अगर सदर ए रियासत की नीयत ही बिगड़ जाये,
अगर सदर ए रियासत की नीयत ही बिगड़ जाये,
*तो समझो हाल क्या होगा, मरकज़ के गुलिस्तां का?*
*ये मुर्दों का शहर ग़ालिब नहीं उम्मीद है बाकी,*
*मुजावर कर रहे सौदा मजारों और कब्रिस्तां का*
*पी पी एन न्यूज*
*(कमलेन्द्र सिंह)*
फतेहपुर।
शिक्षण संस्थानों की बेशकीमती जमीनों को राजस्व अभिलेखों में हेर-फेर करके बेंचने खरीदने का गोरखधंधा बदस्तूर जारी है।किसी भी संस्था की जमीन की बिक्री और खरीद आसान नहीं होती।ऐसी जमीनों को संस्था के अधिकार से बाहर दिखाने के लिये संस्था की प्रशासन योजना, आम सभा, प्रबंधकारिणी से लेकर राजस्व अभिलेखों में बडा़ खेल करना होता है।जाहिर है जन साधारण के लिए ऐसी बदनीयती और यह खेल आसान भी नहीं है। प्रशासन से लेकर शासन और सरकार तक प्रभाव रखने वाले बडे़ नाम वाले ही ऐसे बड़े काम करने में रुचि रखते हैं।जिले के कई नामी गिरामी शिक्षण संस्थानों की बेशकीमती जमीनें पूर्व में भी सफेदपोश भू माफियाओं द्वारा हड़पी जा चुकी हैं। बड़े राजनीतिक रसूख वाले इन सफेदपोश भूमाफियाओं से शिक्षा के मंदिरों की जमीनों को बचाने में वही प्रशासनिक अधिकारी ही आगे आते देखें जाते हैं जिनमें न मलाईदार पोस्टिंग की हसरत होती है न भ्रष्ट जन प्रतिनिधियों की खुशी-नाखुशी की परवाह।यह भी सही है कि ऐसे अधिकारियों के साहसिक और कठोर फैसलों की चर्चा लम्बे समय तक प्रशंसित भाव से लोगों के बीच होती रहती है।अब जबकि एक संत के त्याग और पुरुषार्थ से स्थापित किये गये जनपद अग्रणी रहे शिक्षण संस्थान सदानंद महाविद्यालय की बेशकीमती जमीन को निगलने का भू माफिया द्वारा पूरा खाका तैयार हो चुका है प्रशासन से निष्पक्ष और कठोर कार्रवाई की उम्मीद के साथ स्थानीय जागरूक नागरिकों को भी कानून के दायरे में रहते हुए संस्था को बचाने के लिये शांतिपूर्ण विरोध करना चाहिए।आखिर ऐसी सार्वजनिक संस्थाओं की रक्षा का दायित्व समाज के हर व्यक्ति का होता है।जब बागवान से ही चमन को खतरा हो जाये, जब मुजावर ही मजार बेंचने की नीचता में उतर आते तो उस चमन या मजार से तआल्लुक या अकीदा रखने वालों की जिम्मेवारी हो जाती है कि वो संगठित होकर ऐसे माली या मुजावर को ही रुख्सत कर दें।
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