नृसिंह भगवान का प्राकट्य महोत्सव

नृसिंह भगवान का प्राकट्य महोत्सव

प्रकाश प्रभाव न्यूज़ प्रयाग राज

 संग्रह कर्ता -  सुरेश चंद्र मिश्रा "पत्रकार"

नृसिंह भगवान का प्राकट्य महोत्सव 

प्रह्लाद के आह्लाद वर्धन हेतु महदाश्चर्य था। 

स्तंभ में सिमटा हुआ त्रैलोक्य का ऐश्वर्य था।। 

कर में लिए करवाल दैत्य कुमार को धमका रहा। 

जिसका सदा गुण गान करता बोल तेरा हरि कहाँ। 

 निर्भीक होकर बाल ने कर ध्यान जगन्निवास का। 

डगमग नहीं किंचित हुआ वैभव विपुल विश्वास का। 

वह सर्व है सर्वत्र है सब रूप में प्रत्यक्ष है। 

सब का नियंता है चराचर विश्व का अध्यक्ष हैं। 

अणु में तथा परमाणु में नभ मे धरा में सिंधु में। 

शैल तरुवर मेघ में भगवान है हर विंदु में। 

हम में वही तुम में वही आदेश में प्रतिबंध में। 

वन में महल में है भरा पाषाण के स्तंभ मे।

सुन क्रुद्ध दिति के पुत्र ने उठ मुष्टिका मारा प्रवल। 

चिनगारियां निकलीं धरा गिरि सब उठे सहसा दहल। 

स्तंभ से निकला महारव छुब्ध त्रिभुवन हो गया। 

दैत्य का पुरुषार्थ मानों एक छण में खो गया। 

रह गये लोचन फटे सबके महा आश्चर्य था। 

स्तंभ में प्रगटा त्रिलोकी का महा आश्चर्य था। 

आधा बदन नर का तथा आधा बदन था सिंह का। 

अवतार खंभे से हुआ आवेश युक्त नृसिंह का। 

गर्जन किए तो शैल शिखर सहज विखंडित हो गये। 

ज्वार आया सिंधु में भयभीत पंडित हो गये। 

नभ से नक्षत्रों की अबाधित चाल परिवर्तित हुई। 

कैलाश पर शंकर सहित हिम बालिका कंपित हुई। 

शेष के फण फट गये सप्तर्षि भय आकुल हुए। 

श्रृष्टि क्षय का भय हुआ ब्रह्मा स्वयं व्याकुल हुए। 

लेकर गदा आगे बढा खल मारने भगवान को।  

जल गया था देख कर प्रह्लाद की मुस्कान को। 

देख कोप नृसिंह का सहसा दनुज चकरा गया। 

मृगराज के पंजे स्वयं  चल कर शशक था आ गया।

 केश राक्षस के पकड कर खींच लाए देहरी पर ।

तीक्ष्ण नख से फाड डाला दुष्ट की काया भयंकर। 

अंतड़ी का हार  डाला कंठ में भुवनेश ने। 

रक्त की सरिता बही भय जै कार किया महेश ने। 

प्रह्लाद को ले  अंक मे नरसिंह ने अति प्यार से। 

अश्रु पूरित मौन बालक था महा उपकार से। 

वरदान लेने को मनाया बहुत रमा निवास ने।

 किंतु सब कुछ  पा लिया था भक्त के विश्वास ने। 

पीढियां इक्कीस करके मुक्त फिर प्रह्लाद की। 

बन गया था  आज मूरति विष्णु महा प्रसाद की।

सुरेश,, मिला फल भक्त को हरि के भजन का धर्म का। 

निश्चित मिला करता  सुफल मानव को उसके  कर्म का। 

।।जै जानकी जीवन।। 

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