।।होली उदास है।।

।।होली उदास है।।

प्रकाश प्रभाव न्यूज़ प्रयागराज

संग्रहकर्ता एवं लेखक सुरेश चंद्र मिश्रा "पत्रकार"

।।होली उदास है।।

कैसे मनाऊं इस बरस होली उदास है।। 

लगता है  कोई पाजिटिव बस आस पास है।।

 बैठा हुआ है दुश्मन छिप कर गुलाल पर। 

कैसे उसे लगाऊं मैडम के गाल पर।। 

ना रंग ना उमंग ना है भंग की गोली।। 

सब हैं उदास मित्र करूं किससे ठिठोली।।

रोना है  कोरोना का हर तरफ विनाश है।। 

कैसे मनाऊं इस बरस होली उदास है।। १।।

पिचकारियां सूखी रहेंगी ऐसा हाल है।।

अब तक न भूल पाया वो पिछला साल है।। 

वो भुखमरी मजदूरों की पैदल वो रवानी।। 

चिपके हुए थे पेट न भोजन था न पानी।। 

वैसा ही फिर हुआ तो समझो सर्व नाश है।। 

कैसे मनाऊं इस बरस होली उदास है।। २।।

बाजार है सूना उमंग का नहीं दर्शन।।

क्या होगा  सोच सोच करके है कांप रहा  मन।। 

इस साल न गुझिए में आ रही मिठास है।।

कैसे मनाऊं इस बरस होली उदास है।। ३।।

है आग लगी सारा महाराष्ट्र जल रहा।। 

कोरोना रक्त बीज जैसा फूल फल रहा।। 

सैंतिस हजार आज की तारीख में आए।। 

दो सौ इसी के कारण परलोक सिधाए।।

है पता नहीं इसको अभी कितनी प्यास है।। 

कैसे मनाऊं इस बरस होली उदास है।। ४।।

है चंग शांत ढोलक ने मौन ब्रत लिया।।

आता न कोई द्वार पर लगता नहीं जिया।। 

रंगों की फुहारों का दर्शन मुहाल है।।

कोई न पूंछता है रो रहा गुलाल है।। 

सुरेश ,, सघन सन्नाटा सा आस पास है।। 

केसे मनाऊं इस बरस होली  उदास है।।५।।

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