नवागत पुलिस अधीक्षक के लिए प्रतापगढ़ की कुर्सी फूलों की सेज नहीं बल्कि कांटों की शैय्या है।

नवागत पुलिस अधीक्षक के लिए प्रतापगढ़ की कुर्सी फूलों की सेज नहीं बल्कि कांटों की शैय्या है।

प्रतापगढ़

22. 08. 2020

रिपोर्ट --मो. हसनैन हाशमी

नवागत पुलिस अधीक्षक के लिए प्रतापगढ़ की कुर्सी फूलों की सेज नहीं बल्कि कांटों की शैय्या है।

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नवागत तेजतर्रार पुलिस अधीक्षक अनुराग आर्य को प्रतापगढ़ आये तीन दिन हो गए थे, परन्तु उन्होंने सीयूजी नम्बर 9454400300 जिस पर व्हाट्सएप भी चलता है। व्यस्त होने के कारण उस पर अभी तक अपनी इमेज की डीपी तक नहीं लगा सके थे। इसकी खबर जैसे ही ट्वीट की गई वैसे ही अनुराग आर्य पूर्व पुलिस अधीक्षक अभिषेक सिंह की डीपी से इमेज हटाकर अपनी इमेज लगा ली।प्रतापगढ़ में जब कोई नया पुलिस अधीक्षक आता है तो उसके पदभार ग्रहण करते ही उनके स्वागत में प्रतापगढ़ के अपराधी गोली चलाकर अथवा बड़ी वारदात को अंजाम दे करके उन्हें चुनौती देते हैं। प्रतापगढ़ के अपराधियों में मानो पंख उग आए हों। एक घटना के बाद दूसरी घटना का होना इसका जीता जागता उदाहरण है। अपराधियों के हौसले इतने बुलन्द हैं कि नए पुलिस अधीक्षक के आने के बाद उनके पद संभालते ही उन्हें चुनौती के रूप में सलामी देने तक का दुःसाहस करना प्रतापगढ़ के अपराधियों की आदत में शुमार हो चुका है।नए पुलिस अधीक्षक के लिए प्रतापगढ़ में अपराध को कंट्रोल कर पाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।बल्कि यह कहा जा रहा है कि नवागत पुलिस अधीक्षक के लिए प्रतापगढ़ की कुर्सी फूलों की सेज नहीं बल्कि कांटों की शैय्या है। चूँकि प्रतापगढ़ की पुलिसिंग पूरी तरह फेल हो चुकी है। सच तो ये है कि प्रतापगढ़ पुलिस के पास अपने एक अदद मुखबिर नहीं बचे हैं।मुखबिर बचें भी तो कहां से पुलिस का पेट खुद ही इतना बडा़ हो गया है कि उसका स्वयं का पेट नहीं भरता है।और मुखबिर के खिलाफ भी अगर पुलिस को पैसा मिले तो उसे ही पुलिस अपमानित कर दे। कुछ कथित लोग जो दिन भर थाने/कोतवली की दलाली करते हैं,वही मुखबिरी भी करते हैं। ऐसे ही कुछ अन्य लोग हैं जिनके पास अदालत की कोई फाइल नहीं होती है वो सौ, दो सौ रुपये के चक्कर में पुलिस के थानों से लेकर हाकिमों के दफ्तरों तक देखे जाते हैं।प्रतापगढ़ में कुछ जुए के फड़ चलाने वाले मठाधीश भी आजकल पुलिस की मुखबिरी करते देखे गए हैं। यही नहीं पुलिस की मुखबिरी में तो सत्तापक्ष के छुटभैय्ये नेता भी शामिल हैं। परन्तु हकीकत में ये सब एक भी मुखबिर पुलिस के अपने नहीं हैं। पहले पुलिस अपने मुखबिर पर धन खर्च करती थी और उसका नाम पता गोपनीय रखती थी और मुखबिर पर आने वाली मुसीबतों से उसे बचाती थी। उसके मान-सम्मान का ध्यान रखती थी।परन्तु आज पुलिस का पेट खुद ही नहीं भरता तो मुखबिर पालने की बात कौन सोचेगा ?पुलिस तो अब मुखबिर की जगह दलाल पालती है जो उसे पैसा पैदा कराने का काम करते हैं। उल्टे पुलिस से तगड़े नेटवर्क और मुखबिर अपराधियों के हो चुके हैं।यहाँ तक की पुलिस के कुछ गद्दार लोग अपराधियों के मुखबिर बन चुके हैं।सच बात तो ये है कि अपराधियों ने तो पुलिस में ही विभीषण बना लिए हैं। यदि अपराधियों के यहाँ दबिश देनी हो तो बहुत होशियारी के साथ। अन्यथा पुलिस के ही लोग उस अपराधी को दबिश की सूचना दे देता है।नवागत पुलिस अधीक्षक प्रतापगढ़ के विभिन्न थानों में वर्षों से जमें पुराने पुलिस कर्मियों को तत्काल हटा दें तभी अपराधियों के मुखबिर पुलिस विभाग में कम हो सकते हैं। प्रतापगढ़ में भी डिप्टी एसपी जियाउल हक की हत्या होती है और निलंबित इंस्पेक्टर अनिल कुमार की हत्या शहर के बीचो बीच वैष्णवी होटल के नीचे हो जाती है।मजे की बात है कि दोनों की जांच देश की सबसे बड़ी एजेंसी सीबीआई से करायी जाती है। परन्तु नतीजा ढाक के तीन पाता वाला ही रहता है। क्योंकि देश की सीबीआई इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि सिर्फ उसका नाम ही बचा है। कभी कोई मामला निपटाते नहीं देखा गया। सिर्फ बड़ी घटना होने के बाद उसकी जाँच के लिए पीड़ित भले ही माँग कर ले, परन्तु हकीकत में अब सीबीआई भी कुछ कर नहीं पाती। जिससे सीबीआई पर से भी लोगों का भरोसा उठ चुका है।

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