।।श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव विशेषांक।।

।।श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव  विशेषांक।।

प्रकाश प्रभाव न्यूज़ प्रयागराज


संकलनकर्ता - सुरेश चंद्र मिश्रा "पत्रकार"


।।श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव  विशेषांक।।


धनि धनि वसुदेव देवकी जू को बार बार धनि धनि बृजराज नंद यसुदा सी माई  को।।

 धनि धनि बृजवासी धनि जमुना महरानी जू धनि धनि सब गोकुल के लोग अरु लुगाई को। 

वेद प्रतिपाद्य ब्रह्म जाके अंक खेलि रहे वापे केहि भांति करे कविगन कविताई को।।

 भू पर वैकुंठ नाथ धारि शिशु रूप आए धनि धनि बल दाऊ को कुंवर कन्हाई को।।1।। रोहिणी नक्षत्र बुधवार तिथि अष्टमी को अर्ध निशा घोर तम बदरी झुरि आई है।।

 बालक ह्वै आये जगपालक कारावास बीच कोटिन कंदर्पन की मंजु छबि छाई है।।

 सुंदर चतुर्भुज में शंख चक्र गदा पद्म श्याम तन पीत पट दामिनी लजाई है।।

 जननी जनक को प्रबोधि शिशु रूप भये ता छिन द्वारपालन को गहन नींद आई है।।2।। दैव बस सूप एक प्रगट्यो काल कोठरी में बेडी हथकड़ी सबै टूटी तेहि काल में।

 स्वान दरबान सबैं मोह नींद ग्रस्त भये दंपति की दृष्टि लगी प्राण प्रिय लाल में। 

पूरब की बात याद करि के धरे सूप बीच टूटि गये बज्र के किवारे खेल खाल में। 

सूप धरि हरि को शशंक बसुदेव चले प्रविसे तरंग मई यमुना कराल में।। 3।।

कटिं सों उठि वछ लौं कालिंदी को नीर बढ्यो कंठ पुनि ठोढी लों जमुना जल आइ के। व्याकुल निहारि पिता लीला बृजेश कीन्हे नान्हे पद कंज नख नीर सों छुवाइ गे।। 

मन मे परितोष भयो मृत्यु भय दूर गयो नंद औ जशोदा बिना मांगे हरि पाइ गे।।

 जसुदा पर्यंक से निसंक बालिका उठाइ श्याम को सोवाइ लौटि कोठरी में आइगे।।4।।

देखी सुनंदा ब्रह्म बेला में यशोदा कक्ष कोटि कोटि दिनकर की मंजु छबि छाई है।। 

भाभी के पलंग निहारि भुवनेश बाल दौरि बृजनाथ के समीप चलि आई है।। 

देव अनुकूल भये विरह को शूल गये धन्य धन्य भये आजु भइया भउजाई है ।।

शोक सिंधु पार भये लालन अवतार भये दीजै नौलखा हार कोटिन बधाई  है।। 5।।

कानन में अमृत की ढरकी उडेलि दई भगिनी को पकरि नंद नाचत बुढाई में।। 

नंद घर अनंद भयो गोकुल रव फैलि गयो परम उमंग भयो गली औ अथाई मे।। 

गोप सबै घेरि नंद बाबा को नचावें नाच ज्वार उठ्यो मानों आजु लोग अरु लोगाई में।। 

देखि देखि कोटि कंदर्प दर्प दमनीय वारत धन धाम अर्थ काम सब कन्हाई में।। 6।।

माखन को गोला लै मुख में लपटावे कोउ। कोउ नभ उडावत है अबीर अरु गुलाल को। 

कोउ गीत गावें कोउ थारी बजावें कोउ प्रमुदित लुटावें रतन गिन्नी अरु लाल को।। नंद नहवाइ के सजाइ के लगाइ इत्र काजर भरि नैन स्वर बढ्योहै  ढप ताल को।। 

लक्ष दुइ गइया तिल पर्वत सत्ताइस दीन्हें उत्सव मनावत सब मदन गुपाल को।। 7।।

हार मणि मंडित काढि जसुदा दई नाइन को तोलौ आइ धोबिन कर कंगन लै मुदित है। 

मालिनि कान कुंडल मनिहारिन कटि करधनी लै बाजूबंद मालिन पाइ आनंद अमित है।। 

मुदरी अनमोल चर्म कारिनी के हांथ लगी माथ बेदी मिली भाग बरइन के उदित भे।।

निर्मल,, को दर्शन को दान दीजिए सुजान अष्टमी महोत्सव पर पद ए लिखित भै।। गोपाल कृष्ण भगवान की जै।।

Comments

Leave A Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *