फेंटे" जा रहे "दरोगा"पर दुरस्त नहीं हो पा रही कानून व्यवस्था*

ताश के पत्तों"की तरह "फेंटे" जा रहे "दरोगा"पर दुरस्त नहीं हो पा रही कानून व्यवस्था
आए दिन हत्या,लूट,चोरी,दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराधों ने लोगों की नींद उड़ाई
बिना सुविधा शुल्क के पीड़ितों की नहीं हो रही सुनवाई
काम करने वाले, तेजतर्रार कई पुलिसकर्मी हाशिए में, जी हुजूरी करने वाले कई नकारों की है बल्ले-बल्ले
पी पी एन न्यूज
(कमलेन्द्र सिंह)
फतेहपुर।
जिले में ताश के पत्तों की तरह दरोगा हर हफ्ते फेंटे जा रहे हैं। लाइन से चौकी,चौकी से थाने व थानों से लाइन में भेजा जा रहा है लेकिन जिले में कानून व्यवस्था के हालात ठीक नहीं है।
लूट,हत्या,चोरी, महिलाओं से छेड़खानी व दुष्कर्म जैसी जघन्य वारदातें रुकने का नाम नहीं ले रही हैं।* एक के बाद एक दरोगाओं की की जा रही पोस्टिंग भी कोई गुल नहीं खिला पा रही है।
कई थाने और चौकी तो ऐसे हैं जहां ऐसे लोगों को तैनाती दे दी गई है जिनसे ना आम जनता से मतलब हैऔर ना ही कानून व्यवस्था से, वे या तो अपने उच्चाधिकारी के खासम खास हैं या फिर सत्ताधारी नेताओं से मजबूत पकड़ है।
जिले में थाना,चौकी में पोस्टिंग के लिए सत्ताधारी नेताओं की बराबर दखलंदाजी है।इसी के चलते नेता ऐसे नकारे वर्दीधारियों को तैनाती दिला देते हैं जिनका जनता के प्रति संवाद ही ठीक नहीं है। हां!नेताओं जी हुजूरी उनकी प्राथमिकता में शामिल है।भले ही योगीराज में सुदृढ़ कानून व्यवस्था की बात की जा रही हो लेकिन जिले में जिस तरह से हालात हैं उससे अपराधियों एवं अपराधों में रोक नहीं लग पा रही है।
आए दिन घटने वाली घटनाएं और जिले में बढे अपराध एवं अपराधियों ने पुलिसिंग की पोल खोल रखी है। थाना,चौकियों में एक के बाद एक की जा रही ट्रांसफर पोस्टिंग से भी कोई हल अब तक नहीं निकल सका है।
थानों में भ्रष्टाचार है। लोगों के काम बिना पैसे के नहीं हो रहे हैं। इतना ही नहीं शिकायत लेकर जाने वाले फरियादियों को मौके पर जाने के लिए बीट के दरोगा व सिपाही को पेट्रोल तक का खर्च देना पड़ता है।
खर्चा मिलने के बाद ही मौके पर जाने के लिए दरोगा सिपाहियों का मूवमेंट होता है। झगड़ों को निपटाने एवं की कमाई का थानों में निरोधात्मक कार्रवाई बड़ा हथियार बनी हुई है।थानों में मारने व मार खाने वाले दोनों को निरुद्ध कर मामला निपटाया जाता है और कार्रवाई व मुकदमे की बात कह कर पैसों के लेनदेन का बड़ा खेल खेला जा रहा है।
जब यह हालात हों तो बेहतर कानून व्यवस्था की कल्पना नहीं की जा सकती। सत्ताधारी नेताओं के दबाव के चलते तेजतर्रार कई ऐसे वर्दीधारी हैं जो हाशिए में पड़े हुए हैं। कईयों को दूरदराज के चौकियों में डाल दिया गया है जबकि उनसे आला अधिकारी और बेहतर काम ले सकते हैं।
शायद ही कोई महीना ऐसा होता हो जब दरोगाओं की ट्रांसफर पोस्टिंग की लिस्ट दो तीन बार ना निकलती हो। आखिर ऐसी कौन सी वजह है? जो खाकी को इतना फेटने के बावजूद कानून व्यवस्था दुरुस्त नहीं हो पा रही है। या तो मुखिया के निर्देशानुसार जिम्मेदार अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन न कर मनमानी पर उतर जाते हैं या फिर सत्ताधारियों के दबाव के चलते ट्रांसफर पोस्टिंग करनी पड़ रही है।
थाना चौकियों में जो हालात है, ऐसे हालातों,व्यवस्थाओं एवं भ्रष्टाचार की उम्मीद तो भाजपा शासनकाल में लोगों ने नहीं लगा रखी थी।
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