जन्म मरण के बंधन से मुक्त कराती है भागवत--पं.शेषधर मिश्र

जन्म मरण के बंधन से मुक्त कराती है भागवत--पं.शेषधर मिश्र

प्रतापगढ 




13.04.2022




रिपोर्ट--मो.हसनैन हाशमी




जन्म मरण के बन्धन से मुक्त कराती है भागवत-पं.शेषधर मिश्र 



प्रतापगढ़। प्रतापगढ़ स्थित विक्रम पट्टी में भागवत कथा के द्वितीय दिवस की कथा में कथावाचक पं. शेषधर मिश्र 'अनुरागी' ने कहा की भागवत की कथा भक्ति ज्ञान वैराग्य की त्रिवेणी संगम है, जो इसमें स्नान करता है वह जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। माता पार्वती को भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर अमरकथा सुना रहे थे, तभी शुक (तोता) ने कथा छिप कर सुनी तो भगवान शंकर को क्रोध आया देख तोता व्यास पत्नी के मुख से उदर में प्रवेश कर गया, वही तोता ने शुकदेव के रुप में जन्म लिया और राजा परीक्षित को जब ऋषि पुत्र ने सातवें दिन तक्षक द्वारा काटने का श्राप दिया तब इन्हीं शुकदेवजी ने भागवत कथा सुनाई थी । प्रतापगढ़ स्थित विक्रम पट्टी में भागवत कथा के दूसरे दिन की कथा में कथाव्यास पं. शेषधर मिश्र 'अनुरागी' ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि भीष्म पितामह ने महाराज युधिष्ठिर को दान धर्म का उपदेश दिया।धन की सार्थकता दान करने में है। राजधर्म, स्त्री धर्म, भगवत धर्म का उपदेश दिया बाद में भीष्म पितामह ने भगवान की ओर देखा और प्रभु को निहारते-निहारते अपने प्राणों का परित्याग कर दिया। कथा वाचक ने कहा कि हमें भूल कर भी किसी पापी का साथ नहीं देना चाहिए, क्योंकि पापी का साथ देना पाप करने के बराबर ही होता है । भीष्म पितामह ने कौरवों की सभा में द्रोपती को दुशासन के द्वारा अपमानित किए जाने पर विरोध नहीं किया। यही उनका पाप था, जिसके फलस्वरूप उन्हें सर सैया पर सोना पड़ा। कथा में भजनों की प्रस्तुतियाँ श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर रही है।

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