फसल अवशेष प्रबन्धन हेतु

फसल अवशेष प्रबन्धन हेतु

फसल अवशेष प्रबन्धन हेतु


प्रकाश प्रभाव न्यूज़(PPN)

उदयवीर सिंह शाहजहांपुर


शाहजहाँपुर। जिलाधिकारी उमेश प्रताप सिंह की अध्यक्षता में गांधी भवन सभागार में फसल अवशेष प्रबन्धन हेतु ‘‘प्रमोशन ऑफ एग्रीकल्चर मैकेनाइजेशन फार इन-सीटू मैनेजमेंट ऑफ क्राप रेज्ड्यू योजनान्तर्गत‘‘ जनपद स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम का शुभांरभ माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलित कर किया गया। आयोजित कार्यशाला में किसानों को विभागीय योजनाओं की जानकारी तथा फसल अवशेष प्रबंधन के उपाय, मृदा स्वास्थ्य पर प्रभाव, किसानों को गुणवत्तापूर्ण उर्वरक एवं अन्य कृषि निवेश उपलब्ध कराए जाने हेतु किए जा रहे प्रयास की जानकारी, फसल अवशेष प्रबंधन, गन्ना फसल कृषि क्रियाएं, फसल अवशेष का पशुओं के लिए उपयोग एवं पराली को गौशाला भेजना, मनरेगा कार्मिकों का सहयोग आदि विषयों के संबंध में जानकारी दी गई।

जिलाधिकारी उमेश प्रताप सिंह ने आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए बताया कि उ0प्र0 में पराली जालाने की 80 घटनायें हुयी है जिस में सर्वाधिक 53 घटनाएं जनपद शाहजहाँपुर में हुयी यह बहुत ही निदंनीय है। जिलाधिकारी ने मौजूद कृषकगणों से कहा कि किसी भी दशा में पराली नही जलाना है, और न जालाने देना है। पराली जलाना राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम की धारा 24 एवं 25 के अन्तर्गत खेत में फसल अवशेष जलाना एक दण्डनीय अपराध है। दण्डनीय अपराध के साथ-साथ समाजिक अपराध भी है, समाज के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हैै। जिलाधिकारी ने कहा कि किसी भी दशा में पराली जलाने नही दिया जायेगा। उन्होने कहा कि यह संकल्प लिया जाये कि पराली नही जलने देंगे यह संकल्प लेकर जाये। उन्होने कहा कि अवशेष प्रबन्धन हेतु अनेक प्रबन्ध किये गये है। अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) की अध्यक्षता में अनुश्रवण सेल के गठन किया गया है । समस्त ग्राम पंचायतों में प्रधान / ग्राम पंचायत अधिकारी / ग्राम विकास अधिकारी के माध्यम से राजस्व ग्रामों में खुली बैठक का आयोजन किया जा रहा है। विकासखण्डवार अधिकारियों के मोबाइल स्क्वाइड का गठन किया गया है तथा सतत निगरानी हेतु न्यायपंचायतवार नोडल अधिकाकरयों की तैनाती भी की गयी है। पराली को गौशालाओं व गौसेवकों को उपलब्ध कराये जाने हेतु मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी को भी निर्देशित किया गया है एवं कम्बाइन स्वामियों से बिना एस.एम.एस. कटाई न करने हेतु घोषणा-पत्र भी लिया जायेगा। लेखपाल / कानूनगो / ग्राम पंचायत अधिकारी / ग्राम विकास अधिकारी / सहायक विकास अधिकारी (कृषि) / प्राविधिक सहायक / बी. टी. एम. / ए.टी.एम. को पराली प्रबन्धन हेतु निर्देशित किया गया है।

उन्होने बताया कि पराली प्रबन्धन हेतु कलेक्ट्रेट परिसर में कन्ट्रोल रूम की स्थापना की गयी एसी घटना संज्ञान में आने पर दिये गये नं0 05852-220017, 220018, 220019 पर सम्पर्क कर तत्कला सूचना दी जा सकती है। उन्होने कहा कि गत वर्ष पराली जलने की अधिक घटनाओं वाले संवेदनशील विकासखण्डों में जिला स्तरीय अधिकारियों की नियुक्ति की गयी है। जनपद में संचालित समस्त कृषक उत्पादक संगठनों को पराली न जलाने एवं फसल अवशेष प्रबन्धन हेतु जागरूक किये जाने हेतु निर्देशित किया गया है तथा जनपद में 40,000 डिकम्पोजर का वितरण (विकासखण्ड पुवायां, खुटार व बण्डा) जनपद में कराया गया है। कृषि विभाग द्वारा अत्यधिक घटनाओं वाले विकासखण्डों खुटार, पुवायां, बण्डा व सिधौली में छोटे वाहन से प्रचार-प्रसार भी कराया जा रहा है।


मुख्य विकास अधिकारी श्याम बहादुर सिंह ने कार्याशाला को सम्बोधित करते हुये बताया कि खेतों में धान की पराली से निपटने के लिए महंगी मशीनें खरीदने या किराये पर लेने और पराली को सीधे जलाने के अलावा डिकम्पोजर आदि का प्रयोग किया जाता है जिससे प्राकृतिक रूप से उनके गलने की प्रक्रिया में तेजी आ जाती है। एक बार पराली गल जाए तो फिर वह मिट्टी के लिए खाद बन जाती है। जनपद में 40,000 डिकम्पोजर का वितरण कृषि विभाग द्वारा निःशुल्क किया गया है। प्रकृति ने पराली के रूप में किसानों को बहुत बड़ी नियामत दी है, लेकिन जानकारी के अभाव में किसान इसका सदुपयोग नहीं कर रहे। थ्रेशर व स्ट्रा रिपर की मदद गेहूं की पराली से तूड़ी बना ली जाती हैं, जबकि 80 प्रतिशत से ज्यादा धान की पराली को आग के हवाले कर दिया जाता है । पराली और गेहूं की तूड़ी से कंपोस्ट तैयार कर मशरूम की खेती की जा सकती है। पराली से तैयार बायोगैस के इस्तेमाल से रसोई में खाना बनाने से लेकर जनरेटर चलाया जा सकता है। इससे पैडी-स्ट्रा कंपोस्ट बनाने की तकनीक भी विकसित की है। पैडी-स्ट्रा कंपोस्ट न सिर्फ पैदावार को बढ़ाती है, बल्कि उर्वरक पर होने वाले खर्च भी कम करता है। हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पाेरेशन लिमिटेड, दातागंज, बदायूँ द्वारा स्थापित प्रे बायोगैस प्लान्ट के लिये उनके द्वारा बेल्ड बायोमॉस को एकत्रित किया जा रहा हैं। पराली से कई तरह का चारा तैयार करने की तकनीकें विकसित की है । चारे को ऐसे राज्यों में बेचा जा सकता है, जहां इसकी कमी है। पराली को गौशलाओं व गोसेवकों को दिया जा सकता है। इस कार्य में जिला पशु चिकित्सा अधिकारी का सहयोग भी लिया जा सकता है।

भट्टों में भी पराली इस्तेमाल में लाई जाती है। पंजाब में करीब तीन हजार ईंट भट्टे हैं, जिनमें बीस लाख टन कोयले की खपत होती है। किसान पराली के छोटे-छोटे गोले बनाकर भट्टों को बेच सकते हैं। बिजली पैदा करने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। पराली का प्रयोग गत्ता बनाने वाली इंडस्ट्री, पैकेजिंग व सेनेटरी इंडस्ट्री में भी किया जा रहा है। मशीन से बड़ी आसानी से आयतकार व गोलाकार में पराली के बंडल बनाए जा सकते है। पराली न जलाकर फसलों के लिए मुफ्त में कई तरह के पोषक तत्व पाए जा सकते हैं। धान की पराली को आग लगाने से 36 से 42 किलो यूरिया, 15 से 17 किलो डीएपी, 125 से 146 किलो पोटाश व 4 किलो सल्फर प्रति एकड़ जलकर राख हो जाती है। यदि हैप्पी सीडर की मदद से पराली वाले खेत में ही गेहूं की सीधी बिजाई कर दी जाए, पराली के अवशेषों से गेहूं के लिए खाद पाई जा सकती है। इससे जमीन में आर्गेनिक तत्वों की मात्रा भी बढ़ती है।

बैठक में आये कृषि वैज्ञनिको ने भी किसानो को पराली प्रबन्धन, गुणवत्तापूर्ण उर्वरक एवं अन्य कृषि निवेश उपलब्ध कराए जाने हेतु किए जा रहे प्रयास की जानकारी, फसल अवशेष प्रबंधन, गन्ना फसल कृषि क्रियाएं एवं फसल अवशेष प्रबंधन, फसल अवशेष का पशुओं के लिए उपयोग एवं पराली को गौशाला भेजना, गन्ने की पराली का प्रबंधन, ग्राम प्रधानों द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन में सहयोग, समितियों को दिए गए कस्टम हायरिंग का पराली प्रबंधन में उपयोग, फसल अवशेष का पशुओं के लिए उपयोग एवं पराली को गौशाला भेजना, फसल अवशेष में मंडी समिति की भूमिका फसल अवशेष प्रबंधन में मनरेगा कार्मिकों का सहयोग आदि विषयों के संबंध में जानकारी दी।

  इस दौरान उप कृषि निदेशक धिरेन्द्र कुमार सिंह, जिला कृषि अधिकारी सतीष चन्द्र पाठक, प्रभारी के0वी0के, जिला गन्ना अधिकारी, जिला पंचायत राज अधिकारी, सहायक आयुक्त एवं सहायक निबन्धन सहकारिता, जिला उद्यान अधिकारी सचिव मण्डी सहित कृषकगण मौजूद रहे।

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