फतेहपुर जिले में अधिकारी व नेता विकास की बजाय जुटे मेवा खाने में

फतेहपुर जिले में अधिकारी व नेता विकास की बजाय जुटे मेवा खाने में

पी पी न्यूज*

फतेहपुर जिले में अधिकारी व नेता विकास की बजाय जुटे मेवा खाने में

कमलेन्द्र सिंह

फतेहपुर।

फतेहपुर जिले में जनप्रतिनिधि सेवा व विकास को किनारे रख मेवा खाने में लगे हैं। जिस तरह से चारों तरफ अपराधिक घटनाएं घट रही हैं और उनको रोकने में खाकी नाकाम रही है उसी तरह विकास कागजों में भले ही चल रहा हो लेकिन जिले में दूर-दूर तक इसका नामो निशां नहीं है।अपनी मूलभूत जरूरतों से जूझ रहे लोगों के सामने आज भी बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा व चिकित्सा की ऐसी समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं जिनके सवाल तो उनके पास लाख है? पर नेताओं के पास जवाब नहीं हैं! इसी का नतीजा है कि सत्ताधारी नेताओं ने जिले के विकास को लेकर आम जनता से मुंह मोड़ रखा है।

अकेले अगर शहर की ही बात की जाए तो तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा हटवाए गए अतिक्रमण के बाद जल निकासी एवं सड़कों की दुरुस्ती के साथ-साथ बच्चों, बुजुर्गों तथा लोगो के लिए क्या एक बेहतरीन पार्क को विकसित नहीं किया जाना चाहिए था? लेकिन जनप्रतिनिधि जनता को विकास का कोरा एजेंडा दिखा डीपीआर ही बनवाते रह गए। विकास की हकीकत सबके सामने ज्यों की त्यों है। भयमुक्त समाज का लोगों को सपना दिखा सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में अपराधों में कहीं भी जिले में कमी नहीं है। कारण कोई भी हो लेकिन कानून व्यवस्था को लेकर पुलिस प्रशासन अब तक कारगर ही नहीं हुआ। इसी का नतीजा रहा कि आए दिन चोरी, लूट व हत्या जैसी घटनाएं होती तो रहती हैं लेकिन इनके खुलासे न के बराबर हो पाते हैं। कई खुलासे तो ऐसे रहते हैं कि एक अपराध में पकड़े गये अपराधी के ऊपर ही कई कई चोरियों को थोप कर पुलिस पीठ तो थपथपा लेती है लेकिन हकीकत में अपराध करने वाले पुलिस पकड़ से दूर रहते हैं और उनके अपराध करने का सिलसिला जारी रहता है।

इसी का नतीजा है कि जिले में अपराधिक घटनाओं पर रोक लगाने में पुलिस नाकाम नजर आ रही है। पूर्ववर्ती सरकारों में भ्रष्टाचार, लूट-घसोट एवं दबंगई होने की बात करने वाले जनप्रतिनिधि मौन धारण किए हैं। मौरंग खनन से लेकर ओवरलोडिंग, मिट्टी के खनन,जमीनों के कब्जों पर नेताओं की चुप्पी ने सवाल खड़े किए हैं? नेताओं के मौन का जवाब भी उन्हीं के पास है!लेकिन हकीकत लोगों की निगाहों से दूर नहीं है।

आज हालात ये हैं कि सत्ताधारी कई जनप्रतिनिधियों एवं उनके गुर्गों के नाम जमीनों के कब्जों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सामनेआते रहे हैं। मुश्किल कामों के ठेके भी इनके द्वारा लिए जा रहे हैं। कई मामले ऐसे रहे जिनमें न चाहते हुए भी जिला प्रशासन व पुलिस को बैकफुट पर रहना पड़ा। जनप्रतिनिधि तो यहां अपनी पार्टी को लेकर भी  संवेदनशील नहीं हैं। गुटों में बटे नेताओं को एक दूसरे की काट करने से फुरसत मिले तो ही वह जिले के विकास की सोचें। अपने-अपने में मस्त जनप्रतिनिधियों ने लोगों को गिनाने के लिए अपने कामों तथा  विकास की लंबी फेहरिस्त तैयार कर रखी है और उसका बखान करने से  थकते नजर नहीं आ रहे। जिस विकास व सुशासन का दंभ भर कर जनप्रतिनिधि सत्ता की मलाई खा रहे हैं फिलहाल उसे देखने के लिए लोगों की आंखें पथरा रही हैं।

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