अवधी सम्राट आद्या प्रसाद उन्मत्त की जयंती 13 जुलाई पर विशेष-- परशुराम उपाध्याय "सुमन"

अवधी सम्राट आद्या प्रसाद उन्मत्त की जयंती 13 जुलाई पर विशेष-- परशुराम उपाध्याय "सुमन"

प्रतापगढ 


12.07.2021



रिपोर्ट--मो.हसनैन हाशमी



अवधी सम्राट आद्या प्रसाद उन्मत्त की जयंती 13 जुलाई पर विशेष--परशुराम उपाध्याय "सुमन"



उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक जनपद प्रतापगढ़ की सोंधी माटी में तहसील सदर (वर्तमान में रानीगंज) में स्थित ग्राम मल्हूपुर (निकट देल्हूपुर) में 13 जुलाई,1935 में जन्मे स्वनामधन्य प्रख्यात रचनाकार पंडित आद्या प्रसाद मिश्र 'उन्मत्त' का नाम विविध क्षेत्रों में जनपद की महान उपलब्धि बतौर सदैव माना जाएगा। आज 'उन्मत्त' नाम अपने परिचय का मोहताज नहीं रह गया है।

जन्म से लेकर 3 सितंबर,2006 (मृत्यु तिथि) तक उनके जीवन की उपलब्धियों की बहुत बड़ी श्रृंखला है। उन्मत्त जी ने राजनैतिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, पत्रकारिता, वकालत एवं न्याय क्षेत्र में अपनी सहभागिता से जनपद का नाम रोशन किया। वे एक मृदुभाषी, व्यवहार कुशल, और  दृढ़निश्चयी, सरल व्यक्तित्व के धनी थे। हिंदी साहित्य को ऊंचाइयों पर पहुंचाने की भावना रखने वाले उन्मत्त जी की खड़ी बोली पर जितनी पकड़ थी उससे कहीं ज्यादा अवधी भाषा पर थी। अवधी की तमाम रचनाओं के साथ 'पाती' जैसी उच्च कोटि की अवधी रचना  के लिए वे सदैव साहित्यिक क्षेत्र में जाने जाते रहेंगे।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विधि स्नातक की उपाधि के बाद जनपद प्रतापगढ़ में वकालत तथा बाल न्यायाधीश जैसे उच्च कोटि के पद पर आसीन होकर उन्होंने अपने कर्तव्य और दायित्व का बखूबी निर्वहन किया।

भारत की राजधानी दिल्ली से प्रकाशित होने वाले 'युवा शक्ति' नामक अखबार का भी कई वर्षों तक संपादन करके पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उन्होंने महारथ हासिल किया।

यही नहीं, श्रद्धेय उन्मत्त जी की ऊंची सोच ने राजनैतिक क्षेत्र में हस्तक्षेप करते हुए 'गौरैया' चुनाव चिन्ह से प्रतापगढ़ सदर क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव भी लड़ने का साहस किया था।

श्रद्धेय उन्मत्त जी ने अपनी क्षमता एवं कर्तव्यनिष्ठा के उच्च विचार के क्रम में जनपद प्रतापगढ़ में रचनाकारों की एक बहुत बड़ी श्रंखला तैयार करने में कामयाबी हासिल की है, बल्कि यूं कहिए कि वे रचनाकारों के जनक थे।

जिला प्रशासन द्वारा प्रतिवर्ष स्वाधीनता दिवस के पावन अवसर पर आयोजित होने वाले साहित्यिक कार्यक्रम के दौरान 15 अगस्त, 2001 को शहर के तुलसी सदन (हादी हाल) में आयोजित साहित्यिक गोष्ठी में प्रशासन द्वारा की गई अव्यवस्था एवं कवियों की उपेक्षा किए जाने और किसी प्रशासनिक अधिकारी के उस कार्यक्रम में उपस्थित न होने से व्यथित होकर श्रद्धेय 'उन्मत्त' जी ने कार्यक्रम का बहिष्कार करते हुए संकल्प लिया कि जनपद में एक ऐसी साहित्यिक संस्था का गठन होना आवश्यक है, जो समस्त रचनाकारों को सम्मान, संरक्षण एवं संवर्धन प्राप्त कराये।

उसी क्रम में श्रद्धेय 'उन्मत्त' जी ने 22 अगस्त, 2001 को 'कविकुल' नामक साहित्य संस्था का गठन करके जनपद के समस्त रचनाकारों को एक सूत्र में बंधने और साहित्य को ऊंचाइयों तक पहुंचाने की योजना को मौलिक स्वरूप प्रदान किया। फलस्वरूप वरिष्ठ प्रबंधक एवं प्रख्यात कहानीकार सुखदेव तिवारी को 'कविकुल' का अध्यक्ष घोषित करते हुए उसके संचालन का दायित्व वरिष्ठ अधिवक्ता/साहित्यकार परशुराम उपाध्याय 'सुमन' को सौंपा और शुरू हो गया कवि गोष्ठी एवं कवि सम्मेलन के आयोजनों का सिलसिला।

साहित्यिक संस्था 'कविकुल' के माध्यम से सितंबर के महीने में शुरू हुए हिंदी पखवारा के कार्यक्रमों के अंतर्गत विविध गोष्ठियां एवं उद्घाटन समारोह एवं समापन समारोह के बड़े-बड़े आयोजनों ने प्रतिवर्ष साहित्यिक धूम मचा दी। सितंबर के महीने में होने वाले हिंदी पखवारे के कार्यक्रमों की गूंज आम प्रबुद्ध जनों के मनोमस्तिष्क में साल भर सुनाई व दिखाई पड़ती रहती है। कवि कुल के कार्यक्रमों में

'कवीकुल' की ओर से प्रतिवर्ष 22 अगस्त को स्थापना दिवस, 3 सितंबर को श्रद्धेय 'उन्मत्त' की पुण्यतिथि एवं 13 जुलाई को उन्मत्त जयंती के अवसर पर साहित्यिक कार्यक्रम होते चले आ रहे हैं।

कालांतर में बैंक की प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्गत 'कविकुल' के अध्यक्ष सुखदेव तिवारी का स्थानांतरण अन्य जनपद में होने के कारण जनपद के साहित्यकारों ने उन्मत्त जी के अभिन्न शिष्य रहे मौलिक रचनाकार चंद्रमणि पांडेय 'चंद्र' के प्रस्ताव पर संचालक का दायित्व निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता साहित्यकार परशुराम उपाध्याय 'सुमन' को 'कविकुल' के अध्यक्ष पद का गुरुतर दायित्व सौंपा गया और आज तक वे अपने कर्तव्य एवं दायित्व का निर्वहन करने के प्रयास में सतत प्रयत्नशील रहते हैं।

हिंदी पखवाड़े के क्रम में आयोजित होने वाले कवि कुल के कार्यक्रमों में अब तक टीकरमाफी के परम संत ब्रह्मचारी जी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति रहे प्रोफेसर आर पी मिश्रा एवं संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के कुलपति रहे प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद मिश्र, अमेठी के साहित्यानुरागी जगदीश 'पीयूष' सहित जनपद के राजनेताओं, मूर्धन्य विद्वानों, अधिवक्ताओं, शिक्षकों, चिकित्सकों, व्यवसायियों,  पत्रकारों व जनपद के लगभग समस्त साहित्यकारों की सहभागिता समय-समय पर होती रही है।

श्रद्धेय 'उन्मत्त' जी की तमाम रचनाएं साहित्य  और हिंदी प्रेमियों की जुबान पर हैं, लेकिन उनमें सर्वोत्कृष्ट कृति 'पाती' शीर्षक की रचना है जिससे वे सुविख्यात हुए। यही नहीं इस अवधी रचना 'पाती' को साकेत विश्वविद्यालय फैजाबाद में स्नातक कोर्स में रखकर इसकी महत्ता को बहुत आगे बढ़ा दिया है और निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि इस 'पाती' रचना ने श्रद्धेय 'उन्मत्त' जी को अजर और अमर कर दिया है। श्रद्धा उन्नत जी को साहित्य की अमूल्य धरोहर मानते हुए कभी कुल अध्यक्ष परशुराम उपाध्याय सुमन ने एक मुक्तक के माध्यम से कहा है कि..........


कवियों के लिए अनुपम वरदान थे उन्मत्त।

अपने वतन की आन बान शान थे उन्मत्त।

वे अमर हैं सुमन की श्रद्धांजलि उन्हें,

अवधी के सूर तुलसी रसखान थे उन्मत्त।


आज उन्मत्त जयंती के पावन अवसर पर हम जनपद के समस्त साहित्यकार एवं हिंदी प्रेमीजन श्रद्धेय उन्मत्त जी को सादर नमन करते हैं और अपने को गौरवान्वित महसूस करते हैं कि उन्होंने विविध क्षेत्रों सहित साहित्य के माध्यम से जनपद प्रतापगढ़ का नाम रोशन किया है।

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