लोकतंत्र पर हावी होता वोट तंत्र
- Posted By: MOHD HASNAIN HASHMI
- राज्य
- Updated: 14 February, 2022 19:08
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प्रतापगढ
14.02.2022
रिपोर्ट--मो.हसनैन हाशमी
लोकतंत्र पर हावी होता वोटतंत्र
जहां उत्तर प्रदेश चुनाव में डूबा है और जहां चुनाव नहीं हो रहे हैं वहां शंका आशंका में लोग डूबे हैं। चुनाव प्रक्रिया में मतदान को 3 शब्दों से पवित्र सा भाव देते हैं लोकतंत्र का पर्व लोकतंत्र शब्द ही बहुत पवित्र है। इतना पवित्र कि विश्व में लोकतंत्र को अब तक सर्वोत्तम मानव व्यवस्था माना जाता रहा है। लोकतंत्र का पालन करने वाले देश और लोकतंत्र आधारित राजकीय व्यवस्था को सर्वोत्तम व्यवस्था माना जाता है। जहां लोकतंत्र नहीं है वहां विश्व संस्थाओं द्वारा लोकतंत्र स्थापित करने के लिए परामर्श से लेकर धमकियां तक दी जाती हैं। लोकतंत्र का सीधा सा अर्थ जो हमारे मस्तिष्क में घर बनाए बैठा है वह है मतदान द्वारा सरकार का गठन अर्थात लोकतंत्र तक पहुंचने के लिए वोट तंत्र की रणनीति यदि वोट की बिना राजकीय व्यवस्था से जीत होती है तो उसे सीधे-सीधे अधिनायक वादी व्यवस्था मान लिया जाता है और यह सोच लिया जाता है कि वहां मानवाधिकार का हनन हो रहा है चुनाव पर अपने विश्लेषण में विश्लेषकों ने शायद ही इस तथ्य को पकड़ा है कि प्रत्येक चुनाव पिछले चुनाव से अधिक विषैला होता जा रहा है। दूसरे शब्दों में लोकतंत्र को अपनी निरंतर विकास यात्रा का बहुत बड़ा मोल चुकाना पड़ रहा है। अब प्रचार तंत्र के साधन संसाधन सब बदल गए हैं दशकों पूर्व समाचार में बूथ कैप्चर के ठेके के समाचार आते थे अब ठेकेदार बदल गए हैं सूचना युग के चुनावी समर में जीत के रणनीतियां बनाने वाले मैनेजर किराए पर लिए जाने लगे हैं। यह कुशल खिलाड़ी चुनाव में उतरे दल को विजई बनाने के उद्देश्य साम दाम दंड भेद की नई-नई चालें सिखाते हैं मतदाताओं की विवेक हरण के लिए न ई लालसा पैदा करते हैं इन चुनावी प्रबंधकों के अपने कोई विचार नहीं होते हैं जो भी दल इन्हें चारा डालें उसी के विचार में रम जाते हैं। राजनीत में दलबदलू एक गाली है मगर नए ठेकेदारों ने अभी यह गाली अर्जित नहीं की है चुनाव और युद्ध में बस इतना अंतर है कि चुनाव के दिन की भाषा युद्ध काल की भाषा से अधिक विषैली होती जा रही। उत्तर प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव के दौरान अनेक नेताओं से लेकर सामान्य जन प्रचारकों तक ने जैसे विषाक्त शब्दों और धमकी भरी भाषा का प्रयोग किया है वैसा पहले बहुत कम हुआ है। उत्तर प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव ने तो सारी सीमाएं ही लांग दी है राजनीतिक नैतिकता की लुटिया जैसे इस चुनाव में डूबी है वैसे पहले शायद ही कभी डूबी हो मगर यह अंतिम दृश्य नहीं है लोकतंत्र के भविष्य का राजनीतिक अनैतिकता की धुंध में डूबना निश्चित है मतदान के माध्यम से लोकतांत्रिक राज की व्यवस्था की स्थापना निश्चित ही राजनीति का सर्वोत्तम दर्शनशास्त्र है परंतु जब वोट तंत्र पर लोकतंत्र इतना हावी हो जाएं की व्यवस्थाएं भी उसके सामने बौनी लगने लगे ईर्ष्या द्वेष और वैमनस्य की विषैली हवाए सभ्यता संस्कृति को कलंकित करने लगे तथा राष्ट्र के भूगोल में दरार पड़ने लगे तब राष्ट्र के भूगोल में दरार पड़ने लगे तब राष्ट्र की अक्षुण्णता को सुरक्षित रखने के लिए वैकल्पिक रणनीति तैयार करना अवश्यंभावी हो जाता है।
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