शिक्षक/ कर्मचारियों ने नारा दिया है, जो पुरानी पेंशन की बात करेगा वही उत्तर प्रदेश पर राज करेगा --अध्यक्ष

शिक्षक/ कर्मचारियों ने नारा दिया है, जो पुरानी पेंशन की बात करेगा वही उत्तर प्रदेश पर राज करेगा --अध्यक्ष

प्रतापगढ 




17.02.2022




रिपोर्ट--मो.हसनैन हाशमी




शिक्षक/ कर्मचारियों ने नारा दिया है जो पुरानी पेंशन की बात करेगा वही प्रदेश पर राज करेगा--अध्यक्ष







  प्रतापगढ।सर्वजन हिताय संरक्षण समिति महिला प्रकोष्ठ उत्तर प्रदेश की अध्यक्ष ने कहा है कि देश में निजी करण की बयार जोरों से चल रही है सरकारी विभाग औने पौने दामों में बड़े-बड़े उद्योगपतियों को और संस्थाओं को बेचे जा रहे हैं। ना रहेगी नौकरी ना बात होगी पेंशन की बहाली की।

   2004 के बाद सभी कर्मचारी यह अच्छी तरह जानते हैं कि नई पेंशन स्कीम में कोई भी सुरक्षा नहीं है। निश्चित रूप से देश में सिर्फ पुरानी पेंशन बहाली ही एकमात्र समस्या नहीं है हमने कभी देश की गाढ़ी कमाई को विजय माल्या नीरो मोदी जैसे लोगों को लेकर भागते हुए देखा है तो कभी नोटबंदी के नाम पर लाइन में लगते हुए खुद को असहाय भी महसूस किया है। कोरोना महामारी ने देश को झकझोर दिया तो हमने गंगा की रेत में लाशों के ढेर भी देखें और बिना ऑक्सीजन के तड़फ कर मरते हुए अपनों को भी देखा।

          करोना महामारी ने जहां एक तरफ आर्थिक तंगी का माहौल पैदा किया अस्थाई रोजगार वालों को बेरोजगार किया ।पेट्रोल और खाद्य सामग्री के दामों को आसमान छूते हुए देखा वहीं दूसरी तरफ ,भारतीय अरबपति गौतम अडाणी इस साल कमाई के मामले में दुनिया के सबसे बड़े रईस जेफ बेजोस से लेकर एलन मस्क और यहां तक कि मुकेश अंबानी पर भी भारी पड़े।

          अडाणी भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर किंग के रूप में उभरे हैं। बिजली निर्माण,खदान विशेष तौर पर कोयला, पोर्ट, पावर प्लांट से लेकर एयरपोर्ट, डेटा सेंटर और रक्षा क्षेत्र को  भारत के आर्थिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण व्यक्तित्व  हैं। इन सभी विभागों में शायद एक क्षेत्र राज्य या बड़ा टेंडर आपको भी आहूत किया जाता है।

    सवाल यह है की आजादी के समर में लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी आहुति दी ताकि देश को आजाद कराया जा सके चलिए आहुति का परिणाम अच्छा आया और हमने गुलामी की बेड़ियों को तोड़ते हुए स्वतंत्रता की हवा में सांस भी लिया।

      पर क्या आज हम फिर कारपोरेट घरानों के गुलाम नहीं हो रहे क्या सरकारी सार्वजनिक प्रतिष्ठानों को निजी हाथों में सौंप कर देशवासियों को इन घरानों का बंधुआ मजदूर नहीं बनाने जा रही। सरकारी नौकरियां या तो निकलती नहीं यह निकलती है तो उंगलियों में गिनी जा सकती हैं बेरोजगारी का स्तर चरम पर है युवा हैरान और परेशान है स्वरोजगार के नाम पर उसे कैसे खाया जा रहा है यह भगवान ही जानता है जब तक शासन और प्रशासन इमानदारी से देशवासियों के हित में नीतियां नहीं बनाता तब तक हम यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि चाइना की तरह हमारे घरों में कुटीर उद्योग खोले जाएंगे हमारा भी माल कभी किसी देशों में डंपिंग का कारण बनेगा।

         आज बीएड और पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री या लिए हुए  बच्चे रिक्शा चलाने को मजबूर हैं सरकारी तंत्र का हाल यह है कि एडवर्टाइजमेंट तथा टीवी चैनलों के माध्यम से हम उन्हें हिंदू मुसलमान और देशभक्ति जैसी बातों में उलझा कर रखे हुए हैं रोजगार सृजन की बातें नहीं हो रही घरों की महिलाएं असुरक्षित है इस तरह के मैसेज इन बेरोजगारों के दिमाग में डाल कर हम भारत को किस दिशा में ले जा रहे हैं वाकई विचार करने योग्य है।

   पिछले 18 वर्षों से सरकारी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों शिक्षकों और अधिकारियों की पेंशन खत्म कर दी गई, कोबिट महामारी में हमने कई सरकारी कर्मचारियों को बिना पैसे के इलाज ना मिलने के कारण मरते हुए देखा। माना की नई योजनाओं में आकस्मिक दुर्घटना होने पर जीवन रक्षा यह जीवन सहायता की कोई गारंटी नहीं है राष्ट्रीय पेंशन स्कीम में tier1 और tier-2 का निर्धारण किया गया है tier1 में पेंशन सरकारी कर्मचारियों के लिए है जो कि 7 साल के पहले किसी भी परिस्थिति में विद्रोह नहीं की जा सकती है यह एक फिक्स लॉकिंग पेंशन स्कीम है। वहीं दूसरी तरफ टैटू है जिसमें जीपीएफ इन्वेस्टमेंट प्लान आता है जीपीएस शब्द तो पुरानी पेंशन जैसा है पर उसकी सुविधाएं इसमें कुछ भी नहीं है। पेंशन फंड रेगुलेटरी डेवलपमेंट अथॉरिटी कर्मचारियों की मेहनत की कमाई को या तो इक्विटी में या कॉरपोरेट्स बांड और सिक्योरिटी में इन्वेस्ट करेगा जिन की सूचना या अनुमति लेना कर्मचारियों से जरूरी नहीं समझी जाती। अभी हमने पिछले वर्ष ही बिजली विभाग में दाऊद इब्राहिम की कंपनी में लगे हुए पैसे को डूबते हुए देखा और लाखों कर्मचारियों को सड़क पर आंदोलन करते हुए भी उनका डूबा हुआ पैसा कौन देगापता नहीं।

    1 अप्रैल 2004 का काला दिन सभी कर्मचारियों को याद होगा जब सांसदों विधायकोंऔर सैनिकों को छोड़कर पुरानी पेंशन खत्म कर दी गई। नई पेंशन स्कीम में जितनी पेंशन मिलेगी उससे कर्मचारी अपना बिजली का बिल की अदा कर ले यही बड़ी बात है नई पेंशन स्कीम शेयर बाजार को फायदा देने के लिए बनाई गई है कर्मचारियों को उनके मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 10% सरकार को देना होता है और 14% सरकार निवेश करती है। रिटायरमेंट के समय यह राशि पेंशन फंड में निवेश कर दी जाती है और रिटर्न से कर्मचारियों को पेंशन दी जाती है। यानी बाजार के उतार-चढ़ाव में कर्मचारियों की जिंदगी दांव पर लगी रहती है।

        जहां एक और पुरानी पेंशन स्कीम में 40 साल की नौकरी हो या 10 वर्ष की सभी की पेंशन राशि अंतिम सैलरी से तय की जाती थी और पुरानी पेंशन स्कीम को डेफिनेट बेनिफिट स्कीम कहा जाता था वही नई पेंशन स्कीम में डेफिनेट कंट्रीब्यूशन स्कीम कहा गया इसमें कर्मचारी की नौकरी कितने साल की गई और एनुटी कितनी है यह पेंशन के निर्धारण का आधार। पुरानी पेंशन स्कीम में वीआरएस लेने की सुविधा थी और कर्मचारियों को सामान्य पेंशन मिलती थी जबकि नई पेंशन स्कीम में यदि कर्मचारी किसी कारणवश वे बीआरएस लेता है तो 40% के बदले उसे 80% बीमा कंपनियों में निवेश करना होगा।

           यानी कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई जुए में उड़ाई।जब अपनी जिंदगी के साथ होते खिलवाड़ की जानकारी कर्मचारियों को हुई तो उन्होंने हड़ताल किया आंदोलन किया सड़कों पर उतरे जिसका नतीजा हुआ कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में पुरानी पेंशन बहाली एक सामान्य मुद्दा बना। कर्मचारियों की मांग पर कई संगठनों ने अपने घोषणा पत्र में लिखकर पुरानी पेंशन को एक राजनीतिक रंग दिया। कर्मचारी अधिकारी और शिक्षकों के जो चेहरे मुरझा गए थे उनमें एक आशा की नई किरण दिखाई दी। अब बारी है कर्मचारियों की कि वह अपनी एकजुटता का परिचय देते हुए व्यापारियों का साथ देंगे या अपने परिवार का अपने उन्नाव युवकों का जो अभी नौकरी पाने की कगार में लाइन लगाकर खड़े हैं उनके जीवन में स्थिरता है संस्था आए और सुनिश्चित भविष्य बने इसके लिए कर्मचारियों को अपनी ताकत दिखाने का अच्छा समय है।

 

      *सर्वविदित है जिन कर्मचारियों की ड्यूटी चुनाव में लगी है उनका बैलट द्वारा वोट जरूर डाला जाए यह विभिन्न कर्मचारी संगठन सुनिश्चित कर रहे हैं और सबको पुरानी पेंशन बहाली में एकजुटता का परिचय देते हुए कर्मचारियों की आन बान शान बचाने का प्रयास प्रयास एक और जारी दिख रहा है*। वही जिन्हें पेंशन मिल रही है वह विरोध में भी खड़े दिखाई दे रहे हैं।

     ....अभी नहीं तो कभी नहीं के मिशन में लगते हुए कर्मचारी शिक्षक और अधिकारी प्रयासरत हैं यह सिर्फ उनकी लड़ाई नहीं है यह पूरे समाज की रैली है पूरे राष्ट्र की लड़ाई है और पूरे देश की लड़ाई है यदि यहां का नागरिक खुश होगा गरिमा पूर्ण जीवन जीए गा तो निश्चित रूप से उसका योगदान आर्थिक गतिविधियों और देश की उन्नति में लगेगा। 


      इतिहास या तो स्वर्णिम लिखा जाएगा या काले पन्नों के रूप में..... फैसला चुनाव के नतीजे ही बताएंगे। देश के मसीहा बड़े व्यापारी अपने इरादों में कामयाब होते हैं या फिर सड़क पर चलने वाला आम मजदूर आम कर्मचारी और आम नौकर। पुरानी पेंशन बहाली हम सभी कर्मचारियों की बहुत पुरानी मांग है सभी कर्मचारी शिक्षक और अधिकारियों में  पुरानी पेंशन बहाली तो बहुत ही महत्वपूर्ण है ही, जो नई नियुक्तियां हो रही हैं उनके भी भविष्य का सवाल है जिन्हें नौकरियां नहीं मिली है उनकी भी आशाओं का अंबर वर्तमान में कार्यरत कर्मचारी शिक्षकों और अधिकारियों को ही रचना है।

   सोचे समझे और विचार करें साठ साल के बाद आपके जीवन का क्या होगा और आपके ना रहने के बाद आपके परिवार का क्या होगा।जिन नेताओं को खुद पुरानी पेंशन मिलती है वही आपकी नौकरी खत्म करने पर उतारू है और बुढ़ापे का सहारा पुरानी पेंशन की लाठी चकनाचूर करने पर भी।

       अब साहस एकजुटता कर्मठता और गरिमा पुणे जीने की इच्छा ही कर्मचारी शिक्षक और अधिकारियों की समय और किस्मत दोनों बदल सकते हैं। विचार करें।

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