मजदूरो का पालायन को देख, बँटवारे का दर्द और पालायन का मंजर झलक आया

मजदूरो का पालायन को देख, बँटवारे का दर्द और पालायन का मंजर झलक आया

Prakash Prabhaw News

नोयडा।

विक्रम पांडेय की रिपोर्ट


मजदूरो का पालायन को देख, बँटवारे का दर्द और पालायन का मंजर झलक आया, मजदूरो के साथ दर्द सांझा करने पहुंचे उद्योगपति मजदूरो की आर्थिक मदद की


जिन्होने 1947 के बँटवारे का दर्द और पालायन का मंजर को जिया है उनके लिए देश में चल रहे मजदूरो का पालायन, पुराने जख्मो उधेड़ने के समान जैसा ही है। पाकिस्तान से बँटवारे के अपने आप को उद्योगपति के रूप स्थापित कर चुके सतपाल सचदेवा इसलिए वे अपने को रोक नहीं पाये और मजदूर के दर्द को सांझा करने चले आए। वे कहते है कि इन बच्चो को देखा जो 1947 मेरी तरह बेघर हो कर परेशान है। समान नहीं है साधन नहीं है मैंने पैसे इसलिए दिये कि अगर कोई जरूरत हो तो ले सके। 

जिला प्रशासन ने पैदल अपने गाँव जा रहे प्रवासी श्रमिकों को रोक कर सैक्टर 19 के शेल्टर होम रखने उनको उनके गाँव भेजने कि व्यवस्था की है। आज मजदूरों के मजदूर के दर्द को सांझा करने उद्योगपति सतपाल सचदेवा पहुंचे। वहाँ मौजूद प्रवासी मजदूरो को पाँच-पाँच सौ रुपए देकर मदद कि अगर कोई जरूरत हो तो ले सके।  उनका कहना था कि ये लोग उसी प्रकार परेशान है जैसा मै 1947 बेघर हो कर परेशान था। सतपाल कहते है 1947 का मंजर आज के मंजर इस प्रकार भिन्न था, कि उस समय चारों तरफ लाशें पड़ी थी मारकाट मची थी जो मिले उसे मार दो, लेकिन यह भूख का मंजर है, उस मंजर में भी भूख थी लेकिन वह भूख अलग थी। एक और फर्क है इन बच्चो को पता है उन्हे कहाँ जाना है जब हम पाकिस्तान से आए थे तब हमे ये पता नहीं था कहाँ जाना है। उस समय समय भूख और डर  था, पता नहीं कब गोली मार दिया जाएगा, पता नहीं कब कोई मुसलमान काट दे, पता नहीं कोई हिंदू मार दे आज ऐसा नहीं है आज पुलिस कि सुरक्षा में है। लेकिन इनको यह पता है कि इनको अपने गांव जाना है इनको अपना पता मालूम है हमें सबकुछ छोड़ कर निकले थे एड्रेस नहीं पता था कहाँ जाना है। 

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