सम्मानजनक सुरक्षित पेंशन, कर्मचारियों के हक और गरिमा का अधिकार--रीना त्रिपाठी

सम्मानजनक सुरक्षित पेंशन, कर्मचारियों के हक और गरिमा का अधिकार--रीना त्रिपाठी

PPN NEWS

प्रतापगढ 

10.02.2022

रिपोर्ट--मो.हसनैन हाशमी


सम्मानजनक सुरक्षित पेंशन , कर्मचारियों के हक और गरिमा का अधिकार---रीना त्रिपाठी


सर्वजन हिताय संरक्षण समिति महिला प्रकोष्ठ उत्तर प्रदेश की अध्यक्ष रीना त्रिपाठी ने कहा है कि कर्मचारियों और अधिकारियो ने क्या चुना है पुरानी पेंशन बहाली को हल करने वाली सरकार को चुनने का मुद्दा।

पुरानी पेंशन बहाली ,संविदा कर्मचारियों की रेगुलर भर्तियां ,पदोन्नति ,कैशलेस चिकित्सा आदि समस्याओं को लेकर शिक्षक कर्मचारी और अधिकारी समय-समय पर संघर्षरत रहे हैं ।इन मुद्दों पर कई राजनीतिक पार्टियां गंभीर हुई और अपनी घोषणापत्र में इन्हें स्थान प्रदान किया।

    इस चुनावी समर में शिक्षक प्रमुख रूप से अपने बुढ़ापे के सहारे पुरानी पेंशन के मुद्दे पर वोट करने के लिए उत्साहित है। शिक्षक कर्मचारी और अधिकारी जीवन भर अपने सम्मान पूर्ण दायित्व का निर्वाह करते हुए जब वृद्धावस्था में रिटायर होते हैं तो उन्हें अपनी स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों ,आर्थिक जरूरतों के लिए किसी पर निर्भर रहते हुए लाचारी और बेबसी का सामना ना करना पड़े इसके लिए पुरानी पेंशन बहाल हो एक ज्वलंत मुद्दा है।

          क्या थी ops आइए जानिए पुरानी पेंशन प्रक्रिया में कर्मचारियों के वेतन से कोई कटौती नहीं होती थी और जीपीएफ की सुविधा उपलब्ध थी. किसी इमरजेंसी की स्थिति में कर्मचारी अपने जी पीएफ का पैसा इस्तेमाल कर सकता था। पुरानी पेंशन में रिटायरमेंट के समय निश्चित पेंशन जो अंतिम मूल वेतन के 50% होती थी सुनिश्चित की जाती थी और उसमें महंगाई भत्ता भी लागू किया जाता था रिटायरमेंट के समय ग्रेजुएटी भी दी जाती थी और यदि सेवाकाल में मृत्यु होती थी तो फैमिली पेंशन उपलब्ध थी। पुरानी पेंशन का भुगतान सरकार द्वारा ट्रेजरी के माध्यम से किया जाता था जिसमें सुरक्षा की पूरी गारंटी थी। रिटायरमेंट के समय मिलने वाले जीपीएफ के ब्याज पर किसी प्रकार की टैक्स लायबिलिटी नहीं थी। रिटायरमेंट के बाद आवश्यकता अनुसार कर्मचारी अपनी पेंशन का राशीकरण भी कर सकता था और कर्मचारी को रिटायरमेंट के बाद मेडिकल फैसिलिटी भी उपलब्ध थी। पेंशन के बाद मिलने वाली रकम टैक्स फ्री हुआ करती थी।

        यदि वर्तमान परिस्थितियों की बात की जाए तो नई पेंशन स्कीम पेंशन के लिए वेतन से 10% बेसिक और डीए का कटौती की जाती है। सरकार द्वारा 14% दिया जाता है जिसमें आपको 14% पर ब्याज भी देना होगा। यह शेयर मार्केट पर आधारित असुरक्षित योजना है यानी कि रिटायर होने पर आपके द्वारा बचत किए गए पैसे को सरकार के द्वारा शेयर मार्केट में निवेश किया जाएगा किस कंपनी के शेयर में निवेश किया जाएगा यह चुनने का अधिकार भी कर्मचारियों के पास नहीं है। महंगाई भत्ता जोड़ने का कोई प्रावधान नहीं है ,वेतन आयोग की वृद्धि यों का कोई प्रावधान नहीं है ग्रेजुएटी का कोई प्रावधान नहीं है और यदि सेवाकाल में मृत्यु होती है तो फैमिली पेंशन का अस्थाई प्रावधान है। पेंशन का राशीकरण नहीं कर सकता। रिटायरमेंट के बाद जो धन मिलेगा उस पर इनकम टैक्स देना होगा और कुल मिले पेंशन फंड का 40% मार्केट में इन्वेस्ट भी करना होगा और उसी 40% की दया से आपको पेंशन मिलेगी यानी कि शेयर मार्केट से मिलने वाले लाभ के आधार पर पेंशन का निर्धारण होगा यदि मार्केट घाटे में चल रहा है तो पेंशन का निर्धारण क्या होगा यह भगवान ही जानता है।

    वर्तमान आर्थिक युग में अपने जीवन के सुनहरे 60 वर्षों तक सरकारी सेवा में देने के बाद यदि कर्मचारियों को बुढ़ापे में किसी परिवार जन के सामने अपनी छोटी-मोटी जरूरतों के लिए हाथ पसारना पड़ा तो वाकई यह कर्मचारियों की गरिमा शिक्षकों की नैतिकता और अधिकारियों के आत्म बल को तोड़ने के लिए काफी होगा।

   भारत सरकार ने कर्मचारियों के लिए पेंशन 1881 में रॉयल कमीशन की अनुशंसा पर शुरू की और भाजपा की सरकार में 2004 में इसे आर्थिक परिस्थितियों और सामाजिक सुरक्षा के नाम पर खत्म कर दिया गया। सरकारी नौकरियों में कार्यरत कर्मचारियों ने लगभग 123 वर्षों तक निश्चित सुविधा वाली पुरानी पेंशन का उपयोग किया देश ने विभिन्न परिस्थितियों को देखा बटवारा हुआ भारत और चाइना का युद्ध हुआ प्रति व्यक्ति आय का संकट भी आया विभिन्न प्रकार की महामारी आई पर पेंशन में कोई आंच नहीं आई।

    यदि आज आर्थिक वृद्धि दर की बात की जाए तो शायद नकारात्मक आंकड़े ही सामने आएंगे । जबकि कर्मचारियों की पेंशन बंद हुए 17 वर्ष हो गए तो क्या आज वास्तविक समस्या पेंशन के रूप में आर्थिक बोझ का दिखाया जाना निश्चित रूप से हास्यास्पद है देश की तरक्की के लिए पेंशन पर नहीं नेताओं के भ्रष्टाचार और विलासिता पर रोक लगाना जरूरी है दलाली और सार्वजनिक संसाधनों की लूट पर रोक लगाना जरूरी है। जनता के टैक्स के पैसे से चलाई जा रही सैकड़ों की योजनाओं का ईमानदारी से लागू करना जरूरी है।

पुरानी पेंशन के बंद होने के 17 वर्षों बाद आज राजनीतिक पार्टियों के घोषणापत्र में कर्मचारियों और शिक्षकों तथा अधिकारियों की मूलभूत आवश्यकता पुरानी पेंशन बहाली की बात कही गई है।सरकारी कर्मचारियों को एकजुट होकर संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु अपने जीवन को गरिमा पूर्ण चलाने के लिए वोट करना चाहिए यदि अभी नहीं जागे तो अब शायद आने वाले समय में यह मौका दोबारा ना मिले किसी चीज को खत्म करना जितना आसान है उसे 17 वर्ष बाद पुनः पुरानी व्यवस्था के साथ लागू करना निश्चित रूप से असंभव तो नहीं पर मुश्किल कार्य अवश्य है और इन मुश्किलों को हम सब एकजुट होकर कर्मचारी शिक्षक और अधिकारियों के हित में अपनी ताकत का एहसास सरकारों को कराते हुए पुरानी पेंशन बहाल कराएं यही आज समय की मांग है।सभी को अपने कीमती वोट की और अर्थ के इस युग में आर्थिक परिवर्तन करने वाले नियमों को बदलने की ताकत को वोट की चोट से दिखाना चाहिए।सत्तारूढ़ दल द्वारा विधानसभा चुनाव के लिए जारी संकल्प पत्र में कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन यह किसी समस्या के समाधान का दूर-दूर तक कोई उल्लेख नहीं है केंद्रीय गृह मंत्री और मुख्यमंत्री ने अपने लंबे संबोधन में कर्मचारियों का एक बार भी नाम नहीं लिया। क्या वास्तव में कर्मचारी इतना निधि हो गया है कि उसकी सुध लेने और उसके वोट की चिंता सरकार  को नहीं।

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