जेसीआई ने उठाया सवाल, ये पत्रकार नहीं तो फिर कौन?
- Posted By: MOHD HASNAIN HASHMI
- राज्य
- Updated: 8 June, 2021 19:06
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प्रतापगढ
08.06.2021
रिपोर्ट--मो.हसनैन हाशमी
जेसीआई ने उठाया सवाल,ये पत्रकार नहीं तो फिर कौन ?
सोशल मीडिया पर अपने यू-ट्यूब चैनल पर सरकार की आलोचना के चलते वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज होने से देश में एक नई बहस छिड़ गयी है, क्या अपनी बात कहने का अधिकार एक पत्रकार को नहीं है, जबकि हमारे संविधान मे धारा 19 के अंतर्गत अभिव्यक्त की आजादी का अधिकार भारत के हर नागरिक को प्राप्त है। हालांकि माननीय उच्चतम न्यायालय से उन्हे राहत मिल गयी है लेकिन अब बड़ा सवाल यह है कि सरकार की नजर में आखिर कौन है पत्रकार ? सरकार ने सोशल मीडिया पर चल रहे न्यूज पोर्टलों पर लगाम लगाना शुरू कर दी, मगर इनके रजिस्ट्रेशन की कार्यवाही पर विराम लगा रखा है हालांकि केन्द्र सरकार द्वारा प्रेस और पत्रिका पंजीकरण विधेयक 2019 का मसौदा तैयार किया गया था जिसके अंतर्गत डिजिटल मीडिया पर समाचारों के प्रकाशक अपना विवरण देकर भारत के समाचार पत्रो के पंजीयक आरएनआई के यहां पंजीकरण कराने का प्रावधान लाया जा रहा था लेकिन इस कार्यवाही को भी ठंडे बस्ते मे डाल दिया गया लगभग हर प्रदेश मे न्यूज पोर्टलों को सरकारी विज्ञापन जारी करने की नियमावली भी बन गयी लेकिन इन न्यूज पोर्टलों को कहां से पंजीकृत कराया जाये इसकी कोई जानकारी अभी तक प्रकाश में नहीं आई है राज्य सरकारे विज्ञापन के लिए ही पोर्टलों का रजिस्ट्रेशन कर रही है जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अनुराग सक्सेना ने कहा कि सरकार कहती है कि डिजिटल मीडिया से जुडे पत्रकार श्रमजीवी पत्रकार भी माने जायेगे लेकिन अधिकारी उन्हे फर्जी पत्रकार मानते है आये दिन ऐसे समाचार देखे जाते है कि वरिष्ठ अधिकारी कहते हुए सुनाई देते है कि जल्द ही न्यूज पोर्टलों के फर्जी पत्रकारों पर अभियान चलाकर कार्यवाही की जायेगी।ऐसे मे डिजिटल मीडिया से जुड़े लाखों पत्रकार एक बार फिर सोंचने को मजबूर हो जाते है कि वह फर्जी क्यों कहला रहे है सरकार जब डिजिटल मीडिया को सरकारी विज्ञापन जारी कर सकती है तो उनके रजिस्ट्रेशन की प्रकिया को शुरू करने मे देरी क्यों संगठन के अध्यक्ष ने कहा कि जिन पत्रकारों को मुख्यधारा मीडिया में जगह मिलनी बंद हो गई तो ऐसे कलमकारों ने सोशल मीडिया मंचों, यू-ट्यूब चैनलों आदि के माध्यम को अपने बेबाक विचार प्रकट करने का माध्यम बनाया लेकिन यह मंच भी सरकार को खटकने लगे तो उन पर लगाम कसने के लिए नया कानून बना दिया सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि सरकार पर सवाल उठाना राजद्रोह नहीं होता। हर पत्रकार को इस मामले में संरक्षण प्राप्त है अब देखना यह है इसे सरकारें कहां तक समझ पाती हैं सर्वोच्च न्यायालय का ताजा फैसला पत्रकार विनोद दुआ को लेकर आया है सर्वोच्च न्यायालय ने इससे पहले बिहार के एक मामले में 1962 में व्यवस्था दी थी कि सरकार के फैसलों या उसकी तरफ से अपनाए गए उपायों से असहमति रखना राजद्रोह नहीं होता है इसके लिए पत्रकारों को संरक्षण प्राप्त होना चाहिए अब सबाल यह है कि सरकार की मंशा समझ ही नही आ रही एकतरफ सरकार बंदिशे लगा रही है दूसरी तरफ डिजिटल मीडिया से जुड़े पत्रकारों को श्रमजीवी पत्रकार भी मान रही है डिजिटल मीडिया को सरकारी विज्ञापन भी मिलेंगे डिजिटल मीडिया सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत भी आयेगी लेकिन इससे जुड़े पत्रकारों को अधिकारी पत्रकार नहीं मानेंगे। शायद इसीलिए सरकार केवल उन्ही को पत्रकार मानती है जो सरकारी आंकडो मे पत्रकार है तो ग्रामीण क्षेत्रो से जुडे डिजिटल मीडिया से जुड़े या मानदेय पर कार्यरत पत्रकार क्या वास्तव में पत्रकार नहीं है?
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