोई बजट नहीं आता।
हमें गायों के लिए ग्राम प्रधान निधि से ही गायों की सेवा करनी पड़ती है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार गौरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है या सरकार ने गौशालाओं के लिए कोई निधि निर्धारित नहीं की है।
कड़कती धूप,बारिश, तुफान में गोवंश बिलखते रहते हैं।
गौवंश को खाने के लिए सिर्फ नाद में भूसा ही मिलता है,
जिसकी वजह से गौवंश भूख की वजह से मर रहे है।
इनके लिए छाँव के नाम पर सिर्फ टीन सेड है,वह भी दो या तीन ही होते हैं,चिलचिलाती धूप, तुफानी बरसात में जानवरों का बुरा हाल हो जाता है।
गौशाला के हालात यह हैं कि कुछ बीमार गाय और बछड़ो को कौवे आँखे तक नोचते नज़र आते हैं,
तो कहीं कुत्ते गोवंश और गाय को नोचते नजर आते हैं।
इस संबंध में जब ग्राम प्रधान से सवाल किया गया तो ग्राम प्रधान का अजीबो-गरीब बयान आया,ग्राम प्रधान का कहना है कि चील,कौवों और कुत्तों को कौन रोक सकता है!!
ग्राम प्रधान के इस अजीबोगरीब बयान के साथ ही साथ सवाल यह भी उठता है कि गौशाला की देखरेख के लिए जो तीन-तीन चौकीदार रखे हैं क्या वो सिर्फ खानापूर्ति और वेतन के लिए हैं।
हद तो तब हो गई जब गौशाला के बाड़े के पीछे जिन्दा बछडा फेका हुआ मिला,जिसकी सांसे चल रही थीं,
लेकिन वहीं कुत्ते भी घात लगाये बैठे थे। वहीं पीछे मरे हुये जानवरों को फेका भी जाता है।
कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में जहाँ सारा संसार इस महिमारी से लड़ रहा है।
वहीं गौशालाओं में मरे हुए जानवरों को गौशाला के पीछे जंगल में ऐसे ही फेंक दिया जाता है,जो महामारी को आमंत्रण दे रहे हैं।
ग्राम प्रधान,सेक्रेट्ररी ब्लाक प्रमुख और पशु चिकित्सक इन गौवंश को दफनाने का कोई इंतजाम नहीं करते हैं।
क्या गौरक्षा के नाम पर बेजुबान जानवरों के जीवन से ग्राम प्रधान, सक्रेटरी,डॉक्टर खिलवाड़ रहे हैं?
या योगी सरकार को बदनाम करने की कोई बडी साजिश कर रहे हैं। जिम्मेदार अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग करने से पीछे नहीं हट रहे हैं।
अब देखने वाली बात यह है कि ऐसे भ्रष्ट और सरकार के दिशा निर्देश का पालन न करने वाले लोगों को पर योगी सरकार क्या कार्यवाही करती है।
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