मौरंग खनन में मौजूद असलहा धारियों की आखिर क्यों नहीं हो रही जांच ! असहला धारियों की जांच ना होने पर पुलिस भी संदेह के घेरे में

मौरंग खनन में मौजूद असलहा धारियों की आखिर क्यों नहीं हो रही जांच  ! असहला धारियों की जांच ना होने पर पुलिस भी संदेह के घेरे में

मौरंग खनन में मौजूद असलहा धारियों की आखिर क्यों नहीं हो रही जांच  ! असला धारियों की जांच ना होने पर पुलिस भी संदेह के घेरे में 

 फतेहपुर।

(पी पी एन न्यूज)

( कमलेन्द्र सिंह)

जनपद में मौरंग खनन का काम करने वाले खनन माफियाओं पर आखिर इतनी मेहरबानी क्यों? चाहे यमुना नदी की धारा से मौरंग निकालने का मामला हो या निर्धारित क्षेत्र से अधिक क्षेत्र में खनन की बात हो इतना ही नहीं वाहनों में ओवरलोडिंग और ओवरडैंपिंग जैसे अवैध काम हो। ऐसे कामों में कार्रवाई के बजाय इन माफियाओं को मिलने वाला संरक्षण कहीं ना कहीं कुछ बताने की कोशिश कर रहा है। अवैध खनन पर निगाह रखने वाला खनन विभाग और इलाकाई पुलिस व सत्ताधारी सफेदपोश नेताओं का  एक ही सुर में अलाप लगाना खनन माफियाओं के हौसलों को और अधिक बुलंद करता हैं । जिससे प्रदेश सरकार को खनन में करोड़ों रुपए का नुकसान सहना पड़ता है।

         जनपद में यमुना घाटों से मौरंग टेंडर के माध्यम से निकालने की अनुमति सरकार द्वारा दी जाती है ।इस वर्ष आधा दर्जन सिंडिकेटो को इस काम के लिए अनुमति मिली है ।अनुमति मिलने के बाद फिर शुरू होती है अवैध मौरंग निकालने की रणनीति बनाने की योजना ।इस योजना में संबंधित विभाग से लेकर इलाकाई सत्ताधारी नेता और  क्षेत्रीय पुलिस को पटाने की प्रक्रिया ।जब यह तीनों एक ही सुर में राग अलापने लगे तो फिर शुरू होता है अवैध खनन का खेल। इस खेल में खनन नियमावली से लेकर एनजीटी की सभी गाइडलाइन्स की धज्जियां उड़ाई जाती है। अवैध खनन को रोकने  के जिम्मेदार सरकारी तंत्र भी मुंह फेर कर अवैध खनन करवाने  की मौन सहमति देता रहता है।

             अवैध मौरंग खनन जिन घाटों में शुरू है उस इलाके को असलहा धारियों की मदद से छावनी का रूप दे दिया गया है किसी की क्या मजाल कोई वहां पहुंच सके मतलब परिंदा भी पर नहीं मार सकता । यदि कोई पत्रकार या फिर इलाकाई व्यक्ति वहां जाने की कोशिश करता है तो उसे इन असलहा धारियों का शिकार होना पड़ता है ।कई बार तो ऐसे असलहा धारियों द्वारा मारपीट की भी घटनाएं हुई हैं लेकिन जब इलाकाई पुलिस इन खनन माफियाओं के इशारों पर काम कर रही हो तो फिर मारपीट के शिकार लोगों की कौन सुनेगा उन्हें ही मुल्जिम ठहरा दिया जाता है।यहां तक देखा गया कि जायज और नाजायज असलहों की देखरेख में अवैध खनन किया जाता है ना तो इन् असलहों की जांच पड़ताल होती है ना ही असलहा धारियों के चरित्र की पुलिसिया जांच  की जाती है ।

असलहा धारियों की चहल कदमी का कहीं ना कहीं गांव में रहने वाले लोगों के बीच भय व दहशत का माहौल भी पैदा करता हैं। यह माहौल जानबूझकर खनन माफियाओं द्वारा पैदा कराने की कोशिश की जाती है जिससे हो रहे अवैध खनन की जानकारी और फोटोग्राफ सहित वीडियो फुटेज ना लिया जा सके। कुल मिलाकर देखा जाए तो खनन माफिया अपने रणनीति में अब तक कामयाब है। ऐसा लगता है कि आगे भी कामयाब रहेंगे। सवाल तो बार-बार पूछे जा रहे हैं कि अवैध खनन को रोकने वाले सरकारी लोग कहां है।

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