प्रतापगढ में " अवध किसान आंदोलन" का शताब्दी वर्ष धूम धाम से मनाया गया
- Posted By: MOHD HASNAIN HASHMI
- राज्य
- Updated: 17 October, 2020 15:24
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प्रतापगढ
17.10.2020
रिपोर्ट--मो.हसनैन हाशमी
प्रतापगढ में "अवध किसान आंदोलन" का शताब्दी वर्ष धूम धाम से मनाया गया।
आज अंग्रेजी हुकूमत से संघर्ष करने वाले किसानों की शहादत का प्रतीक अवध किसान आंदोलन का शताब्दी वर्ष धूमधाम से शहीद स्थल प्रतापगढ जनपद के पट्टी तहसील क्षेत्र के रूर में मनाया गया। जिसमें किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के साथ साथ अखिल भारतीय किसान सभा जिला इकाई प्रतापगढ़ के पदाधिकारी और स्थानीय लोगो ने प्रतिभाग किया।आज से सौ साल पहले अंग्रेजी हुकूमत के जुल्म और ज्यादती के खिलाफ किसान एकजुट होकर खड़े हो गए। प्रतापगढ़ जनपद के पट्टी तहसील के रूर गांव से इसकी शुरुआत हुई बाबा रामचंद्र की अगुवाई में जो एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण थे गिरमिटिया मजदूर के रूप में वह फिजी गए और वँहा से लौटे तो भारत के ग्रामीण किसानों की दुर्दशा सुनकर इससे निजात दिलाने का संकल्प लेकर वह रामचरित मानस का पाठ करते और राम राम सीताराम कहते हुए रूर गांव पहुंचे और किसानों को एकजुट कर आंदोलन शुरू किया आसपास के गांवो का साथ मिला तो आंदोलन में वरिष्ठ अधिवक्ता माताबदल पांडेय ने साथ दिया तब पंडित जवाहर लाल नेहरू रूर गांव पहुचे और किसानों के आंदोलन को सराहा। 29 अगस्त 1920 को लखरावा बाग से बाबा रामचंद्र को पुलिस ने लकड़ी चोरी का आरोप लगाकर जेल भेज दिया जिससे किसान भड़क गए और 10 सितम्बर 1920 को 1 लाख किसानों ने जेल घेर लिया और सरकार दबाव में आकर बाबा को जेल से रिहा कर दिया किसानों ने इसके बाद 17 अक्टूबर 1920 को रूर गांव में अवध किसान सभा का गठन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता देवेंद्र मिश्रा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किसान सभा मऊ ने किया। मुख्य रूप से राम प्रताप त्रिपाठी राम तीर्थ पाठक शारदा प्रसाद वीपी त्रिपाठी सुरेश यादव राम बरन सिंह बेचन अली मो0 सलीम राजमणि वंश बहादुर सिंह के अलावा शहीदों के परिजन दिनेश सिंह अजीत सिंह सुरेश वर्मा, जयराम वर्मा आदि का सम्मान किया गया। कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने बाबा रामचंद्र और झिंगुरी सिंह की प्रतिमा के समक्ष फूल अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम में सैकड़ों लोग मौजूद रहे। जिसमे सोशल डिस्टेंसिंग और कोविड 19 से बचने के निर्देश दिया गया। कार्यक्रम का संचालन हेमंत नंदन ओझा ने किया।
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