जुल्म इतना बुरा नहीं, जितनी बुरी तुम्हारी खामोशी

जुल्म इतना बुरा नहीं, जितनी बुरी तुम्हारी खामोशी

प्रतापगढ 


10.04.2021


रिपोर्ट--मो.हसनैन हाशमी 



ज़ुल्म इतना बुरा नहीं,जितनी बुरी तुम्हारी खामोशी 



आधुनिक भारत के निर्माता,महान क्रान्तिकारी समाज़ सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले और संविधान शिल्पकार डॉ.भीमराव अम्बेडकर दोनों का संघर्ष अपने समाज़ के अलावा समय के साथ भी है,बिना उनके इतिहास को जाने,समझे बग़ैर उस समय की मौलिक पड़ताल किये उनके योगदान को समझ पाना कठिन है।....।।आधुनिक भारत के निर्माण में दोनों की भूमिका अद्वितीय है।....."जहाँ न्याय की अवमानना होती हैं,जहाँ ज़हालत(अशिक्षा)और ग़रीबी है,जहाँ कोई भी समुदाय यह महसूस करें कि समाज़ सिवाय उसके दमन,लूट एवं अवमानना के संगठित-षड्यन्त्र एवं गिरोह के सिवाय कुछ नहीं है,वहाँ न तो मनुष्य सुरक्षित रह सकते हैं,न ही मनुष्यता।"......।।दोनों अलग-अलग समय में जन्में,जो फुले का समय था वह डॉ.अम्बेडकर का नही था,जिस वर्ष अम्बेडकर का जन्म हुआ उसके कुछ महीने पहले फुले दुनियाँ छोड़ चुके थे।...।।महात्मा ज्योतिबा फुले और डॉ.भीमराव अम्बेडकर इन दोनों महापुरुषों का भारत को आधुनिक राष्ट्र बनाने में सर्वाधिक एवं विशिष्ट योगदान रहा है।दोनों महापुरुषों ने शोषण एवं दमन से मुक्ति का मज़बूत आधार तैयार करने का कार्य किया।जाति व्यवस्था के विरोध में फुले जहाँ सीधी और स्पष्ट बात कहते,वहीं अम्बेडकर अपनी मान्यताओं के समर्थन में मौलिक एवं अकाट्य तर्क जुटाते रहे।वैसे भी राष्ट्र एवं समाज़ निर्माण की राह आसान नहीं होती।वर्तमान शासन एवं प्रशासन की मंशा को न केवल इसे गहराई से समझे,अपितु उसके समाधान के लिए आगे बढ़कर बदलाव के लिए पहल करना आवश्यक है।यदि इनके विचारों को अमल में लायें तो समाज़ की बहुत सारी विसंगतियों एवं समस्याओं जैसे-वर्ण,जाति,लिंग,आर्थिक,राजनीतिक,एवं धार्मिक समेत अन्य पहलुओं पर पैनी-नज़र रखी जा सकती है,साथ ही मज़बूत,समृद्धशाली,ख़ुशहाल,विकसित और न्यायिक व्यवस्था की ओर बढ़ा जा सकता है,जिससे ज़िम्मेदार एवं जवाबदेह लोकतन्त्र को मज़बूती मिल सके।

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