प्रतापगढ़ जनपद का अफसरों वाला गांव "बहुंचरा"

प्रतापगढ
20.09.2020
रिपोर्ट--मो.हसनैन हाशमी
प्रतापगढ जनपद का अफसरों वाला गाँव "बहुचरा"
प्रदेश के दूसरे गाँवों की तरह प्रतापगढ जनपद का बहुुंचरा भी एक आम सा दिखने वाला गाँव है। लेकिन इस गाँव की एक बात ऐसी है जो इसे बाकी गाँवों से अलग करती है, वो ये है कि इस गाँव के हर दूसरे घर से एक व्यक्ति आईएएस या आईपीएस या अन्य किसी उच्च आधिकारिक पद पर है। इलाके के लोग इसे अफसरों वाला गाँव कहते हैं।प्रतापगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 24 किमी उत्तर-पश्चिम दिशा में संडवा चंद्रिकन ब्लॉक में सई और लोनी नदी के बीच बसे बहुंचरा गाँव में वैसे तो खेती नाम मात्र की होती है, लेकिन होनहार छात्रों और प्रसानिक अधिकारियों के लिए इस गाँव की जमीन खूब उपजाऊ है। इस गाँव हर दूसरे घर में सरकारी नौकरी में उच्च पद पर तैनात है। गाँव में स्थित महात्मा गांधी इंटरमीडिएट कॉलेज के गेट पर ही वर्ष 1970 से हाईस्कूल और इंटरमीडिएट में अच्छे नंबर लाने वाले परीक्षार्थियों की सूची लगी है। इस सूची में लिखे नामों में से आज कोई पुलिस विभाग में उच्च पद पर है तो कोई चिकित्सा क्षेत्र में।वर्ष 1969 से गाँव में स्थापित महात्मा गांधी इंटर मीडिएट कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ राजेन्द्र बहादुर सिंह बताते हैं, ”कॉलेज के पहले भी कई लोग उच्च पदों पर थे, वर्ष 1976 से मैंने कॉलेज में प्रधानाचार्य का पद संभाला, उसके बाद मैंने नियम से गाँव के बच्चों को घर-घर जाकर सुबह पढऩे के लिए जगाना शुरू किया। अब तो घर-घर नहीं जा पाता, लेकिन बच्चे दूसरों को देखकर पढऩे के लिए प्रोत्साहित होते हैं।” वो आगे कहते हैं, ”हमारे कॉलेज का परीक्षा परिणाम हर वर्ष 90 प्रतिशत रहता है।” पिछले वर्ष गाँव में एक साथ 11 लड़कों का चयन सब इंस्पेक्टर के पद पर हुआ था। इसके पहले भी कई इंस्पेक्टर इस गाँव से निकले थे।कॉलेज में बारहवीं कक्षा में पढऩे वाले हरिप्रताप तिवारी भी प्रशासनिक सेवा में जाना चाहते हैं। हरिप्रताप कहते हैं, ”मैं भी और लोगों की तरह अधिकारी बनकर अपने गाँव का नाम करना चाहता हूं।”इस गाँव का प्राथमिक विद्यालय भी यहां के छात्रों की उपलब्धि का एक अहम हिस्सा है। प्राथमिक विद्यालय का नाम है जबरिया अनिवार्य प्राथमिक विद्यालय। इस विद्यालय की कहानी बताते हुए प्रभारी चिकित्सा अधिकारी (अवकाश प्राप्त) डॉ. यशवंत सिंह कहते हैं, ”साल 1919 में हमारे गाँव से 25 लोग ब्रिटिश सरकार की तरफ से प्रथम विश्व युद्ध में गए थे, जब वो लोग लौटे ब्रिटिश सरकार की तरफ से उन्हें इनाम देने को कहा गया तो उन्होंने कहा कि गाँव में एक प्राथमिक विद्यालय खुलवा दें।” वो आगे बताते हैं, ”विश्वद्यालय खुलने के बाद गाँव में ये नियम बनाया गया कि जिसका बच्चा पांच साल का होगा उसका नाम जबरदस्ती लिखा दिया जाएगा, इसलिए विद्यालय का नाम जबरिया अनिवार्य प्राथमिक विद्यालय पड़ गया।” डॉ. यशवंत सिंह के बेटे अतुल कुमार सिंह सब इंस्पेक्टर हैं और उन्होंने 2013 में राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। बहुचरा गाँव के ही जगबीर सिंह, कॉलेज ऑफ आर्किटेक्ट, लखनऊ के प्रधानाचार्य और उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय के आर्किटेक्ट विभाग के संकायाध्यक्ष हैं। जगबीर सिंह अपने गाँव के बारे में बताते हैं, ”गाँव में पहले से ही पढ़ाई का माहौल था, 1970 में गाँव के कॉलेज से हाईस्कूल पास करने के बाद शहर चला गया और इंटर की पढ़ाई की, जिस समय बीटेक के बारे में बहुत कम ही लोग जानते थे उसी समय मेरा (वर्ष 1976 में) एडमीशन आईआईटी रुड़की में हो गया, उसके बाद भी मेहनत करता रहा जो मुझे यहां तक लेकर आई।” प्रतापगढ़ के बहुचरा को लोग अफसरों वाला गाँव कहते हैं बहुचरा (प्रतापगढ़)। प्रदेश के दूसरे गाँवों की तरह बहुचरा भी एक आम सा दिखने वाला गाँव है। लेकिन इस गाँव की एक बात ऐसी है जो इसे बाकी गाँवों से अलग करती है, वो ये है कि इस गाँव के हर दूसरे घर से एक व्यक्ति आईएएस या आईपीएस या अन्य किसी उच्च आधिकारिक पद पर है। इलाके के लोग इसे अफसरों वाला गाँव कहते हैं।प्रतापगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 24 किमी उत्तर-पश्चिम दिशा में संडवा चंद्रिकन ब्लॉक में सई और लोनी नदी के बीच बसे बहुंचरा गाँव में वैसे तो खेती नाम मात्र की होती है, लेकिन होनहार छात्रों और प्रसानिक अधिकारियों के लिए इस गाँव की जमीन खूब उपजाऊ है। इस गाँव हर दूसरे घर में सरकारी नौकरी में उच्च पद पर तैनात है। गाँव में स्थित महात्मा गांधी इंटरमीडिएट कॉलेज के गेट पर ही वर्ष 1970 से हाईस्कूल और इंटरमीडिएट में अच्छे नंबर लाने वाले परीक्षार्थियों की सूची लगी है। इस सूची में लिखे नामों में से आज कोई पुलिस विभाग में उच्च पद पर है तो कोई चिकित्सा क्षेत्र में। वर्ष 1969 से गाँव में स्थापित महात्मा गांधी इंटर मीडिएट कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ राजेन्द्र बहादुर सिंह बताते हैं, ”कॉलेज के पहले भी कई लोग उच्च पदों पर थे, वर्ष 1976 से मैंने कॉलेज में प्रधानाचार्य का पद संभाला, उसके बाद मैंने नियम से गाँव के बच्चों को घर-घर जाकर सुबह पढऩे के लिए जगाना शुरू किया। अब तो घर-घर नहीं जा पाता, लेकिन बच्चे दूसरों को देखकर पढऩे के लिए प्रोत्साहित होते हैं।” वो आगे कहते हैं, ”हमारे कॉलेज का परीक्षा परिणाम हर वर्ष 90 प्रतिशत रहता है।” पिछले वर्ष गाँव में एक साथ 11 लड़कों का चयन सब इंस्पेक्टर के पद पर हुआ था। इसके पहले भी कई इंस्पेक्टर इस गाँव से निकले थे। कॉलेज में बारहवीं कक्षा में पढऩे वाले हरिप्रताप तिवारी भी प्रशासनिक सेवा में जाना चाहते हैं। हरिप्रताप कहते हैं, ”मैं भी और लोगों की तरह अधिकारी बनकर अपने गाँव का नाम करना चाहता हूं।” इस गाँव का प्राथमिक विद्यालय भी यहां के छात्रों की उपलब्धि का एक अहम हिस्सा है। प्राथमिक विद्यालय का नाम है जबरिया अनिवार्य प्राथमिक विद्यालय। इस विद्यालय की कहानी बताते हुए प्रभारी चिकित्सा अधिकारी (अवकाश प्राप्त) डॉ. यशवंत सिंह कहते हैं, ”साल 1919 में हमारे गाँव से 25 लोग ब्रिटिश सरकार की तरफ से प्रथम विश्व युद्ध में गए थे, जब वो लोग लौटे ब्रिटिश सरकार की तरफ से उन्हें इनाम देने को कहा गया तो उन्होंने कहा कि गाँव में एक प्राथमिक विद्यालय खुलवा दें।” वो आगे बताते हैं, ”विश्वद्यालय खुलने के बाद गाँव में ये नियम बनाया गया कि जिसका बच्चा पांच साल का होगा उसका नाम जबरदस्ती लिखा दिया जाएगा, इसलिए विद्यालय का नाम जबरिया अनिवार्य प्राथमिक विद्यालय पड़ गया।” डॉ. यशवंत सिंह के बेटे अतुल कुमार सिंह सब इंस्पेक्टर हैं और उन्होंने 2013 में राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। बहुचरा गाँव के ही जगबीर सिंह, कॉलेज ऑफ आर्किटेक्ट, लखनऊ के प्रधानाचार्य और उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय के आर्किटेक्ट विभाग के संकायाध्यक्ष हैं। जगबीर सिंह अपने गाँव के बारे में बताते हैं, ”गाँव में पहले से ही पढ़ाई का माहौल था, 1970 में गाँव के कॉलेज से हाईस्कूल पास करने के बाद शहर चला गया और इंटर की पढ़ाई की, जिस समय बीटेक के बारे में बहुत कम ही लोग जानते थे उसी समय मेरा (वर्ष 1976 में) एडमीशन आईआईटी रुड़की में हो गया, उसके बाद भी मेहनत करता रहा जो मुझे यहाँ तक लेकर आई"।
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