भारतीय संघीय ढांचा हो रहा है तार तार, सरकारें भूली अपना संविधान
- Posted By: MOHD HASNAIN HASHMI
- राज्य
- Updated: 20 May, 2021 19:55
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प्रतापगढ
20 05.2021
रिपोर्ट--मो.हसनैन हाशमी
भारतीय संघीय ढांचा हो रहा तार तार, सरकारें भूली अपना संविधान
भारतीय लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इस संविधान की आत्मा भारतीय एकता अखंडता और समन्वय के साथ देश का सर्वांगीण विकास है ।सरकारे संघीय ढांचे की शरीर हैं ,जब किसी शरीर की आत्मा स्वयं अपने शरीर को विकृत देख तड़पने लग जाए तो यह समझा जा सकता है कि शरीर की दुर्गति से आत्मा तड़प रही है आज भारतीय संविधान स्वयं राजनीति के कुचक्र में फंस कर लाचारी का आभास कर रहा है। यह लाचारी भारत की जनता के लिए एक शर्मसार अक्षम पहिया है जो अपना भार ढोने में स्वयं को अक्षम महसूस कर रहा है। तभी भारतीय संविधान का दत्तक पुत्र चतुर्थ स्तंभ के रूप में भारतीय मीडिया देश के संविधान को बचाने में अपनी अग्रणी भूमिका निभा रहा है । केंद्र व प्रदेश की सरकारें अपने हानि लाभ के तराजू में संविधान और लोकतंत्र को तौल रही हैं, जिससे हानि लाभ के कुचक्र में भाषा संवैधानिक तंत्र आज विक्षिप्त सा महसूस कर रहा है ।सरकारें दत्तक पुत्र मीडिया की एकता को सरकारी लाभ हानि का दर्पण दिखाकर मीडिया को दिग्भ्रमित कर रही हैं जिसकी परिणति गोदी मीडिया, ठाकुर सोहाती कवरेज, आदि शब्द हैं । इस विषम परिस्थिति में लोकतंत्र का तृतीय स्तंभ न्यायपालिका अपने संवैधानिक मूल स्वरूप का प्रयोग समय-समय पर करती है। केंद्र व राज्य की सरकारें जब आपसी टकराव में हार देखने लगती हैं, तो न्यायालय की शरण में कानूनी पाँसा फेकती हैं। फलस्वरूप न्यायपालिका अपनी सर्वोच्च सोच व अधिकार के तहत सरकारों के टकराव को निष्प्रभावी बनाने का माध्यम बनती हैं । हालांकि आपसी पंचायत हल करवाने की आशा में सरकारें अपना दायित्व भूल चुकी हैं साथ ही अदालतों को भी गुमराह करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती हैं अदालतें भी देश की एकता अखंडता को अक्षुण्णता रखने हेतु इनके बीच निर्देश जैसे आदेश के माध्यम से पंचायती फैसला दे कर समन्वय स्थापित करने का सफल प्रयास करती हैं शायद यह सरकारें यह भूल गई हैं की भारत एक ऐसा लोकतांत्रिक देश है जहां पर संविधान की संरचना जनता के हितार्थ की गई है और सरकारें इसे स्वहितार्थ में अपने चातुर्य और कूटनीतिक चालों से सत्ता अपने हाथ में रखने के लिए कुछ भी कर रही हैं ,और इसी अहम के चलते सरकारों के बीच टकराव बढ़ जाता है ।भारतीय संघीय ताना-बाना दुनिया का अति उत्कृष्ट अभेद्य वह किला है जो देश की जनता का रक्षा कवच और सभी आवश्यक आवश्यकताओ की संपूर्ति का सफल स्रोत है ,क्योंकि देश में सरकारें होने के बावजूद भी संविधान की मंशा है कि इस देश में जनता का शासन, जनता पर ,जनता द्वारा किए जाने की व्यवस्था संविधान में निहित है इन्हीं कारणों से राजनेताओं का बिछाया जाल उन्हीं के लिए काल बन जाता है । जिसमें वे फंसकर विवश हो जाती हैं। क्योंकि व्यवस्थापिका कार्यपालिका दोनों का कार्य अलग है परंतु संविधान और कार्यपालिका व न्यायपालिका की मीमांसा संविधान के अनुसार करने का अधिकार सिर्फ न्यायपालिका की अधिकार क्षेत्र है ।संवैधानिक मीमांसा संविधान संविधान पीठ करती है ।जहां पर सरकारें उलझी रह जाती हैं ।इन सरकारों के मंसूबे पर पानी फिर जाता है और पुनःनए जनप्रतिनिधि चुनने का वह अवसर आ जाता है जो भारत में संविधान ने जनता के हाथ में सौंपा है ।देश में जनता के हाथ में देश विरोधी ,जनविरोधी, अकल्याणकारी नीतियों के पोषक तत्वों के खिलाफ मतदान का अधिकार है ।और समय आने पर जनता जन विरोधी, देश विरोधी तत्वों का। बहिष्कार कर अपने मन मुताबिक जनप्रतिनिधियों का चुनाव करती हैं शायद संविधान की इस मजबूत व्यवस्था को भली प्रकार जानते हुए भी सरकारें निजी हित में अपना खोटा सिक्का चलाती रहती हैं फलतः टकराव सार्वजनिक हो जाता है ,और आम जनता के बीच में प्रसारित हो जाता है हालाकि, सरकारों के इस आपसी टकराव से देश की अस्मिता भी प्रभावित होती है और दुनिया के पटल पर अस्मिता शर्मसार होती है। सरकारों के टकराव में आजकल ईडी ,सीबीसीआईडी, सीबीआई एंटी करप्शन टीम आदि संस्थाओं का महत्व अधिक बढ़ गया है, क्योंकि इन्हीं के सहारे सरकारे आपस में हमलावर होती हैं और केंद्र सरकार राज्य सरकारों पर व राज्य सरकारें मौका पाने पर केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों पर हमलावर रहती हैं । जिससे संघीय व्यवस्था को करारा झटका लगता है और संघीय ढांचे की अस्मिता तार-तार हो जाती है न्यायालय और जनता के बीच सीधा तालमेल का औचित्य नहीं है, परंतु न्यायालय अवसर पाने पर जनहित में स्वतः संज्ञान लेकर कभी-कभी मिसाल कायम करती है । जब संघीय ढांचा तार-तार होने का आभास न्यायालय को होता है तो न्यायालय स्वतः संज्ञान लेकर न्यायिक माध्यम से टकराव वाली सरकारों के बीच सामान्य पंचायती फरमान सुनाकर समन्वय स्थापित करने का सफल प्रयास करती हैं ।संविधान, लोकतंत्र और लोकहित के संरक्षण का दायित्व व्यवहारिक व कानूनी रूप से सिर्फ न्यायालय पर ही रह गया है देश की जनता न्यायालय के भरोसे ही जी रही है ।
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