शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार की गजब कहानी...
- Posted By: Admin
- उत्तर प्रदेश
- Updated: 9 August, 2021 09:20
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प्रकाश प्रभाव
फतेहपुर।
शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार की गजब कहानी...
अंधेरगर्दी की हद हुईं पार, बगैर स्वीकृति के महीनों गायब रहते हैं शिक्षक
शासन स्तर तक पहुंचा प्रा0 पा0 अस्ता की सहा0 अध्यापिका अंजली त्रिवेदी का मामला
कार्यवाही की जद में आ सकतें हैं कई अधिकारी व कर्मचारी
(कमलेन्द्र सिंह)
शिक्षा विभाग हैरतंगेज कारनामों के लिए वैसे तो प्रायः चर्चा में रहता है, किन्तु ऐसे कई प्रकरण व्यवस्था को मुंह चिढ़ा रहे हैं, जिनमें जिम्मेदारों ने नियमों को ताक पर रखकर सीधे तौर पर लाभ पहुंचाने में न सिर्फ महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, बल्कि निकट भविष्य में मामला गले की हड्डी न बन जाएं इसलिए सम्बन्धित पत्रावली को भी कार्यालय से गायब कर दिया। दर्जनों ऐसे मामलो में एक मामला तेलियानी ब्लाॅक के प्रा0पा0 अस्ता की सहायक अध्यापक अंजली त्रिवेदी का प्रकाश में आया है, जिसकी अजब कहानी हैरत में डालने वाली है। इस सन्दर्भ में मुख्यमंत्री स्तर पर हुई एक शिकायत ने बीएसए कार्यालय की पोल खोल कर रख दी है।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार सहा0 अध्यापक अंजली त्रिवेदी ने 11 जून 2019 को खण्ड शिक्षा अधिकारी तेलियानी को एक प्रार्थना पत्र के माध्यम से 06 माह (01 जुलाई 2019 से 31 दिसम्बर 2019) के अवैतनिक अवकाश की सूचना मात्र दी। शिक्षा विभाग की व्यवस्था के मुताबिक 20 मई से ग्रीष्म कालीन अवकाश शुरु हो जाता है, जो 30 जून तक रहता है। 01 जुलाई को विद्यालय पुनः खुलते हैं। ऐसे में अगर किसी अध्यापक को इस अवधि से अवैतनिक अवकाश पर जाना है तो किसी भी स्थिति में उसे पहले 01 जुलाई को सम्बन्धित विद्यालय में हाजिरी लगाने के बाद अगली किसी तिथि से ही अवकाश पर जा सकता है। इसके साथ साथ बगैर स्वीकृति के अवकाश पर नहीं जाया जा सकता हैं। बावजूद इसके अंजली त्रिवेदी नियमों को ताक पर रखकर ग्रीष्म कालीन अवकाश अवधि से ही बगैर किसी सक्षम अधिकारी की स्वीकृति के अवकाश पर चलते बनीं। अब नियमों के मुताबिक अंजली का अवैतनिक अवकाश 01 जुलाई नहीं बल्कि 20 मई से माना जाना चाहिए, जो कि 25 दिसम्बर तक का होता है। यहां पर एक और नियम आड़े आता है कि अगर किसी सरकारी कर्मचारी (अध्यापक) के चिकित्सीय अवकाश (मेडिकल लीव) अवशेष है तो अवैतनिक अवकाश नहीं लिया जा सकता।
सहायक अध्यापक अंजली त्रिवेदी ने इन सारे नियमों को ताक पर रखकर न सिर्फ अवैतनिक अवकाश लिया बल्कि प्रार्थना पत्र में 31 दिसम्बर तक के अवकाश का स्पष्ट उल्लेख करने के बावजूद पांच दिन पूर्व ही 26 दिसम्बर 2019 को सीधे विद्यालय पहुंच कर प्रधानाध्यापक से जबरन कार्यभार ग्रहण कर नियम कानून की धज्जियां उड़ा दी और अपने प्रभाव के चलते जिम्मेदारों से सांठ-गांठ कर विद्यालय के पत्र व्यवहार रजिस्टर में भी इसका उल्लेख करवा दिया। नियमों पर गौर करें तो पता चलता है कि अवैतनिक ही नहीं लम्बी अवधि वाले किसी भी अवकाश के बाद पुनः ज्वाइनिंग सिर्फ सक्षम (बीएसए) स्तर से अवकाश स्वीकृत कराने के उपरान्त सम्बन्धित एबीएसए के निर्देश पर ही प्रधानाध्यापक किसी सहायक अध्यापक को ज्वॉइन करा सकता है, किंतु अंजली के मामले में ऐसा नहीं हुआ। बगैर किसी स्वीकृति के प्रधानाध्यापक सीता देवी ने ज्वाईन करा दिया।
कहते हैं कि प्रायः रुतबे से नौकरी करने वाले प्राइमरी अध्यापकों की फेहरिस्त में शामिल अंजली त्रिवेदी 26 दिसम्बर को नियम विरूद्ध ढंग से ज्वाॅइनिंग के बाद फिर गायब हो गई और फरवरी के तीसरे सप्ताह में विद्यालय पहुंच कर एक साथ हाजिरी लगाने के बाद इस अवधि के वेतन की मांग शुरु कर दी क्योंकि अंजली ने कार्यालय को स्वीकृति पत्र उपलब्ध नहीं कराया था, इसलिए फरवरी 2020 का वेतन तो निकल आया किन्तु जनवरी 2020 का फंस गया।
अब सवाल यह उठता है कि जब बगैर सक्षम अधिकारी के स्वीकृति आदेश के संदिग्ध परिस्थितियों में हुई ज्वाॅइनिंग के बाद फरवरी 2020 से अब तक वेतन कैसे निकल रहा है और आखिर क्यों सक्षम अधिकारी खासकर कार्यालय के लेखाधिकारी ने इतनी बड़ी अंधेरगर्दी होने दी। सवाल यह भी उठता है कि इस गड़बड़झाले में अधिकारियों ने जानकारी होने के बावजूद संज्ञान और कार्यवाही क्यों नहीं की। इस संदर्भ में मुख्यमंत्री स्तर पर हुई शिकायत के बाद हड़कंप मच गया है। शिकायतकर्ता ने सम्बंधित सहायक अध्यापक को फरवरी 2020 से अब तक मिल रहे वेतन की वैधता पर भी सवाल उठाए हैं। वहीं इस प्रकरण में तेलियानी ब्लाॅक के तत्कालीन खण्ड शिक्षा अधिकारी विश्वनाथ पाठक का कहना है कि अंजली त्रिवेदी का फरवरी माह का वेतन निकालने का आदेश उन्होंने तत्कालीन बीएसए के मौखिक निर्देश पर मानवीय आधार पर दिया था। एक सवाल के जवाब में उन्होंने स्वीकार किया कि बगैर अवकाश स्वीकृति हुए ज्वाॅइनिंग कराना गलत है, इस पर प्रधानाध्यापक की भूमिका की जाँच होनी चाहिए।
कुल मिलाकर शिक्षा विभाग खासकर बीएसए कार्यालय की अंधेरगर्दी का यह कोई अकेला मामला नहीं हैं। अंजली त्रिवेदी सरीखे कई और मामले हैं, जिन पर सक्षम अधिकारी पर्दा डालने का प्रयास करते रहे हैं। अब सवाल यह भी उठता है कि क्या पकड़ में आने के बाद शिक्षा विभाग के अधिकारी इस मामले की जांच करवाकर अंजली सरीखे व्यवस्था का माखौल बनाने वाले अध्यापको के खिलाफ कार्यवाही करेंगे या फिर अपनी जवाबदेही से बचने के लिए पूरे मामले में पर्दा डाल देगें।
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