एनकाउंटर करके ही मारा जाना है,तो फिर देश में अदालतों की जरूरत ही क्या
एनकाउंटर करके ही मारा जाना है,तो फिर देश में अदालतों की जरूरत ही क्या
सबको पता था ये एनकाउंटर होगा
पी पी एन न्यूज
( कमलेन्द्र सिंह)
फतेहपुर।
सब को पता था विकास दुबे का एनकाउंटर होगा। खुद उसने भी इससे बचने के लिए ही कल उज्जैन में मैं विकास दुबे हूं,कानपुर वाला कहकर गिरफ्तारीनुमा सरेंडर किया था। लगता है उसके राजनीति,पुलिस व अफसरशाही में मौजूद संरक्षकों ने ही उसे सरेंडर करने पर बचाने का भरोसा दिलाया होगा और आज खुद अपने को बचाने के लिए विकास का एनकाउंटर करा दिया।
क्योंकि अगर विकास जिंदा रहता और उससे तरीके से पूछताछ होती,तो उसको संरक्षण देने वाले कई बड़े सफेद पोशों एवम खाकी के मुलाजिमों के चेहरों से नकाब उतर जाती। उन चेहरों से जो पहले अपने विकास के लिए विकास जैसे अपराधियों को तैयार करते हैं। और फिर जब खुद की गर्दन फंसती दिखती है तो ऐसे विकास को ठिकाने लगवा देते हैं।
विकास के एनकाउंटर की जो कहानी उत्तर प्रदेश पुलिस बता रही है वह बिल्कुल वैसी ही है जैसी रोहित शेट्टी की सिंघम फिल्म में थी। क्या संयोग हैं पुलिस के काफिले में वही कार पलटी। जिसमें विकास जाहिर है बेडियों में जकडा बैठा होगा। फिर भी गाड़ी पलटते ही वह पुलिस का रिवाल्वर छीनकर भागता है और गोली चलाता है।
फिर जवाबी फायरिंग में मारा जाता है। हालांकि ऐसी दुर्दांत अपराधियों का अंत सुखद है लेकिन अगर इस तरह उन्हें गिरफ्तारी के बाद एनकाउंटर करके ही मारा जाना है,तो फिर देश में अदालतों की जरूरत ही क्या है ।
हैदराबाद में महिला डाक्टर से बलात्कार कर उसे जलाने वाले चारों बलात्कारी भी ऐसी ही मुठभेड़ में मारे गए थे। उन्हें पुलिस सीन रिक्रिएशन के लिए घटना स्थल पर ले गई थी। चारों ने भागने की कोशिश की और फायरिंग में मारे गए।
तब देश भर में हैदाराबाद पुलिस को जिस तरह लोगों का समर्थन मिला था, लगता है उससे पुलिस को लगने लगा कि ऐसे अपराधियों का अंत इसी तरह किया जा सकता है। हालांकि इस स्थिति के लिए देश की न्यायपालिका भी कम दोषी नहीं है । जहां मुकदमों की सुनवाई की रफ्तार धीमी है कि ऐसे अपराधी सालों तक जेलों में सुरक्षित रहते हैं। और फिर सबूतों से छेड़छाड़ के कारण छूट जाते है।
बहरहाल, कल विकास की नाटकीय गिरफ्तारी ने देश को चौंकाया था,तो आज उसके एनकाउंटर ने।बस,सवाल यही है कि जिसने सरेंडर किया हो,वो भागने की कोशिश क्यों करेगा और क्या इन दोनों घटनाओं की जांच का सच कभी सामने आएगा?
क्याअब पुलिस ऐसे अपराधियों के फैसले अदालतों से कराने के बजाय ऑन द स्पॉट ही करेगी? ऐसा लगता है जैसे विकास का सरेंडर फिक्स था, वैसे ही आज उसका एनकाउंटर भी पहले से फिक्स था।
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