"कहै दरोगा नोट धरो ना, अब जिन आया भाय करोना"

"कहै दरोगा नोट धरो ना, अब जिन आया भाय करोना"

प्रतापगढ 




08.08.2021



रिपोर्ट--मो.हसनैन हाशमी



"कहैं दरोगा नोट धरो ना,अब जिन आया भाय करोना"



सामाजिक एवं साहित्यिक संस्था स्वतंत्र कवि मंडल सांगीपुर द्वारा रेहुआ लालगंज (पूरे नेवली) में आयोजित मासिक गोष्ठी हर्षोल्लासपूर्वक संपन्न हुई। गोष्ठी की अध्यक्षता मंडल अध्यक्ष अर्जुन सिंह एवं संचालन मंडल के महामंत्री डॉ अजित शुक्ल ने किया।

सर्वप्रथम मां सरस्वती जी के चित्र पर पुष्पार्पण पूजन अर्चन एवं दीप प्रज्वलन के साथ‌ युवा रचनाकार रघुनाथ प्रसाद यादव द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के बाद मंडल की गतिविधियों पर आम चर्चा हुई। मंडल की अनुशासन समिति द्वारा लंबित आख्या मंडल के समक्ष शीघ्र प्रस्तुत करने की अपेक्षा की गई।

उपस्थित रचनाकारों ने समसामयिक विभिन्न विधाओं की रचनाएं प्रस्तुत कर साहित्यिक धार बहाई।

जहां वरिष्ठ रचनाकार गुरु बचन सिंह *बाघ* ने__

 *रास्ता जितना पथरीला* *होता* *है* । 

 *इतिहास उतना ही* *चमकीला होता है।* 

आदि पंक्तियों का गीत पढ़कर श्रोताओं की वाहवाही लूटी।

 वहीं, मंडल के प्रेसप्रवक्ता परशुराम उपाध्याय *सुमन* ने__

 *अब जिन आया भाय* *करोना* ।

 *कोर्ट कचहरी बंद कराया,*  

 *बिना मास्क डंडा* *चलवाया।* 

 *चौराहे पर चेकिंग लगाए,* 

 *कहैं दरोगा नोट धरो ना।* 

 *अब जिन आया भाय* *करोना* ।


आदि पंक्तियां पढ़कर राष्ट्र की करोना महामारी जैसी

भयंकर आपदा पर व्यंग बाण छोड़ने में कामयाबी हासिल की।


"मित्र के दोहे" शीर्षक से चंद्रशेखर *मित्र* ने पढ़ा_

 *बीवी कहती मित्र प्रिय सदा* *रहूंगी संग।* 

 *खाते सोते जागते छिड़ी* *रहेगी जंग।* 

अब्दुल मजीद *रहबर* ने पढ़ा_

 *तुम हो शम्मा और हम हैं* *परवाने* ,

 *किस तरह से गले मिलें* *तुमसे* ।

सुरेश *अकेला* की पंक्तियां_

 *आज देसवा म आपन* *सरकार हो गइल।* 

 *अपने भारत कै सपना* *साकार हो गइल।* 

वरिष्ठ साहित्यकार बाबूलाल *सरल* ने पढ़ा _

 *पइसा माई पइसा बाप।* 

 *बिन पैसा कै उल्टा जाप।* 

नवोदित रचनाकार रघुनाथ यादव ने पढ़ा_

 *मुझे अफसोस है मेरा देश* *न बदल जअगस्त

 *जैसे* *मुट्ठी में भरी रेत न* *फिसल जाए।* 

कवि लल्ला सिंह ने पढ़ा_

 *जीवन में एक भूल हुई* *जीवन को ही भूल* *गया* ।

 *कांटों को गले  लगाता रहा* *फूलों की माला भूल* *गया* ।


मंडल के नए गीतकार गीतेश यादव *जन्नत* ने राष्ट्रीय तिरंगा के सम्मान में_

 *मुकद्दस है यहां की धूल भी* *इसकी जमीं जन्नत,* 

 *तिरंगे के लिए दे देंगे* *अपनी जान लिख देना।* 

पढ़कर राष्ट्रीय समर्पण की अभिव्यक्ति किया।


काव्य पाठ करने वाले अन्य साहित्यकारों में यज्ञ नारायण सिंह अज्ञेय,अर्जुन सिंह, यज्ञ कुमार पांडेय यज्ञ, हरिवंश शुक्ल शौर्य, डा एस पी सिंह शैल, अशोक विमल, रामजी मौर्य, रवि कांत मिश्रा, डॉ अजित शुक्ल, हरिवंश सिंह, अरविंद सत्यार्थी, कु० अंशि सिंह, कृष्ण नारायण लाल श्रीवास्तव आदि रहे। 

प्राथमिक विद्यालय में आयोजित गोष्ठी की व्यवस्था में आनंद सिंह, कुंदन सिंह एवं प्रियांशु सिंह ने भरपूर सहयोग किया।राष्ट्रगान के साथ  हर्षोल्लासपूर्वक गोष्ठी का समापन हुआ।

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