कोरोना घातक तो नहीं लेकिन हल्के में न लें, वरना चुकानी पड़ सकती है, भारी कीमत- डॉ. सूर्यकांत

कोरोना घातक तो नहीं लेकिन हल्के में न लें, वरना चुकानी पड़ सकती है, भारी कीमत- डॉ. सूर्यकांत

prakash prabhaw news

लखनऊ।

Zahid Akhtar 

कोरोना घातक तो नहीं लेकिन हल्के में न लें, वरना चुकानी पड़ सकती है, भारी कीमत- डॉ. सूर्यकांत

मास्क लगाना लाभदायक लेकिन सावधानी न बरती तो हो सकता है, हानिकारक


लखनऊ। देश इन दिनों कोरोना संकट के दौर से गुजर रहा है। इसको सार्वजनिक तौर पर फैलने से रोकने के लिए ही विश्वभर में लॉकडाउन करना पड़ा। चिकित्सकों की आम राय यही है कि कोरोना संक्रमण घातक संक्रमण की श्रेणी में नहीं आता है। केजीएमयू रेस्पेटरी विभाग के एचओडी, आईएमए के राष्टï्रीय मानद प्रोफेसर एवं उप्र कोरोना टास्कफोर्स के हेड प्रो. सूर्यकांत का यह मानना है कि कोरोना संक्रमण घातक तो नहीं लेकिन इसको हल्के में लेना हमें भारी पड़ सकता है। मास्क पहनना हानिकारक है या लाभदायक इस पर संदेशवाहक वरिष्ठï संवाददाता ने प्रो. सूर्यकांत से बात की।

                      प्रो. सूर्यकांत

प्रो. सूर्यकांत ने बताया कि कोरोना संक्रमण निश्चित तौर पर इतना घातक नहीं है लेकिन यह भी सही है कि यदि कोरोना संक्रमण से कोई प्रभावित हो गया तो उसके लिए घातक भी साबित हो सकता है, विशेषकर उनके लिए जो पहले से ही किसी बीमारी या शारिरिक कमजोरी के शिकार हैं। इसका न तो कोई उपचार है न ही कोई वैक्सीन। ऐसे में इससे बचने के दो ही उपाय हैं। पहला- शारिरिक प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना। दूसरा- मास्क पहनना। यानि हम जब घर से निकलें तो मास्क आवश्य लगायें। प्रो. सूर्यकांत ने कहा कि यह सही है कि हमारे देश में लॉकडाउन के खुलते ही लोगों ने यह मान लिया कि कोरोना संक्रमण का खतरा टल गया। यही कारण है कि लोग या तो मास्क को ताक पर रख चुके हैं या मास्क तो पहनते हैं लेकिन वो मास्क न पहनने जैसा ही है।

यह दोनों ही गलत हैं। उन्होंने बताया कि एक शोध से पता चला है कि 25 से 30 प्रतिशत आदमी मास्क का इस्तेमाल नहीं कर रहा है, जबकि उनका स्वयं का यह अवलोकन है कि 50 प्रतिशत आदमी मास्क का दुर्पयोग कर रहा है। शोध में यह भी आया है कि एक आम आदमी अपने मास्क को एक घंटे में लगभग 20 से 25 बार उपर-नीचे करता है। यह नजारा अक्सर या तो दफ्तर में काम कर रहे कर्मचारियों में देखने को मिलता है या किसी सब्जी मण्डी में या किसी दुकान में खरीदारी करते समय। घर में अमूमन यह देखा गया है कि लोग मास्क लगातेे ही नहीं हैं।

हमें यह समझना होगा कि देश में लगभग दस हजार केस प्रतिदिन आ रहे हैं। केवल उप्र की बात करें तो यह आंकड़ा 500 से उपर का है। देखा जाए तो हम एक बड़ी विकट समस्या से जूझ रहे हैं। यदि हमने इसकी गंभीरता को नहीं समझा तो समस्या और भी विकट हो सकती है। इसलिए मेरी लोगों से यह विशेष अपील है कि मास्क अवश्य लगाएं। उन्होंने विशेष तौर पर संदेशवाहक समाचार पत्र का विशेष धन्यवाद देते हुए कहा कि मुझे खुशी है कि संदेशवाहक आमजन से जुड़ी इस प्रकार की समस्याओं को प्रमुखता से उठाता रहा है।

मास्क खाादी का हो, रूमाल या गमच्छा भी बेहतर है
प्रो. सूर्यकांत बताते हैं कि सर्जीकल मास्क के लिए अधिकतर लोग दुकानों में मारा-मारी करते नजर आते हैं। यह मास्क री-यूजेबल नहीं होते। पांच से छह घंटे बाद यह किसी काम के नहीं होते। बेहतर है कि इसको एक बार इस्तेमाल करने के बाद कूड़ेदान में डाल दें। इससे बेहतर है रूमाल, गमच्छा, महिलाओं के लिए दुपट्टा या खादी निर्मित मास्क। यदि घर में कोई वृद्घ व्यक्ति हो, मधहुमेह का रोगी हो, दिल का मरीज हो गर्भवति महिला हो या अन्य किसी गंभीर रोगों से ग्रसित व्यक्ति हो तो घर में भी मास्क लगाएं। बच्चा, बुजुर्ग या रोगी हो तो मास्क जरूर लगाएं।

विशेषकर यदि कोई व्यक्ति बाहर से आता है तो वो सावधानियां जरूर बरते। मास्क को हाथों से बार-बार न छूएं। मास्क को जब भी उतारें तो पीछे से उतारें। यदि लंबे समय तक लगाना हो तो यह समस्या आती है। एक बीमारी होती है जिसे हम चिकित्सीय भाषा में क्लॉसट्रोफोबिया कहते हैं यानि ऐसे लोगों को किसी न किसी चीज से उलझन महसूस होती है। ऐसे लोग चिकित्सीय सलाह अवश्य लें, विशेषकर मानसिक चिकित्सक से। सांस के रोगी हैं तो मेरी विशेष सलाह है कि वो घर से बाहर ही न निकलें। उन्होंने बताया कि यह बात गलत है कि मास्क पहनने से हमारे मुंह से निकलने वाले बैक्टीरिया वापस हमारे शरीर के अंदर आ जाते हैं। उन्होंने बताया कि केवल सांस के रोगियों के लिए कार्बन डाईआक्साइड का रिटेंशन मुश्किल होता है। सामान्य व्यक्ति में ऐसा संभव नहीं है।

जब हम सांस छोड़ते हैं तो साथ में भाप भी निकलती है जो डिपोजिट हो जाती है, इसलिए पांच से छह घंटे बाद मास्क बदल देना चाहिए। मास्क लगाकर आप केवल कोरोना से नहीं बच रहे हैं बल्कि आप इनफल्यूंजा, निमानिया, टीबी आदि रोग से भी बच रहे हैं। यह धारणा कि मुंह से निकलने वाले बैक्टीरिया से हमें नुकसान होगा तो यह गलत है क्योंकि यह तो हमारे अपने बैक्टीरिया हैं। हां यह जरूर है कि खांसी-जुकाम के मरीजों को थोड़ी समस्या जरूर हो सकती है। प्रो. सूर्यकांत ने कहा कि कोरोना से पीछा छूटा नहीं है इसलिए सावधानी मूलमंत्र है। 


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