आंखों में बसे रामलला : 560 किलो चावल से रामलला की बनाई 10 फीट ऊंची मूर्ति

PPN NEWS
लखनऊ
Report Monu Safi
अयोध्या में राम मंदिर के भव्य निर्माण के बाद से रामलला के दर्शन के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु उमड़ रहे हैं। जैसे ही भक्त रामलला की दिव्य मूर्ति के दर्शन करते हैं, उनकी आंखें ठहर जाती हैं, और हृदय भक्ति-भाव से भर जाता है। मशहूर मूर्तिकार अरुण योगीराज की बनाई गई कृष्ण शिला से निर्मित रामलला की मूर्ति हर किसी के मन को मोह रही है। लेकिन इस भक्ति की लौ सिर्फ अयोध्या तक ही सीमित नहीं रही—राजधानी लखनऊ के मूर्तिकार शैलेंद्र पटेल ने इस भक्ति को एक अलग ही रूप में साकार कर दिया है। उन्होंने 560 किलो चावल से 10 फीट ऊंची रामलला की प्रतिमा बना डाली है।
लखनऊ के रहने वाले मूर्तिकार शैलेंद्र पटेल कुछ महीने पहले अपने परिवार के साथ अयोध्या गए थे। वहां उन्होंने जैसे ही रामलला की मूर्ति देखी, वो दृश्य उनकी आंखों और दिल में बस गया। तभी से उन्होंने ठान लिया कि वे अपने हाथों से रामलला की मूर्ति बनाएंगे। आस्था और समर्पण के साथ उन्होंने इस संकल्प को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत की। तीन महीने की कड़ी मेहनत और अनगिनत प्रयासों के बाद उन्होंने 560 किलो चावल से बनी 10 फीट ऊंची रामलला की प्रतिमा तैयार कर दी।
"सपनों को साकार करने का पहला कदम है खुद पर विश्वास करना।" यही सोचकर शैलेंद्र पटेल अपने भाई शिव शंकर के साथ इस कार्य में जुट गए। दिन-रात 8 से 10 घंटे लगातार काम करने के बाद इस भव्य मूर्ति का निर्माण संभव हो पाया। चावल के साथ-साथ इस मूर्ति को मजबूती देने के लिए सीमेंट और विशेष केमिकल का भी इस्तेमाल किया गया, जिससे यह पत्थर जैसी मजबूत बन गई। इस अद्भुत कलाकृति को तैयार करने में लगभग 2 लाख रुपये का खर्च भी आया।
शैलेंद्र पटेल इससे पहले भी कई अनोखी मूर्तियां बना चुके हैं, और उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हो चुका है। अब उनकी इच्छा है कि रामलला की यह विशेष मूर्ति प्रयागराज में महाकुंभ में जलाभिषेक के बाद अयोध्या में स्थापित की जाए। साथ ही, वे इस प्रतिमा को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी दिखाना चाहते हैं।
सफलता का एकमात्र उपाय है कड़ी मेहनत और अटूट विश्वास।"मूर्तिकार शैलेंद्र पटेल ने अपनी निष्ठा और श्रद्धा से चावल के 560 किलो दानों से 10 फीट की अद्भुत रामलला प्रतिमा गढ़ दी। अब उनका सपना है कि यह मूर्ति अयोध्या में स्थापित हो। देखना होगा कि क्या प्रशासन उनकी इस अनूठी कृति को वह स्थान देता है, जिसकी यह हकदार है।
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