बुद्ध नगरी के नाम से मशहूर कौशाम्बी क्यो प्रसिद्ध है, आइये जाने
- Posted By: Dinesh Kumar
- उत्तर प्रदेश
- Updated: 29 September, 2022 21:13
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PPN NEWS
रिपोर्ट - दिनेश कुमार (जिला संवाददाता)
बुद्ध नगरी के नाम से मशहूर कौशाम्बी क्यो प्रसिद्ध है, आइये जाने
कौशाम्बी। बौद्ध स्थल जिला मुख्यालय मंझनपुर से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में यमुना नदी के किनारे स्थित है। प्रयागराज से बौद्ध स्थल तकरीबन 60 किलोमीटर दूर है जहां पर महात्मा बुद्ध ने तपस्या की थी एवं चातुर्मास के दौरान सत्य अहिंसा का संदेश दिया था।06-Jan-2021कौशांबी जनपद के ये दो ऐतिहासिक गांव, यहां बिखरी हैं महात्मा बुद्ध की स्मृतियां
इतिहास के मुताबिक भगवान बुद्ध जब कौशांबी आए थे उस दौरान प्रयाग के निकट गंगा-यमुना के बीच की भूमि को वत्स देश कहा जाता था। कौशांबी में वत्स महाजनपद के राजा उदयन की राजधानी थी जिनका राजप्रसाद व किले के परकोटा आज भी खंडहर के रूप में मौजूद है।
कौशांबी जनपद के ये दो ऐतिहासिक गांव, यहां बिखरी हैं महात्मा बुद्ध की स्मृतियां, कौशांबी जनपद के ये दो ऐतिहासिक गांव, यहां बिखरी हैं महात्मा बुद्ध की स्मृतियां, कौशांबी जनपद के ये दो ऐतिहासिक गांव, यहां बिखरी हैं महात्मा बुद्ध की स्मृतियां।
महात्मा बुद्ध की तपोस्थली होने के कारण कौशांबी की देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान है। महात्मा गौतम बुद्ध ने कौशांबी में चार्तुमास व्यतीत करने के साथ लोगों को सत्य, अहिंसा का संदेश दिया था। इसकी वजह से पूरी दुनिया से बौद्ध धर्म के अनुयायी यहां पर बौद्ध स्थल के दर्शन-पूजन के लिए आते हैं। बुद्ध की स्मृतियां कौशांबी के दो गांवों में बिखरी हुई हैं जिनके दर्शन-पूजन को हर बौद्ध धर्मानुयायी एक बार अपने जीवनकाल में जरूर आना चाहता है।
बौद्ध काल में गंगा-यमुना के बीच की भूमि कहलाती थी वत्स देश
इतिहास के मुताबिक भगवान बुद्ध जब कौशांबी आए थे उस दौरान प्रयाग के निकट गंगा-यमुना के बीच की भूमि को वत्स देश कहा जाता था। कौशांबी में वत्स महाजनपद के राजा उदयन की राजधानी थी जिनका राजप्रसाद व किले के परकोटा आज भी खंडहर के रूप में मौजूद है। किले के परकोटे के भीतर ही बौद्ध स्थल के भग्नावशेष विद्यमान हैं।
दो गांवों में सात किमी के दायरे में फैली हैं बुद्ध की स्मृतियां
कौशांबी के दो ग्रामसभाओं कोसम ईनाम और कोसम खिराज में भगवान बुद्ध से संबंधित स्मृतियां बिखरी हुई हैं। दोनों ग्राम सभाओं में सात किमी. के दायरे में वत्स देश के राजा उदयन का किला विस्तारित है। इसके परकोटे के भीतर सम्राट अशोक का स्तंभ, उदयन का राजप्रसाद व बौद्ध स्थल मौजूद है।
श्रीलंका और कंबोडिया सरकारों ने बनवाए हैं बौद्ध मंदिर
कौशांबी में बौद्ध स्थल के निकट ही श्रीलंका और कंबोडिया की सरकारों ने भी बौद्ध मंदिर बनवाए हैं। थाईलैंड की सरकार भी एक बौद्ध मंदिर का निर्माण करा रही है। श्रीलंका के बौद्ध मंदिर के प्रबंधक डा.टीश्री विशुद्धि थैरो ने बताया कि कैवल्य प्राप्ति के छठे व नौवें साल महात्मा बुद्ध कौशांबी जनपद आए थे। चातुर्मास किया था इसलिए बौद्ध धर्म का हर अनुयायी एक बार यहां आना चाहता है। बताया कि जापान, कोरिया, श्रीलंका, कंबोडिया, मलेशिया, नेपाल, थाईलैंड, सिंगापुर आदि से हर साल हजारों की संख्या में बौद्ध अनुयायी यहां पर दर्शन-पूजन के लिए आते हैं।
चीनी यात्री व्हेनसांग व फाहियान भी आए थे कौशांबी
हिंदुस्तानी एकेडमी से प्रकाशित प्रयाग प्रदीप नामक पुस्तक में चीन के यात्री व्हेनसांग और फाहियान के कौशांबी आने का जिक्र है। शालिग्राम श्रीवास्तव के मुताबिक व्हेनसांग ने अपने यात्रा संस्मरण में कौशांबी के बौद्ध स्थल का विस्तार से जिक्र किया है। उसने लिखा है कि नगर के एक पुराने महल में एक बड़ा सा विहार है। साठ फिट ऊंचे इस विहार में महात्मा बुद्ध की चंदन की मूर्ति स्थापित है जिसके ऊपर पत्थर का एक गुंबद भी है। पास में कूप और स्नानागार भी है जिसको महात्मा बुद्ध काम में लाया करते थे।
गेस्ट हाउस और ओपेन एयर थियेटर बनवा रही सरकार
कौशांबी के बौद्ध स्थल के महत्व को देखते हुए प्रदेश सरकार यहां पर गेस्ट हाउस और ओपेन एयर थियेटर बनवा रही है। गेस्ट हाउस निर्माण पर 89.40 लाख और ओपेन एयर थियेटर निर्माण के लिए 90.47 लाख रुपये स्वीकृत हैं। 2019 में निर्माण शुरू हुआ, 2020 में पूरा होना था लेकिन अभी अधूरा ही है। स्थानीय नागरिक अनिल कुमार के अनुसार पेयजल, यातायात के साधन और ठहरने के लिए बेहतर इंतजाम न होने के कारण देश और दूसरे देशों से आने वाले बौद्ध अनुयायी शाम होने के पहले ही यहां से वापस लौट जाते हैं।
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