केजीएमयू डाॅक्टर का अद्धभुत काम, 3 डी प्रिंटिंग से मरीज़ का बना डाला कृत्रिम कान

केजीएमयू डाॅक्टर का अद्धभुत काम, 3 डी प्रिंटिंग से मरीज़ का बना डाला कृत्रिम कान

डाॅ सौम्येंद्र विक्रम सिंह


PPN NEWS

लखनऊ।

केजीएमयू डाॅक्टर का अद्धभुत काम, 3 डी प्रिंटिंग से मरीज़ का बना डाला कृत्रिम कान


लखनऊ। चिकित्सा के क्षेत्र में डाक्टर अक्सर कोई न कोई ऐसा काम कर जाते हैं जिसे सुनने या देखने के बाद हम हैरान हो जाते हैं। साथ ही हम यह सोचने पर भी मजबूर हो जाते हैं कि आख़िर किस तरह से इस काम को अंजाम दिया गया होगा।


ऐसा ही एक अद्धभुत काम कर दिखाया है राजधानी लखनऊ के प्रतिष्यिठत किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी( केजीएमयू ) जहां डाॅ सौम्येंद्र विक्रम सिंह ने 3 डी प्रिंटिंग के ज़रीय मरीज़ का कृत्रिम कान बना डाला। यह अद्धभुत उपलब्धि केजीएमयू दंत संकाय विभाग के डाॅक्टरों की टीम ने हासिल की है। 


डॉ. सौम्येंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि एक 32 वर्षीय युवा पुरूष जो हेमीफ़ेशियल माइक्रोसोमिया नाम की बीमारी से ग्रसित था इलाज के लिए केजीएमयू आया था। मरीज़ का दाहिना कान नहीं था। उसको यह समस्या जन्म से थी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नॉर्मल चेहरे की अपेक्षा में यह चेहरा कम ग्रोथ वाला था। ऐसे मरीज़ों के लिए चश्मा पहनने व्यवहारिक रूप से संभव ही नहीं होता। 


ऐसे में डॉक्टरों ने मरीज़ के लिए बिलकुल असली कान जैसा कृत्रिम कान बनाकर इंप्लांट कर दिया। यह काम केजीएयू के मैक्सीलोफेशियल प्रोस्थेटिक क्लीनिक में डाॅ अदीति वर्मा के साथ मिलकर इस काम का अंजाम दिया। डाॅ सौम्येंद्र्र ने बताया कि सिलिकॉन से से तैयार कृत्रिम कान को इंप्लांट करने के लिए पहले बांए कान का 3डी इमेज बनाया गया, ताकि दोनों कान एक जैसे लगें। आख़िरकार इस प्रत्यारोपण में डॉक्टरों ने सफ़लता भी हासिल कर ली।


इस इंप्लांट की सबसे खास बात यह है कि कान को बार-बार चिपकाने के लिए किसी प्रकार के एडहेसिव लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। ऐसा इस लिए कि मरीज़ के सिर की हड्डी में पेंच लगाकर इसे चुंबक से फिट कर दिया गया है, ताकि कान में स्थिरता और जड़ता बनी रहे। केजीएमयू के डॉक्टरों का दावा है कि मैग्नेट से चिपकने वाला और 3 डी प्रिंट के ज़रिए बना कृत्रिम कान बिलकुल असली कान जैसा लगता है। ऐसा अद्धभुत कारनामा केजीएमयू और उत्तर भारत के किसी भी अस्पताल में पहली बार किया गया है। 


डॉ. सौम्येंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि मरीज़ को जन्म से ही ऐसी समस्या थी। उन्होंने बताया कि इसका कारण यह था कि मरीज़ के नॉर्मल चेहरे की अपेक्षा में यह चेहरा कम ग्रोथ वाला था। इसी के चलते विकृतियां उत्पन्न हो गईं। इस तरह के मामलों में ख़ासकर कान में विकृतियों को देखा जाता है। कई बार कान ही नहीं होता और यदि होता भी है तो बहुत छोटा सा।


3डी प्रिंट की मदद से बनाया गया कान

डॉ. विक्रम ने बताया कि अमूमन कान के पास वाली हड्डी में सिलिकॉन का प्रयोग करके ऐडहेसिव की मदद से पेंच को चिपकाया जाता है लेकिन यह ऐडहेसिव प्रक्रिया मरीज़ों में दिक्क़त पैदा करती है।


क्योंकि उन्हें रोज इसे नहाते वक्त इसे निकालना पड़ता है, जिसके चलते असली कान की नेचुरल फीलिंग नहीं आ पाती है और ऐसे में मरीज़ को हमेशा अहसास होता रहता है कि यह कान उसके शरीर का हिस्सा नहीं है। इसीलिए हमारे विभाग ने इंप्लांट करके कान को फिक्स कर दिया। 


इस कान को फिक्स करने के लिए उन्होंने मैग्नेट का इस्तेमाल किया जिससे कान एकदम जकड़ गए और मरीज़ को लगने लगे कि यह नकली कान उसके शरीर का ही हिस्सा है। इसके लिए उन्होंने एक और विधि अपनाई। सबसे पहले मरीज़ के दूसरे नॉर्मल कान की एक डिजिटल इमेज बनाई गई और उसी डिजिटल इमेज को फ्लिप कर दिया गया। इसे मिरर इमेज भी कहते हैं और इसी मिरर इमेज को फ्लिप करके उसका 3डी प्रिंट निकाल लिया गया है।


इसी 3डी प्रिंट को कृत्रिम कान बनाने में इस्तेमाल किया गया।  क्योंकि कान के आकार की रूप रेखा को बनाना बहुत ही कठिन होता है इसलिए 3डी प्रिंट करके कान बनाया गया और यह मरीज़ के नॉर्मल कान जैसा हो गया। डाॅ सौम्येंद्र ने बताया कि इस अद्धभुत उपलब्धि को हासिल करने के लिए डाॅ वासू सिद्धार्थ सक्सेना तथा डाॅ दीक्षा आर्या ने उनका साथ दिया।


डाॅ सौम्येंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि इस काम को अंजाम देने के लिए विभाग के एचओडी डाॅ पूरन चंद तथा केजीएमयू कुलपति डाॅ सोनिया नित्यानंद का बड़ा सहयोग मिला जिसके बिना इसे अंजाम देना संभव नहीं था।

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